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शोध: कोरोना मरीजों में 11 महीने बाद तक मिली एंटीबॉडी, जीवनभर मिल सकती है सुरक्षा

Neha Dani
27 May 2021 5:08 AM GMT
शोध: कोरोना मरीजों में 11 महीने बाद तक मिली एंटीबॉडी, जीवनभर मिल सकती है सुरक्षा
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जिन लोगों में कोरोना वायरस का गंभीर संक्रमण हुआ है, उनके अंदर कम सुरक्षा रहेगी।

कोरोना वायरस के कहर से जूझ रही दुनिया के लिए अमेरिका से एक बेहद अच्‍छी खबर आई है। एक ताजा शोध में पता चला है कि कोरोना वायरस के माइल्‍ड केसेस में एंटीबॉडी संक्रमण खत्‍म होने के करीब एक साल बाद तक बनी रहती है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्‍कूल ऑफ मेडिस‍िन के शोधकर्ताओं ने कहा है कि महामारी की शुरुआत में कहा गया था कि कोरोना वायरस एंटीबॉडी बहुत जल्‍द खत्‍म हो जाती है जो कि भ्रामक है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि उनकी जांच यह बताती है कि बोन मैरो में मौजूद इम्‍यून सेल्‍स अब भी एंटीबॉडी बना रहे हैं जबकि खून के अंदर उनका स्‍तर गिर गया है। शोध के परिणामों से पता चला है कि कोरोना से पीड़‍ित रहे मरीजों में इस वायरस को बेअसर करने वाली एंटीबॉडी 7 से 11 महीने बाद भी मौजूद है। शोध टीम ने यह भी कहा क‍ि इस एंटीबॉडी से जीवनभर सुरक्षा मिल सकती है।
'गंभीर संक्रमण के बाद एंटीबॉडी के स्‍तर का नीचे जाना सामान्‍य बात'
शोध के वरिष्‍ठ लेखक डॉक्‍टर अली इल्‍लेबेडी ने कहा, 'पहले ऐसी रिपोर्ट आई थीं कि एंटीबॉडी संक्रमण के कुछ दिनों बाद ही खत्‍म हो जाती है और मुख्‍यधारा की मीडिया ने इसका मतलब यह निकाल लिया कि रोग प्रतिरोधक क्षमता लंबे समय तक नहीं रहती है। लेकिन यह आंकड़ों की गलत व्‍याख्‍या थी। गंभीर संक्रमण के बाद एंटीबॉडी के स्‍तर का नीचे जाना सामान्‍य बात है लेकिन यह शून्‍य के स्‍तर तक नहीं पहुंच जाता है। एंटीबॉडी स्थिर हो जाती है।'
प्रफेसर अली इल्‍लेबेडी ने कहा कि हमने अपने शोध में पाया कि एंटीबॉडी बनाने वाली कोशिकाएं मरीज के अंदर पहली बार लक्षण आने के 11 महीने बाद तक बनी रहती है। ये कोशिकाएं जिंदा रहेंगी और व्‍यक्ति के जीवनभर में एंटीबॉडी बनाती रहेंगी। यह लंबे समय तक इम्‍युनिटी के बने रहने का मजबूत साक्ष्‍य है। संक्रमण के दौरान कम समय तक जिंदा रहने वाली इम्‍यून कोशिकाएं तेजी से बनती हैं ताकि शुरुआती दौर की सुरक्षा देने वाली एंटीबॉडी शरीर में आ सके।
'माइल्‍ड संक्रमण वाले मरीजों में जीवनभर रह सकती है सुरक्षा'
उन्‍होंने कहा कि इन इम्‍यून सेल्‍स को लंबे समय तक जिंदा रहने वाले प्‍लाज्‍मा सेल्‍स कहा जाता है। संक्रमण के बाद यह रिजर्व में बना रहता है। प्रफेसर अली इल्‍लेबेडी ने कहा कि इनमें से ज्‍यादातर प्‍लाज्‍मा सेल्‍स बोन मैरो के अंदर चला जाता है। जर्नल नेचर में प्रकाशित इस शोध में ऐसे 77 लोगों को शामिल किया गया जिसमें माइल्‍ड संक्रमण था। इनमें से केवल 6 लोगों को ही अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था। वॉलंटियर्स ने प्रत्‍येक तीन महीने पर अपने ब्‍लड सेंपल दिए।
शोध में पाया गया कि हालांकि एंटीबॉडी का स्‍तर संक्रमण के पहले कुछ महीनों में गिर गया लेकिन वह खत्‍म नहीं हुआ। ये एंटीबॉडी स्थिर हो गए। इन मरीजों में 11 महीने बाद भी एंटीबॉडी पाया गया। शोध टीम ने कहा कि जिन लोगों में कोरोना वायरस का माइल्‍ड संक्रमण रहा हो उनके अंदर जीवनभर सुरक्षा रह सकती है। यह भी संभव है कि जिन लोगों में कोरोना वायरस का गंभीर संक्रमण हुआ है, उनके अंदर कम सुरक्षा रहेगी।


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