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युवा बचपन से लेकर जवानी तक झेलते हैं ऐसी पीड़ा
पाकिस्तान (Pakistan) में हिंदू समुदाय (Hindu Community) के साथ होने वाले अत्याचारों की खबरें हमेशा ही सुर्खियों में बनी रहती हैं. लेकिन बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि पड़ोसी मुल्क में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय को किताबों (Books) के जरिए भी मानसिक प्रताड़ना झेलने पर मजबूर होना पड़ता है. यहां रहने वाले हिंदू समुदाय के लोगों को तरह-तरह के तानों को सुनने पर मजबूर होना पड़ता है. लोगों को 14 अगस्त के बजाय 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाने की सलाह तक दी जाती है.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह हिंदू समुदाय के लोगों को भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच के दौरान ताने सुनने पड़ते हैं. भारतीय टीम के अच्छे प्रदर्शन पर लोगों को कहा जाता है कि तुम्हारी टीम तो बेहतर खेल रही है. पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू समुदाय के युवा लोगों को बचपन से लेकर जवानी तक ऐसी पीड़ा से गुजरना पड़ता है. इन सबका परिणाम ये निकलकर सामने आ रहा है कि हिंदू समुदाय के युवाओं को हीन भावना का शिकार होना पड़ता है.
ऐसा क्या लिखा है पाकिस्तानी किताबों में?
पाकिस्तानी स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल इन किताबों को पढ़ने वाले कुछ छात्रों ने बताया कि इन किताबों में कहा गया है कि इतिहास में हिंदुओं ने मुसलमानों पर बहुत ही ज्यादा अत्याचार किए हैं. छात्रों ने बताया कि इन किताबों में काफिर का जिक्र किया गया है. उन लोगों को काफिर कहा गया है, जो बूतों या मूर्तियों की पूजा करते हैं. इसमें लिखा गया है कि पहले के समय में हिंदू अपनी बेटियों को पैदा होते ही जिंदा दफन कर दिया करते थे. किताबों में हिंदुओं को मानवता का दुश्मन बताया गया है.
एक हिंदू युवा डॉक्टर राजवंती कुमारी ने नौवीं और दसवीं क्लास में पढ़ी गई एक किताब का जिक्र करते हुए बताया कि इसमें हिंदुओं को मुसलमानों का दुश्मन बताया गया है. किताब में इस बात का भी जिक्र है कि दोनों समुदायों ने लंबे समय तक आंदोलनों में भाग लिया, लेकिन ये ज्यादा लंबे समय तक जारी नहीं रह सका.
किताबों को किस तरह तैयार किया जाता है?
सिंध प्रांत में आधिकारिक स्तर पर पाठ्य पुस्तकों को तैयार करने की जिम्मेदारी सिंध टेक्स्ट बुक बोर्ड की है. इस संस्थान के तकनीकी निदेशक यूसुफ अहमद शेख ने बताया कि 'ब्यूरो ऑफ करिकुलम' द्वारा पाठ्यक्रम दिया जाता है. इसके मुताबिक ही किताबों को तैयार किया जाता है. पहले लेखकों के एक पूल से किताब को लिखने वाले लेखकों को चुना जाता है, फिर उन्हें इसे लिखने का जिम्मा सौंपा जाता है. पाठ्यक्रम के मुताबिक लेखक किताबों को लिखते हैं.
उन्होंने बताया कि विशेषज्ञों की एक टीम किताब की जांच करती है. वहीं, किताब के पूरी तरह से तैयार हो जाने के बाद 'ब्यूरो ऑफ करिकुलम' इसकी जांच करता है. सिंध टेक्स्ट बुक बोर्ड 'ब्यूरो ऑफ करिकुलम' द्वारा दिए गए पाठ्यक्रम से इतर चीजों को शामिल नहीं कर सकता है. 'ब्यूरो ऑफ करिकुलम' का आदेश उसके लिए बाध्यकारी है और वह निर्धारित दायर से बाहर नहीं जा सकता है.
इन किताबों को लेकर युवाओं का क्या कहना है?
वहीं, इन किताबों को पढ़ने वाले हिंदू और मुस्लिम समुदाय के युवाओं का कहना है कि जब उन्होंने अपनी आंखों को खोला तो चारों ओर भाईचारे का माहौल था. ईद, होली और दिवाली जैसे त्योहारों में उन्हें किसी भी तरह का कोई अंतर महसूस नहीं हुआ. लेकिन घरों को छोड़कर स्कूलों और कॉलेजों में पहुंचने पर उन्हें इस बात एहसास हुआ कि किस तरह किताबों के जरिए नफरत के बीज बोए जा रहे हैं. इन युवाओं का कहना है कि दोनों समुदायों के बीच नफरत की लकीर खींचने की जिम्मेदारी इन नफरती किताबों की है.
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