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शोध: वेरिएंट प्रूफ बनाया जा सकता है कोरोना वैक्सीन को

Gulabi
16 Dec 2021 4:40 PM GMT
शोध: वेरिएंट प्रूफ बनाया जा सकता है कोरोना वैक्सीन को
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कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन को लेकर दुनिया में ज्यादा गंभीरता की जरूरत है
कोरोना वायरस (Coronavirus) के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron Variant) को लेकर दुनिया में ज्यादा गंभीरता की जरूरत है. ओमिक्रॉन के आगमन ने सबसे बड़ी बहस यह छेड़ दी है कि आखिर अब तक जो टीके लगाए जा चुके थे उनकी क्या कारगरता है. क्या वे केवल कुछ ही समय के लिए कारगर हैं या फिर पुराने वेरिएंट पर ही. इस बीच यनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, लॉस एंजेलिस (UCLA) के शोधकर्ताओं ने एक प्रकार की दुर्लभ लेकिन प्राकृतिक टी कोशिकाओं की खोज की है जो सार्सकोव-2 और अन्य कोरोना वायरस के प्रोटीन की पहचान कर सकती हैं. इस पड़ताल के नतीजे सुझा रहे हैं कि इस प्रोटीन का एक घटक,जिसे वायरल पॉलीमरेज कहते हैं, कोविड-19 के टीके (Covid-19 Vaccine) में जोड़ा जा सकता है जिससे प्रतिरोधक क्षमता की लंबी चल सकती है और यह वायरस के नए वेरिएंट से भी सुरक्षा प्रदान कर सकती है.
अधिकांश कोविड-19 वैक्सीन (Covid Vaccine) स्पाइक प्रोटीन में पाए जाने वाले हिस्से का उपयोग करती हैं जो वायरस की सतह पर पाया जाता है. इसी की वजह से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली एंटी बॉडी (Antibodies) पैदा करती है. लेकिन डेल्टा और ओमिक्रॉन (Omicron variant) जैसे नए वेरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में ही म्यूटेशन देखने को मिलता है. इससे वैक्सीन से पैदा हुईं एंटीबॉडी और प्रतिरोधी कोशिकाएं वायरस को अच्छे से नहीं पहचान पाएंगी. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
शोधकर्ताओं का कहना है कि नई पीढ़ी के टीकों (Covid Vaccine) को और ज्यादा मजबूत और व्यापक प्रतिरोध प्रतिक्रिया पैदा करने की क्षमता हासिल करने की जरूरत होगी जो वर्तमान और भविष्य में पैदा होने वाले वेरिएंट (Variants) पर भी कारगर हो सकें. इसका एक तरीका टीकों में अलग वायरल प्रोटीन के हिस्से को शामिल करना था. यह खास हिस्सा ऐसा होना चाहिए जिसमें स्पाइक प्रोटीन की तुलना में म्यूटेशन की गुंजाइश कम हो, और वह प्रतिरक्षा तंत्र में टी कोशिकाओं (T Cells) को सक्रिय भी कर सके.
टी कोशिकाएं (T Cells )अपनी सतह पर ऐसे अणु प्राप्तकर्ता (molecular receptors) से लैस होती हैं जो बाहरी प्रोटीन टुकड़ों की पहचान करने में सक्षम होते हैं. इन टुकड़ों या हिस्सों को एंटीजन (Antigen) कहते हैं. एंटीजन के मिलने पर ही अणु प्राप्तकर्ता खुद की प्रतिलिपियां बनाती हैं और अतिरिक्त प्रतिरोधी कोशिकाएं बनाती हैं जो तुरंत ही संक्रमित कोशिकाओं को मार देती हैं जबकि कुछ अन्य हमेशा के लिए शरीर में रह जाती हैं जिससे भविष्य के संक्रमणों से निपटा जा सके.
शोधकर्ताओं ने वायरल पॉलीमरेज प्रोटीन (viral polymerase protein) पर ध्यान केंद्रित किया जो ना केवल सार्सकोव-2 में मिलता है, बल्कि अन्य कोरोना वायरस (Coronavius) के साथ सार्स, मर्स, और समान्य जुकाम में भी मिलता है. वायरल पॉलीमरेज ऐसे इंजन की तरह काम करता है जिसका उपयोग कोरोना वायरस अपनी ही प्रतिलिपियों को बनाने के लिए इस्तेमाल में लाता है. इसी से संक्रमण फैलने की क्षमता आती है लेकिन वायरल के नए वेरिएंट में स्पाइक प्रोटीन (Spike protein) की तरह वायरल पॉलीमरेज में बदलाव या म्यूटेशन देखने को नहीं मिलता.
शोधकर्ताओं ने पॉलीमरेज (viral polymerase protein) की पहचान करने वाले रिसेप्टर्स वाली टी कोशिकाएं (T Cells) बनाने की क्षमता विकसित की. शोधकर्ता अब इससे आगे का अध्ययन कर रहे हैं जिससे वायरल पॉलीमरेज को नये वैक्सीन (Vaccine) घटक के तौर पर उपयोग में लाया जा सके.यह अध्ययन सेल रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
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