सम्पादकीय

Social media के कारण रिश्तों में आ रही दरार

Gulabi Jagat
12 Oct 2024 12:02 PM GMT
Social media के कारण रिश्तों में आ रही दरार
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Social mediaदेखा जाए तो सोशल मीडिया पर पिछले साल सवा साल से चल रहे ट्रेंड से आपसी संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा हैं वहीं सोशल मीडिया से जुड़ें लोगों में नकारात्मकता और डिप्रेशन का प्रमुख कारण बनता जा रहा है। आपसी संबंधों में दरार का नया कारण सोशल मीडिया का नया चलन बनता जा रहा है। सोशल मीडिया पर कुछ समय से फ्लैगिंग का नया ट्रैंड चल पड़ा है। पहली बात तो यह कि लोगों का सोशल मीडिया पर रुझान तेजी से बढ़ा है और कोढ़ में खाज यह कि सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया का दौर भी तेजी से चल पड़ा है। मजे की बात यह कि सोशल मीडिया पर रिएक्शन नहीं आना भी डिप्रेशन का कारण बन रहा है तो सोशल मीडिया पर किसी भी तरह का रिएक्शन भी तनाव का कारण बनती जा रही है। इन दिनों फ्लैगिंग का नया दौर चल पड़ा है पर इसमें भी अधिक तो यह कि बेज फ्लैगिंग का नया ट्रेंड साथी को अधिक प्रताड़ित करने लगा है। प्रताड़ना का मतलब तनाव का प्रमुख कारण होने से हैं।
देखा जाए तो सोशल मीडिया पर पिछले साल सवा साल से चल रहे ट्रेंड से आपसी संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा हैं वहीं सोशल मीडिया से जुड़ें लोगों में नकारात्मकता और डिप्रेशन का प्रमुख कारण बनता जा रहा है। नए ट्रेंड को भले ही सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता गंभीरता से नहीं ले रहे हो पर जिस किसी पर नए ट्रेंड के अनुसार फ्लैगिंग के माध्यम से कमेंट्स किये जा रहे हैं उसका असर अंदर तक पहुच रहा है। दर असल पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया में इशारों-इशारों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का नया चलन तेजी से चला है। एक और जहां इमोजी का प्रयोग आम है तो फ्लैगिंग का नया चलन उससे भी अधिक गंभीर है। सोशल मीडिया पर इन दिनों बेज फ्लैग का चलन कुछ ज्यादा ही चला है। बेज फ्लैग का सीधा सीधा मतलब यह निकाला जा रहा है कि इस तरह का व्यवहार जो ना तो अच्छा है और ना ही बुरा, लेकिन इस तरह की प्रतिक्रिया संबंधित को सोचने को मजबूर कर देती है। खासतौर से इसका चलन आपसी रिश्तों को लेकर किया जा रहा हैं और इससे संबंधित में एक तरह की हीन भावना आती है और उसका दुष्परिणाम हम सब जानते ही हैं। इससे पहले साथियों को रेड फ्लैग और ग्रीन फ्लैग का लेबल दिया जाता रहा है। हांलाकि यह भी नकारात्मक ही है। रेड फ्लैग जहां समस्या से ग्रसित व्यवहार को दर्शाता है तो ग्रीन फ्लैग को अच्छे व्यवहार के रु
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हा है। यानी कि आप अपने साथी को लेबल दे रहे हैं और वह लेबल ही साथी का आपके प्रति और आपका साथी के प्रति व्यवहार को दर्शाता है।
हालाकि यह नए नए ट्रेंड सोशल मीडिया पर अपने फालोअर्स बढ़ाने और इंफ्लूएसर मार्केटिंग के किये जाते हैं पर इनका असर काफी गहरा देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर साइबर बूलिंग आम होती जा रही है। साइबर बूलिंग में ड़राने धमकाने के मैसेजों के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से टार्चर किया जाता है। संबंधित व्यक्ति अपने आत्म सम्मान पर ठेस समझता है और इसके कारण अत्यधिक सेंसेटिव व्यक्ति तो तनाव में चला जाता है। इससे उसकी दिनचर्या बुरी तरह से प्रभावित होने लगती है। देखा जाए तो सोशल मीडिया आपसी जुड़ाव का माध्यम होना चाहिए पर जिस तरह का ट्रेंड चल रहा है वह जुड़ाव के स्थान पर विलगाव का अधिक कारण बन रहा है। जाने अनजाने में सामने वाले को गहरी ठेस लगती है।
भले ही हमारी प्रतिक्रिया मजाक में हो रही हो पर सोशल मीडिया पर हमारी प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रियाओें का सिलसिला किस दिशा और हद तक चल निकले इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए हमें सामने वाले की भावनाओं का भी ध्यान रखना होगा। अन्यथा और कुछ नहीं तो संबंधों में अलगाव तो तय ही है। ऐसे में सोशल मीडिया को हमें सकारात्मक दिशा में ले जाना होगा। अनपेक्षित प्रतिक्रियाओं से बचना होगा। सोशल मीडिया दरअसल समय काटने या दूसरे को बुली करने का माध्यम नहीं है और ना ही होना चाहिए। बल्कि होना तो यह चाहिए कि सोशल मीडिया के माध्यम से सकारात्मकता का विस्तार और मोटिवेशन का माध्यम बनना चाहिए ताकि सामाजिक सरोकारों को मजबूती प्रदान की जा सके। इस भाग-दौड़, ईर्ष्या व प्रतिस्पर्धा की जिंदगी में लोगों को निराशा व तनाव से बाहर लाया जा सके। हमारी प्रतिक्रिया किसी को मोटिवेट करने का माध्यम बने तभी प्रतिक्रिया की सार्थकता है। ऐसे में सोशल मीडिया में नित नए प्रयोग करते समय कुछ अधिक ही गंभीर होना होगा। खासतौर से समाज विज्ञानियों और मनोविश्लेषकों को गंभीरता से ध्यान देना ही होगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चांद एमएचआर मलोट पंजाब
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