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वैज्ञानिकों का दावा: भारत में बनी दवा कोरोना से हार्ट को पहुंचे नुकसान को कर सकती है ठीक

Neha Dani
10 Nov 2022 2:02 AM GMT
वैज्ञानिकों का दावा: भारत में बनी दवा कोरोना से हार्ट को पहुंचे नुकसान को कर सकती है ठीक
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भारत में कोविड-19 के इलाज के लिए चिकित्सीय ​​परीक्षण चल रहा है.
फल, मक्खियों और चूहों पर हुई एक स्टडी में पाया गया है कि भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित एक दवा कोरोना वायरस के एक प्रोटीन के कारण हृदय को होने वाली क्षति को ठीक कर सकती है.
मैरीलैंड विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने पहचाना कि कैसे सार्स-कोव-2 यानी कोरोना वायरस का एक विशिष्ट प्रोटीन हृदय के ऊतकों को नुकसान पहुंचाता है. फिर उन्होंने हृदय पर उस प्रोटीन के विषाक्त प्रभाव को उलटने के लिए 2डीजी नामक दवा का उपयोग किया.
मेड इन इंडिया दवा का बड़ा फायदा
DRDO के सहयोग से डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज द्वारा बनाई गई यह दवा 2डीजी मुंह से ली जाने वाली दवा है. कोरोना वायरस (Coronavirus) ऊर्जा के लिए ग्लाइकोलाइसिस या ग्लूकोज के टूटने पर निर्भर करता है. दवा ग्लाइकोलाइसिस की प्रक्रिया में बाधा डालती है और वायरस के विकास को रोकती है.
अध्ययन में कहा गया है कि कोविड-19 से पीड़ित लोगों में संक्रमण के बाद कम से कम एक साल तक हृदय की मांसपेशियों में सूजन, हृदय के असामान्य रूप से धड़कने, रक्त के थक्के, स्ट्रोक, दिल के दौरे और हृदय गति रुकने का काफी अधिक जोखिम रहता है.
वैज्ञानिकों का दावा
अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय, बाल्टीमोर के वैज्ञानिकों ने हृदय पर सार्स-कोव-2 वायरस प्रोटीन के विषाक्त प्रभाव को उलटने के लिए एक दवा का इस्तेमाल किया. संबंधित स्टडी रिपोर्ट के वरिष्ठ लेखक जे हान ने कहा, 'हमारे शोध से पता चलता है कि सार्स-कोव-2 प्रोटीन शरीर में विशिष्ट ऊतकों को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं- जैसा कि एचआईवी (HIV) और जीका जैसे अन्य वायरस के मामले में होता है.'
नेचर कम्युनिकेशंस बायलॉजी की रिपोर्ट में दावा
फल, मक्खियों और चूहों के हार्ट की कोशिकाओं पर किए गए अध्ययन की रिपोर्ट नेचर कम्युनिकेशंस बायलॉजी में प्रकाशित हुई है. हालांकि दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 बीमारी की गंभीरता को कम करने के लिए तेजी से टीके और दवाएं विकसित कीं, लेकिन अध्ययन में कहा गया है कि ये उपचार हृदय या अन्य अंगों को उस नुकसान से नहीं बचाते हैं जो किसी हल्के संक्रमण से भी हो सकता है.
पिछले साल, हान और उनकी टीम ने फल मक्खियों और मानव कोशिकाओं का उपयोग करके अध्ययन में कोरोना वायरस के सबसे जहरीले प्रोटीन की पहचान की. अध्ययन के अनुसार, उन्होंने पाया कि दवा 'सेलाइनेक्सर' इन प्रोटीन में से एक की विषाक्तता को कम करती है, लेकिन दूसरे की नहीं, जिसे एनएसपी6 के रूप में जाना जाता है.
'सबसे जहरीला कोरोना वायरस प्रोटीन निकला'
अपनी नई रिसर्च में, उन्होंने पाया कि फल मक्खी के हृदय में एनएसपी6 सबसे जहरीला कोरोना वायरस प्रोटीन निकला. इस अध्ययन के अनुसार, अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि एनएसपी6 प्रोटीन ने ग्लाइकोलाइसिस प्रक्रिया को चालू करने के लिए फल मक्खी की कोशिकाओं को उसके दिल में नियंत्रित कर लिया, जो कोशिकाओं को ऊर्जा के लिए शर्करा ग्लूकोज को जलाने में सक्षम बनाता है. आमतौर पर, हृदय कोशिकाएं ऊर्जा स्रोत के रूप में वसीय अम्ल अर्थात फैटी एसिड का उपयोग करती हैं, लेकिन हृदय की विफलता के दौरान शर्करा चयापचय में बदल जाती है क्योंकि ये कोशिकाएं क्षतिग्रस्त ऊतक को ठीक करने का प्रयास करती हैं.
अनुसंधानकर्ताओं में शामिल टीम ने यह भी पाया कि एनएसपी6 प्रोटीन ने कोशिकाओं के 'पावरहाउस' कहे जाने वाले माइटोकॉन्ड्रिया को बाधित करके नुकसान पहुंचाया जो शर्करा चयापचय से ऊर्जा पैदा करता है.
इसके बाद टीम ने 2-डीऑक्सी-डी-ग्लूकोज (2डीजी) दवा का उपयोग करके फल मक्खियों और चूहों की हृदय कोशिकाओं में शर्करा के चयापचय को अवरुद्ध कर दिया. अध्ययन में कहा गया है कि दवा ने एनएसपी6 प्रोटीन के कारण दिल और माइटोकॉन्ड्रिया को पहुंचने वाली क्षति को कम कर दिया.
हान का दावा
हान ने कहा, 'हम जानते हैं कि कुछ वायरस कोशिका के ऊर्जा स्रोत को चुराने के लिए अपने चयापचय को बदलने के लिए संक्रमित जानवर की कोशिका मशीनरी को प्रभावित करते हैं, इसलिए हमें लगता है कि सार्स-कोव-2 भी कुछ ऐसा ही करता है. वायरस और अधिक वायरस उत्पन्न करने के लिए शर्करा चयापचय के उप-उत्पादों का उपयोग बिल्डिंग ब्लॉक्स के रूप में भी कर सकते हैं. इसलिए हम ये बात कह सकते हैं कि यह दवा जो संक्रमण से पहले दिल में चयापचय को प्रभावित करती है, वायरस के लिए जरूर घातक साबित होगी.'
सस्ती और कारगर है भारत में बनी खास दवा
अनुसंधानर्ताओं ने बताया कि सौभाग्य से 2डीजी दवा बहुत सस्ती है और नियमित रूप से लैब रिसर्च में इसका उपयोग किया जाता है. इस स्टडी में ये भी कहा गया है कि हालांकि 2डीजी को अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा बीमारी के इलाज के लिए मंजूरी नहीं दी गई है, लेकिन इस दवा का भारत में कोविड-19 के इलाज के लिए चिकित्सीय ​​परीक्षण चल रहा है.

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