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रूस ने वार्ता की मेजबानी करते हुए कहा- अफगानिस्तान में समावेशी सरकार पहली जरूरत

Subhi
21 Oct 2021 1:22 AM GMT
रूस ने वार्ता की मेजबानी करते हुए कहा- अफगानिस्तान में समावेशी सरकार पहली जरूरत
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रूस ने अफगानिस्तान पर तालिबान और अन्य गुटों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए वार्ता की मेजबानी की। इस बैठक में भारत ने भी हिस्सा ले रहा है।

रूस ने अफगानिस्तान पर तालिबान और अन्य गुटों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए वार्ता की मेजबानी की। इस बैठक में भारत ने भी हिस्सा ले रहा है। कूटनीति में मॉस्को ने अपना दबदबा बनाते हुए वार्ता में स्पष्ट किया कि अफगानिस्तान में स्थिरता व शांति की कोशिशों के लिए समावेशी सरकार जरूरी है। मॉस्को-फार्मेट नामक तीसरी बैठक में तालिबान सरकार को मान्यता देने संबंधी मुद्दा नहीं उठाया गया।

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने जोर देकर कहा कि अफगानिस्तान में स्थिरता के लिए न केवल सभी जातीय समूहों को मिलाकर बल्कि देश की सभी सियासी ताकतों के हितों को पूरी तरह से सम्मिलित कर समावेशी सरकार बनाना जरूरी है।
रूस ने काबुल में नहीं खाली किया है अपना दूतावास
कई अन्य देशों के विपरीत रूस ने काबुल में अपना दूतावास खाली नहीं किया है और अगस्त में देश पर तालिबान का कब्जा होने के बाद भी उसके राजदूत नई सरकार से संपर्क बनाए हुए हैं। लावरोव ने उद्घाटन भाषण में अफगानिस्तान के हालात स्थिर करने और सरकारी ढांचे के संचालन को सुनिश्चित करने के तालिबान प्रयासों की सराहना की। सबसे बड़ी बात यह रही कि उनके भाषण में तालिबान की मान्यता पर कोई शब्द नहीं कहा गया। हालांकि रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन पहले ही कह चुके हैं कि तालिबान को मान्यता में जल्दबाजी न करके वार्ता में शामिल होना चाहिए।
आईएस और आतंकियों की चुनौतियों से निपटना होगा
मॉस्को-फार्मेट में अफगानिस्तान के भीतर इस्लामिक स्टेट समूह और उत्तरी क्षेत्र में अन्य आतंकवादियों द्वारा पेश की जा रही सुरक्षा चुनौतियों से निपटने पर जोर दिया गया। लावरोव ने कहा, अफगानिस्तान से मादक पदार्थों की तस्करी भी एक बड़ी चुनौती है। रूस ने अफगानिस्तान के पड़ोस में उजबेकिस्तान और ताजिकिस्तान में संयुक्त अभ्यास की एक शृंखला भी आयोजित की है।
अफगानिस्तान में स्थिरता के लिए वार्ता जरूरी
तालिबान के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए रूस वर्षों तक काम कर चुका है। इसके लिए उसने भले ही 2003 में समूह को आतंकवादी संगठन नामित कर दिया हो, लेकिन इसे कभी भी सूची में शामिल नहीं किया। रूसी कानून के मुताबिक ऐसे समूहों के साथ कोई भी संपर्क दंडनीय है लेकिन विदेश मंत्रालय ने कहा कि तालिबान से उसकी वार्ता अफगानिस्तान को स्थिर करने में मदद के लिए जरूरी है।
अपने किए वादों को पूरा करे तालिबान
मॉस्को-फार्मेट में तालिबान के अफगानिस्तान में सरकार बनाने के बाद के हालात पर चर्चा हुई। इसमें दस देशों के सदस्य हिस्सा ले रहे हैं जिसमें से एक भारत भी है। अफगानिस्तान में तालिबान के बाद मानवीय संकट शुरू होने को लेकर उसे दी जाने वाली मदद पर भी आने वाले दिनों में चर्चा होनी है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा, हमारा मकसद तालिबान को उनके वादे पूरे करने के लिए प्रोत्साहित करना है।

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