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कृत्रिम अंगों के सहारे जिंदगी जीने वालों के लिए यह राहत भरी खबर है
वाशिंगटन, एएनआइ। कृत्रिम अंगों के सहारे जिंदगी जीने वालों के लिए यह राहत भरी खबर है। उन्हें अपने कृत्रिम अंगों को नियंत्रित करने में होने वाली परेशानियों से हद तक निजात मिल सकती है। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी नई तरकीब विकसित की है, जिससे ऐसे अंगों को बहुत ही सटीकता के साथ नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने मांसपेशियों के ऊतकों में छोटे चुंबकीय छोटी गोलियां (मोती के आकार वाली) डाली हैं, जो मांसपेशियों के सिकुड़ने की स्थिति में उसकी लंबाई सटीकता से साथ माप सकती है। इसी माप को तत्काल ही रोबोटिक कृत्रिम अंगों को प्रेषित किया जा सकता है।
यह अध्ययन साइंस रोबोटिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने इस नई रणनीति को मैग्नेटोमाइक्रोमेट्री (एमएम) नाम दिया है। अपने प्रयोग के जरिये इन्होंने दिखाया है कि इस विधि से प्राणियों की मांसपेशियों का त्वरित और सटीक मापन किया जा सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि किसी भी कारण से जिन लोगों के अंग काटने पड़ते हैं, उनके लिए यह नई तकनीक अगले कुछ वर्षों में एक वरदान साबित होगी।
बायोमेक्ट्रोनिक्स ग्रुप इन द मीडिया लैब के प्रमुख तथा शोध के वरिष्ठ लेखक प्रोफेसर ह्यूग हेर ने बताया कि हमें उम्मीद है कि इलेक्ट्रोमायोग्राफी का स्थान एमएम ले लेगा। इलेक्ट्रोमायोग्राफी के जरिये पेरिफेरल नर्वस सिस्टम को कृत्रिम अंगों से जोड़ा जाता है। ऐसी उम्मीद इस बात को लेकर है कि एमएम तकनीक में हमें उच्च गुणवत्ता वाले सिग्नल मिले हैं और इसके साथ ही यह न्यूनतम इनवेसिव (शरीर के अंदर डालना) तथा कम रेगुलटरी बाधा और खर्च वाला है।
मौजूदा कृत्रिम उपकरणों में व्यक्ति की मांसपेशियों का इलेक्टि्रकल मापन होता है और इसमें इलेक्ट्रोड्स का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे त्वचा की सतह से जोड़ा जाता है या फिर सर्जरी के जरिये उसे प्रत्यारोपित किया जाता है। सर्जरी के जरिये किया जाने वाल प्रत्यारोपण बहुत ही इनवेसिव और खर्चीला होता है। इन दोनों ही विधियों में इलेक्ट्रोमायोग्राफी (ईएमजी) का सिग्नल सिर्फ मांसपेशियों की इलेक्टि्रकल एक्टिविटी की सूचना देता है, न कि उनकी लंबाई या गति के बारे में।
अध्ययन के मुख्य लेखक कैमरन टेलर के मुताबिक, जब ईएमजी आधारित कंट्रोल का इस्तेमाल किया जाता है तो एक इंटरमीडिएट सिग्नल की भी जरूरत होती है। यह समझना पड़ता है कि मस्तिष्क मांसपेशी से असल में क्या करने को कह रहा है।
लेकिन एमआइटी की नई रणनीति का आइडिया इस पर आधारित है कि यदि सेंसर यह माप सके कि मांसपेशियां क्या कर रही हैं, तो इससे कृत्रिम अंगों को ज्यादा सटीकता के साथ कंट्रोल किया जा सकता है। इसी को हासिल करने के लिए शोधकर्ताओं ने मांसपेशियों में एक जोड़े चुंबक को डालने का निर्णय किया। यह मापने के बाद कि चुंबक एक-दूसरे के सापेक्ष किस प्रकार से आपस में गति करते हैं, शोधकर्ताओं ने इसका भी आकलन किया कि मांसपेशियां कितना और किस गति से सिकुड़ती हैं।
हेर और टेलर ने एक ऐसा अल्गोरिद्म भी विकसित किया, जिससे सेंसर को शरीर में चुंबक की स्थिति पता करने में लगने वाला समय काफी कम हो गया है। इससे एमएम के जरिये कृत्रिम अंगों को कंट्रोल करने में लगने वाले अधिक समय की बाधा भी दूर हो गई।
शोधकर्ताओं ने अपने अल्गोरिद्म की क्षमता का परीक्षण तुर्की में बछड़े की मांसपेशियों में चुंबक की स्थिति का पता लगाने के लिए किया। इसके लिए जिन चुंबकीय गोलियों का इस्तेमाल किया गया, उनका व्यास तीन मिलीमीटर था और उन्हें तीन सेंटीमीटर की दूरी पर डाला गया था। यदि इन चुंबकों को इससे कम दूरी पर शरीर में डाला जाता तो वे एक-दूसरे की तरफ जा सकते थे।
बछड़े के पैरों के बाहर मैग्नेटिक सेंसर का इस्तेमाल करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि टखने के जोड़ के हिलने-डुलने से चुंबकों की स्थिति 37 माइक्रोन (इंसानों के एक बाल जितना मोटा) तक की सटीकता के साथ पता चलता है और यह माप महज तीन मिलीसेकेंड में।
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