विश्व

शोध में हुआ खुलासा- डेढ़ डिग्री तक बढ़ सकता है अंटार्कटिका प्रायद्वीप का तापमान

Gulabi
19 March 2021 1:27 PM GMT
शोध में हुआ खुलासा- डेढ़ डिग्री तक बढ़ सकता है अंटार्कटिका प्रायद्वीप का तापमान
x
जलवायु परिवर्तन का असर वैसे तो पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है, लेकिन

जलवायु परिवर्तन का असर वैसे तो पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है, लेकिन इसका सबसे अधिक प्रभाव अंटार्कटिका प्रायद्वीप पर हो रहा है। इस वजह से दुनियाभर के वैज्ञानिक अंटार्कटिका में आए बदलावों को काफी गंभीरता से लेते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, साल 2044 तक इस प्रायद्वीप में जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान आधे से डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा।

बता दें कि यह अध्ययन क्लाइमेट डायनामिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने सिम्यूलेशन का विश्लेषण कर ये पाया कि 19 क्लाइमेट मॉडल इस बात को दर्शाते हैं कि अंटार्कटिका प्रायद्वीप में तापमान में बढ़ोत्तरी तय है। इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि इसी दौरान इस प्रयाद्वीप में वर्षण की मात्रा में भी 5 से 10 फीसदी की वृद्धि होने की संभावना है।
ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के बिर्ड पोलर क्लाइमेट सेंटर में रिसर्च प्रोफेसर और इस अध्ययन के प्रमुख डेविड ब्रोमविक बताते हैं कि उनकी टीम इस प्रायद्वीप में हो रहे बदलावों का अवलोकन कर रही है। प्रायद्वीप लगातार गर्म होते जा रहा है। ऐसे में नरम बर्फ की चट्टानें और ग्लेशियर पिघल कर ठोस बर्फ में बदल रहे हैं। इससे पहले भी हुए कई शोध इस बात का इशारा कर चुके हैं।
प्रोफेसर डेविड ब्रोमविक इसका कारण बताते हुए कहते हैं कि "अंटार्कटिका प्रायद्वीप के साथ समस्या यह है कि यह संकरा है, लेकिन इसकी पर्वत शृंखला ऊंची है। बड़े मॉडल पूरे महाद्वीप को अपने अध्ययन में शामिल करते हैं और इस तथ्य को अपने शोध में शामिल नहीं करते हैं। हमारा लक्ष्य इन अनुमानों को और ज्यादा विस्तृत जानकारी देना है।"
शोधकर्ताओं के मुताबिक, साल 1950 से अंटार्कटिका के पश्चिमी हिस्से सहित प्रायद्वीप पृथ्वी के सबसे तेजी से गर्म हाने वाले इलाकों में शामिल है। अगर यहां अधिक बारिश होती है, तो यहां ऊपरी बर्फ कम होगी, जो सूर्य की किरणों को प्रतिबिंबित कर वापस पहुंचाती है। ऐसे में इस इलाके के और ज्यादा गर्म होने की संभावना होगी, क्योंकि अवशोषित होने वाली रोशनी पूरे क्षेत्र का तापमान बढ़ा सकती है।
अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों का कहना है कि सटीक पूर्वानुमानों के लिए बेहतर क्लाइमेट मॉडल की जरूरत है। ठोस बर्फ या फिर थोड़ी पिघलने वाली बर्फ में सूर्य की रोशनी अंदर तक पहुंचेगी और साथ ही ज्यादा ऊर्जा और बर्फ पिघलाएगी। अभी तक ये देखने को मिला है कि यह रोशनी प्रायद्वीप पर जमे बर्फ पर हथौड़े की तरह काम करती है।






Next Story