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रूस-यूक्रेन संकट: रूसी कमांडरों को हमले का आदेश, दुनिया भुगतेगी खामियाजा

jantaserishta.com
21 Feb 2022 3:51 AM GMT
रूस-यूक्रेन संकट: रूसी कमांडरों को हमले का आदेश, दुनिया भुगतेगी खामियाजा
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कीव: रूस और यूक्रेन के बीच इन दिनों तनाव इतना बढ़ गया है कि स्थिति युद्ध तक आ गई है। अगर रूस और यूक्रेन आपस में टकराते हैं तो इसका खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा। इसका सबसे ज्यादा असर तेल और गेहूं के बाजार पर पड़ेगा। इसके अलावा यूक्रेन को स्टॉक मार्केट में भी खलबली मच सकती है।

कैसे खड़ा हो सकता है गेहूं का संकट?
अगर ब्लैक सी रीजन से गेहूं के व्यापार में किसी भी तरह की बाधा पड़ती है तो इसका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ेगा। इस समय वैसे भी कोरोना महामारी की वजह से तेल और खाद्य पदार्थों की कीमतों में इजाफा देखा जा रहा है। अगर यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध छिड़ा तो ब्लैक सी में भी सैन्य कार्यवाही या फिर प्रतिबंधों की वजह से इसका असर दिखायी देगा। गेहूं के बड़े निर्यातकों में यूक्रेन, रूस, कजाकिस्तान और रोमानिया की गिनती गेहूं के बड़े निर्यातकों में होती है। युद्ध की स्थिति में इन देशों का निर्यात बाधित हो जाएगा।
नेचुरल गैस के मामले में रूस पर निर्भर यूरोप
यूरोपीय देशों को मिलने वाली नेचुरल गैस रूस से ही मिलती है। यह पाइपलाइन के जरिए बेलारूस और पोलैंड के रास्ते जर्मनी पहुंचती है। एक पाइपलाइन सीधा जर्मनी पहुंचती है और दूसरी यूक्रेन के रास्ते जर्मनी तक पहुंचती है। साल 2020 में रूर से होने वाली नेचुरल गैस की सप्लाई कम हो गई थी। अगर युद्ध होता है तो यूक्रेन से आने वाली पाइपलाइन पर रूस रोक लगा सकता है।
अगर ऐसा होता है तो तेल और नेचुरल गैस की कीमत आसमान पर चढ़ जाएगी और इसका खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा। यूक्रेन के रास्ते स्लोवाकिया, हंगरी और चेक रिपब्लिक तक रूस का तेल पहुंचता है। ऐसे में अगर आपूर्ति बाधित होती है तो तेल की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी।
बन सकती है मंदी की स्थिति
अगर रूस और यूक्रेन में युद्ध होता है तो दुनिया को मंदी के दौर से गुजरना पड़ सकता है। सैन्य कार्यवाही की वजह से इन दोनों देशों की मार्केट पर बड़ा असर पड़ेगा। हाल में बढ़े तनाव के मद्देनजर दोनों ही देशों के डॉलर बॉन्ड अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में रूस के बाजारों में गिरावट देखी गई है। इस स्थिति में विदेशी मुद्रा बाजार में भी अनिश्चितता का माहौल है। 2014 का उदाहरण लें तो लिक्विडिटी गैप और यूएस डॉलर होर्डिंग की वजह से पूरी दुनिया के बाजारों पर इसका प्रभाव दिख सकता है।

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