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प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु थिच नहत हान्ह का 95 वर्ष की उम्र में निधन

Bhumika Sahu
22 Jan 2022 4:12 AM GMT
प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु थिच नहत हान्ह का 95 वर्ष की उम्र में निधन
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Buddhist monk Thich Nhat Hanh died : हान्ह के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से बताया गया कि 'हमारे प्रिय शिक्षक थिच नहत हान्ह का वियतनाम के ह्यू में तू हिउ मंदिर में रात 12 बजे निधन हो गया।' हान्ह ने उसी मंदिर में अंतिम सांस ली, जहां से उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की थी।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। विश्व प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु, शांति कार्यकर्ता, कवि और आध्यात्मिक नेता थिच नहत हान्ह का शनिवार रात 95 साल की उम्र में वियतनाम में निधन हो गया। उन्होंने 1960 के दशक में अमेरिका-वियतनाम युद्ध का कड़ा विरोध किया था।

हान्ह के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से बताया गया कि 'हमारे प्रिय शिक्षक थिच नहत हान्ह का वियतनाम के ह्यू में तू हिउ मंदिर में रात 12 बजे निधन हो गया।' हान्ह ने उसी मंदिर में अंतिम सांस ली, जहां से उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की थी। उन्होंने विश्व शांति की खातिर दशकों तक काम किया। उन्हें पश्चिमी देशों में बौद्ध धर्म के अग्रदूत के रूप में जाना जाता था। उन्होंने फ्रांस में 'प्लम विलेज' मठ की स्थापना की। 2013 में एक व्याख्यान में उन्होंने कहा था कि सुख व दुख की कलाएं हमेशा एक साथ चलती हैं, हमें दुख या पीड़ा का अच्छे से इस्तेमाल करते आना चाहिए, ताकि आनंद व खुशी पैदा की जा सके।
हान्ह सात भाषाएं जानते थे। उन्होंने 1960 के दशक के आरंभ में अमेरिका की प्रिंसटन व कोलंबिया यूनिवर्सिटी में व्याख्यान दिया था और 1963 में वियतनाम लौटे और अमेरिका-वियतनाम के बीच 1963 के युद्ध के खिलाफ बढ़ते विरोध का नेतृत्व किया था। इस दौरान कई बौद्ध भिक्षुओं ने आत्म दाह कर लिया था। 1975 में उन्होंने एक लेख में कहा था कि 'मैंने कम्युनिस्टों व कम्युनिस्ट विरोधियों को एक दूसरे की हत्याएं करते व तबाह करते देखा था, क्योंकि ये मानते हैं कि सत्य पर उनका ही एकाधिकार है। मेरी आवाज को बमों व मोर्टारों के शोर में गुम कर दिया गया।'
मार्टिन लूथर किंग को युद्ध के खिलाफ बोलने को राजी किया
हान्ह ने 1960 के दशक में वियतनाम युद्ध के बीच अमेरिकी नागरिक अधिकार वादी नेता मार्टिन लूथर किंग से मुलाकात की थी। उन्होंने किंग को युद्ध के खिलाफ बोलने के लिए राजी किया था। मार्टिन लूथर किंग ने उन्हें 'शांति और अहिंसा का दूत' बताया और उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया था। हालांकि किंग से मुलाकात करने के कारण दक्षिण वियतनाम सरकार ने उनके स्वदेश लौटने पर पाबंदी लगा दी थी।


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