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वैज्ञानिकों का दावा- शुक्र ग्रह पर कभी हो ही नहीं सकते थे महासागर

Gulabi
14 Oct 2021 2:19 PM GMT
वैज्ञानिकों का दावा- शुक्र ग्रह पर कभी हो ही नहीं सकते थे महासागर
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वैज्ञानिकों का दावा

सौरमंडल (Solar System) में ऐसा कोई ग्रह नहीं हैं जिसमें जीवन की अनुकूल हालात हों. आज किसी ग्रह पर जीवन संभव नहीं है. शुक्र (Venus) के बारे में कहा जाता है कि अरबों साल पहले वह और पृथ्वी दोनों एक ही से थे. लेकिन पथरीला ग्रह होने के बाद भी शुक्र के हालात नर्क की तरह बताए जाते हैं. लेकिन हाल में मिले प्रमाण ऐसा बताते हैं कि वहां हमेशा ऐसी स्थितियां नहीं थी. माना यह भी जाता रहा कि कभी शुक्र भी आवासीय ग्रह था. लेकिन नए अध्ययन में पता चला है कि शुक्र पर कभी महासागर (Oceans on Venus) तो थे ही नहीं.

इतिहास को लेकर दावा करना मुश्किल फिर भी
बेशक इतिहास को लेकर किसी भी तरह दावा करने की स्थिति नहीं बनी है. मंगल पर इस बात के संकेत अब भी तलाशे जा रहे हैं कि वहां कभी किसी रूप में जीवन था जब कि हर प्रयास में ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं जिससे वहां जीवन का इतिहास होने या ना होने की संभावना मिले. लेकिन इन अध्ययन में शुक्र को लेकर दावा किया गया है कि यह संभव ही नहीं है कि शुक्र पर कभी भी महासागर होने की स्थिति रह सकी हो.
कैसे हैं शुक्र के हालात
ऐसा लगता है कि एक बार जहरीला ग्रह होने पर यह हमेशा के लिए जहरीला ग्रह हो गया. शुक्र कई लिहाज से पृथ्वी की तरह है, आकार, संरचना दोनों की एक सी है. और जब सूर्य युवा और कम गर्म था, तब शुक्र पर ही शीतोष्ण जलवायु होना चाहिए थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. शुक्र का आसामान घने सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों से भरा है. सतह पर वायुमंडलीय दाब पृथ्वी से सौ गुना और तापमान 471 डिग्री सेल्सियस रहता है.
आज का शुक्र एक संकेत
लेकिन फिर भी दोनों ग्रहों की समानताएं वैज्ञानिकों को सोचने पर मजबूर करती हैं कि जिस तरह से सूर्य की चमक लगातार बढ़ती जा रही है, शुक्र के वर्तमान हालात पृथ्वी के भविष्य का संकेत देते दिख रहे हैं. यह इसलिए अहम है क्योंकि अगर एक समय शुक्र और पृथ्वी एक जैसे थे उस समय सूर्य आज से 30 प्रतिशत कम चमका करता था. उस समय का सूर्य की चमक के हिसाब से पृथ्वी को बर्फ का गोला बन जाना चाहिए था. लेकिन फिर भी उससे पहले ही पृथ्वी पर तरल पानी मौजूद था.
पृथ्वी की तरह था ही नहीं शुक्र
स्विट्जरलैंड की जिनेवा यूनिवर्सिटी के खगोलविद मार्टिन टर्बेट की अगुआई में शोधकर्ताओं की टीम ने यह दर्शाया कि शुक्र ग्रह कभी पृथ्वी की तरह था ही नहीं और उन्होंने युवा सूर्य के विरोधाभास का समाधान भी निकाल लिया. शोधकर्ताओं ने बताया कि दोनों ग्रह की 4 अरब साल पुरानी शुरुआती जलवायु को सिम्यूलेट किया जब दोनों की सतहें पिघली हुई ही थीं. इन हालातों में पानी भाप के रूप में हो सकता था.
इतनी बारिश होने का सवाल ही नहीं
जहां इस भाप को संघनित होकर बादल बन सतह पर बरसने के लिए शुक्र के लिए हजारों साल तक ठंडा होना था. यह तभी हो सकता था जब बादल सूर्य से आने वाली सारी किरणों को इतने लंबे समय तक सतह से पहुंचने से रोक पाते. टीम के जलवायु मॉडल ने दिखाया कि शिशु शुक्र ग्रह पर बादल बन तो सकते थे, पर केवल रात के हिस्से पर, लेकिन इससे दिन में सतह तक पहुंचने वाली रोशनी नहीं रुक सकती थी. उल्टा इससे ग्रीनहाउस प्रभाव से रात का हिस्सा भी गर्म होता रहा होगा.
पृथ्वी का भी हो सकता था यही हाल
इससे साफ तौर पर जाहिर है कि शुक्र के वायुमंडल में भाप कभी संघनित नहीं हो पाती होगी, ऐसे में महासागर बनाने लायक बारिश होना तो बहुत ही दूर की बात है. इससे "भापीय शुक्र" वाली धारणा को बल मिलता है जो साल 2013 में सुझाई गई थी. रोचक बात यह है कि कमजोर सूर्य के रहते ही "भापीय पृथ्वी" वाली धारणा असंभव नहीं है. वास्तव में यादि सौर विकिरण थोड़े और मजबूत रहे होते तो पृथ्वी का हाल भी शुक्र की तरह ही हो सकता था.
शोध बताता है कि पृथ्वी को बर्फ बनाने की जगह धुंधला युवा सूर्य हमारे ग्रह को इतना ही ठंडा कर सका कि भाप तरल बनी और बारिश संभव हो सकी. अभी इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि पृथ्वी और शुक्र अपने विकासक्रम में अलग अलग राह पर कैसे निकल गए. नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन के शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनके शोध के नतीजे शुक्र के इतिहास के बारे में कई सवालों के हल खोजने में सहायक होंगे.
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