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शोधकर्ताओं का अध्ययन: खानपान में बदलाव से मिल सकती है स्वस्थ जिंदगी

Gulabi
21 Aug 2021 2:04 PM GMT
शोधकर्ताओं का अध्ययन: खानपान में बदलाव से मिल सकती है स्वस्थ जिंदगी
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शोधकर्ताओं का अध्ययन

खानपान का आपकी सेहत पर असर पड़ता है। यह तो सर्वविदित है। लेकिन क्या और कितना असर पड़ता है, यह जानना भी जरूरी है। यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन के एक शोध में बताया गया है कि यदि आप एक हाट डाग खाते हैं तो समझ लीजिए कि 36 मिनट स्वस्थ जीवन खो दिए। वहीं, यदि एक कटोरी नट्स (बादाम जैसे मेवा) खाते हैं तो आपको 26 मिनट अतिरिक्त स्वस्थ जीवन मिलता है।


शोधकर्ताओं ने करीब 5,800 खाद्य पदार्थों का पोषण संबंधी बीमारी के जोखिम और पर्यावरण पर पड़ने वाले उनके असर के आकलन के आधार पर रैंकिंग की है। यह अध्ययन नेचर फूड जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

इसमें बताया गया है कि मांस या प्रसंस्कृत मांस खाने से दैनिक कैलोरी खपत का यदि 10 फीसद फल-सब्जी, नट्स (मेवा), फलियां तथा चुनिंदा सी-फूड से पूर्ति करते हैं तो इससे डायटरी कार्बन फुटप्रिंट्स एक तिहाई कम होता है और आपको रोजाना स्वास्थ्यकारक 48 मिनट मिलता है। किसी पदार्थ या तत्व से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कार्बन फुटप्रिंट्स कहते हैं।
यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन के स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ में एन्वायरमेंटल हेल्थ साइंसेज की शोधकर्ता कटरीना स्टाइलियानौ का कहना है कि सामान्यतौर पर खानपान के बारे में जो सलाह दी जाती है, उसमें लोगों को अपने व्यवहार बदलने के लिए प्रेरित करने का अभाव होता है और उनके खानपान के पर्यावरणीय असर के बारे में तो कुछ कहा ही नहीं जाता।

यह अध्ययन महामारी आधारित नए पोषण सूचकांक के आधार पर किया गया है। यह सूचकांक किसी चीज को एक बार खाने से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव को मिनट में इंगित करता है। पाजिटिव स्कोर वाले फूड स्वास्थ्य कारक और निगेटिव स्कोर वाले नुकसानदेह माने जाते हैं।
शोधकर्ताओं ने पोषण और पर्यावरणीय प्रभाव के आधार पर फूड को तीन कलर जोन- ग्रीन, येलो और रेड में बांटा है। ग्रीन जोन के फूड में वे खाद्य पदार्थ आते हैं, जो पोषण और पर्यावरणीय दोनों ही दृष्टि से फायदेमंद होते हैं। मतलब उसमें पोषण तत्व हों और उससे पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचता हो। इस जोन के फूड में मुख्यत: नट्स (बादाम जैसे मेवा), फल, सब्जियां, फलियां, साबूत अनाज तथा कुछ सी-फूड आते हैं।
रेड जोन में वे फूड आते हैं, जिनका पोषण और पर्यावरण दोनों पर असर होता है तथा इससे परहेज किया जाना चाहिए। इस जोन में मांस और प्रसंस्कृत मांस (बीफ, पोर्क आदि) आते हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि जो चीजें पोषण की दृष्टि से अच्छी हों तो जरूरी नहीं कि वे पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाएंगी। ऐसा भी हो सकता है कि कोई चीज पर्यावरण की दृष्टि से तो अच्छी हो, लेकिन उसमें पर्याप्त पोषण नहीं हो।
उनके मुताबिक, सामान्यतौर पर पाया गया है शाकाहारी भोजन मांसाहारी से अच्छा होता है। लेकिन इनमें भी अंतर पादपों और जंतुओं के आधार पर होता है। इसलिए कभी-कभी दोनों के बीच समन्वय भी बनाना पड़ता है, जिसे येलो जोन का फूड कहा जा सकता है।
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