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शोधकर्ताओं ने दो ऐसे कैलकुलेटर बनाए हैं, जिनसे कोरोना संक्रमित रोगियों के अस्पताल में वेंटीलेटर की जरूरत या मौत के खतरे का पता
शोधकर्ताओं ने दो ऐसे कैलकुलेटर बनाए हैं, जिनसे कोरोना संक्रमित रोगियों के अस्पताल में वेंटीलेटर की जरूरत या मौत के खतरे का पता लगाया जा सकेगा। इन शोधकर्ताओं में एक भारतीय मूल के भी विज्ञानी हैं। ई-क्लिनिकल मेडिसीन नामक पत्रिका में प्रकाशित एक आलेख के मुताबिक, इन मॉडलों के माध्यम से डॉक्टर कोरोना संक्रमित रोगियों के खतरे को बेहतर तरीके से जान पाएंगे और आइसीयू में उपलब्ध क्षमता और संसाधनों का उपयुक्त इस्तेमाल कर पाएंगे।
शोधकर्ताओं में भारतीय मूल का भी एक विज्ञानी
मैसाच्यूट्स जनरल हॉस्पिटल (एमजीएच) के शोधकर्ता राजीव मल्होत्रा ने बताया कि रोगी की पूर्व मेडिकल हिस्ट्री, अहम लक्षण और भर्ती होने के समय विभिन्न तरह के जांच परिणामों के आधार पर हमने ऐसे मॉडल विकसित किए हैं, जिनसे हॉस्पिटल में यांत्रिक वेंटीलेशन की जरूरत और मौत के खतरे वाले रोगियों की पहचान कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि एक दूसरे अध्ययन में हमने 30 दिन और उससे पहले से भर्ती रोगियों के निष्कर्ष पर फोकस किया। शोध के मुख्य लेखक क्रिस्टोफर निकोल्सन के मुताबिक, अध्ययन के लिए कोरोना महामारी के पहले तीन महीने में पांच अस्पतालों में पहुंचे 1,042 संक्रमित मरीजों के चिकित्सीय सूचनाओं को कंपाइल किया गया। इन सूचनाओं को ऑनलाइन कैलकुलेटर में डालकर डॉक्टर कोरोना रोगियों के भर्ती होने के समय ही यह अंदाजा लगा पाएंगे कि किसे आइसीयू में देखभाल की जरूरत होगी।
ज्ञात तरीकों से 80 फीसद ज्यादा सटीक परिणाम देने वाला मॉडल
इसका निष्कर्ष पहले से ज्ञात तरीकों से 80 फीसद ज्यादा सटीक जानकारी देगा कि किसे वेंटीलेटर की जरूरत होगी या रोगी के जीवन पर क्या असर हो सकता है। शोधकर्ता को इस बात से हैरानी है कि इस अध्ययन में रोगी की उम्र का कोई खास महत्व नहीं है। यह पाया गया कि युवाओं और बुजुर्गो के अस्पताल में भर्ती होने पर वेंटीलेटर की जरूरत या उनके जीवन पर खतरे का उनकी उम्र से कोई सीधा संबंध नहीं है। यह पाया गया कि 25-34 वर्ष उम्र वर्ग के 59 फीसद रोगियों को 14 दिन से ज्यादा वेंटीलेटर की जरूरत पड़ी, जो उम्रदराज लोगों के बराबर ही था।
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