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अमेरिका भले ही सबसे ताकतवर देश हो लेकिन रशियन इंजन टेक्नोलॉजी से आज भी पीछे है।
मॉस्को: भारत ने शुक्रवार को ऑटोनमस फ्लाइंग विंग टेक्नोलॉजी डेमॉन्स्ट्रेटर का पहला फ्लाइट टेस्ट किया है। इस ड्रोन को भविष्य के फाइटर ड्रोन्स का लीडर करार दिया जा रहा है। इस ड्रोन की सबसे बड़ी खासियत है इसमें लगा इंजन जो रूस में तैयार हुआ है। इसकी पहली सफल उड़ान के साथ ही, इसे भारत और रूस की दोस्ती की नई मिसाल करार दिया जा रहा है। भारत की सेनाओं के जो हथियार हैं उनमें रूस का योगदान सबसे ज्यादा है। अब इस ड्रोन के शामिल होने के बाद सेनाओं को नई ताकत मिल सकेगी। ड्रोन में एनपीओ सैटर्न AL-55 इंजान लगा है जिसे एक हाई परफॉर्मेंस वाला टर्बोफैन इंजन कहा जाता है।
अमेरिकी बॉम्बर जेट सा
इस ड्रोन को बेंगलुरु स्थित एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (ADE) की तरफ से तैयार किया गया है। इस ड्रोन के सफल परीक्षण के बाद अहम और संवेदनशील मिलिट्री सिस्टम को शामिल करने का रास्ता साफ हो गया है। ड्रोन की खासियत इसके फिक्स्ड विंग्स हैं जो इसे पारंपरिक एयरक्राफ्ट से अलग करते हैं। इसकी डिजाइन अमेरिका के खतरनाक बी-2 बॉम्बर जेट से मिलती जुलती है।
इस ड्रोन में लगा इंजन बहुत ही ताकतवर है। इसे एडवांस्ड ट्रेनर और लाइट अटैक हेलीकॉप्टर्स में भी प्रयोग किया जा चुका है। इस इंजन को हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के HJT-36 सितारा ट्रेनर जेट में भी प्रयोग किया जा चुका है। इसके अलावा घातक यूएवी में भी यही इंजन लगा है। सबसे बड़ी बात है कि इस ड्रोन के सफल होने के बाद भारत अब इसी तरह के ड्रोन तैयार कर सकेगा जिनमें रूस का इंजन लगा होगा।
सात दशक पुरानी दोस्ती
भारत और रूस की दोस्ती करीब सात दशक पुरानी है। देश की सेनाओं के पास ज्यादातर हथियार ऐसे हैं जो रूस में बने हैं। इसके अलावा मिलिट्री हार्डवेयर पर भी भारत अभी रूस पर निर्भर है। हालांकि साल 2014 से रूस से रक्षा आयात में करीब 70 फीसदी की गिरावट आई है लेकिन आज भी रूस, भारत के लिए काफी अहम है।
सोवयत संघ के टूटने के बाद रूस, भारत करीब आए और आज भी ये रिश्ता कायम है। दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों को कई बार खास और कभी न टूटने वाला करार दिया गया है। रूस की इंजन टेक्नोलॉजी को अभी तक दुनिया में बेस्ट माना जाता है। अमेरिका भले ही सबसे ताकतवर देश हो लेकिन रशियन इंजन टेक्नोलॉजी से आज भी पीछे है।
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