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चीन और भारत के संबंध काफी तल्‍ख, मोदी सरकार-2 में ड्रैगन को लेकर क्‍या है बड़ा कूटनीतिक बदलाव

Neha Dani
1 Oct 2021 8:24 AM GMT
चीन और भारत के संबंध काफी तल्‍ख, मोदी सरकार-2 में ड्रैगन को लेकर क्‍या है बड़ा कूटनीतिक बदलाव
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अलबत्‍ता भारत ने एलएसी पर चीन के प्रति जो रणनीति अपनाई है, उसका प्रभाव दिखेगा।

हाल के दिनों में एक बार फ‍िर चीन और भारत के संबंध काफी तल्‍ख हो गए हैं। दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात है। इस तरह के हालात में भी भारत पूरी तरह से संयम बरत रहा है। वह चालबाज चीन के हर गतिविधियों पर पैनी नजर बनाए हुए है। ड्रैगन लाइन आफ एक्‍चुअल कंट्रोल यानी एलएसी पर अपने सैनिकों की तादाद बढ़ा रहा है। वह एलएसी पर हथियारों का जखीरा जुटा रहा है। एलएसी में बदलाव के लिए वह भारत पर पूरी तरह से दबाव बना रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत चीन की इस चुनौती से कैसे निपटेगा। भारत की सामरिक रणनीति क्‍या है। भारत ने चीन के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव किया है। चीन को लेकर मोदी सरकार-1 और मोदी सरकार-2 की कूटनीति में क्‍या बदलाव आया है। आइए जानते हैं कि प्रोफेसर हर्ष वी पंत (आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में निदेशक, अध्ययन और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख) इन सारे घटनाक्रमों को किस रूप में देखते हैं।

मोदी सरकार-2 में चीन को लेकर भारत की कूटनीति में कोई बदलाव देखते हैं आप ?
देख‍िए, कूटनीति कोई पत्‍थर पर अंकित अमिट लकीर नहीं होती। इसलिए कूटनीति का मतलब होता है कि हमेशा परिवर्तन के साथ चले। खासकर तब जब दुनिया में बहुत तेजी से घटनाक्रमों में बदलाव हो रहे हैं। शीत युद्ध के बाद हाल के दिनों में सामरिक और रणनीतिक रूप से दुनिया में तेजी से परिवर्तन हुआ है। मसलन, वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो ऐसा लगा था कि भारत-चीन संबंध सुधरने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। चीन के लोबसांग सांगे उनके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे, लेकिन‍ बाद के दिनों में दोनों देशों के संबंध काफी तल्‍ख हो चुके हैं। चीन ने भारत की संवेदनशीलता को कमजोरी के रूप में देखा तो भारत ने भी उसे माकूल जवाब दिया। निश्‍चित रूप से मोदी सरकार-2 ने चीन के प्रति अपनी कूटनीति में बड़ा बदलाव किया है। अब चीन के प्रति भारत की नीति डिफेंसिव नहीं रही। वह एक हद तक आक्रामक और जवाबी कार्रवाई की ओर बढ़ी है।
क्‍या मोदी सरकार-2 चीन को सीधा संदेश दे रही है ?
मोदी सरकार ने चीन से संबंध सुधारने की बड़ी कोशिश की है। मोदी सरकार-1 में ऐसा लगा भी था कि दोनों देशों के संबंध काफी हद तक ठीक हो रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार-2 में एक घटनाक्रम ने पूरी तस्‍वीर बदल दी। पूर्वी लद्दाख में चीनी आक्रामकता से दोनों देशों के संबंध बेहद तल्‍ख हो गए हैं। चीन के साथ संबंधों को ठीक करने की जिम्‍मेदारी केवल भारत की ही नहीं है। चीन को भी यह सोचना होगा समझना होगा कि यह 1962 का दौर नहीं है। भारत का सीमा पर जो दावा है वह वाजिब है, लेकिन चीनी दावा समय के साथ बदलता रहा है।
मोदी सरकार-1 और मोदी सरकार-2 की कूटनीति में बड़ा अंतर आया है। चीन के प्रति उदार रवैया रखने वाली मोदी सरकार-1 के दृष्टिकोण में यह बदलाव देखा जा सकता है। लद्दाख प्रकरण पर प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ी हिम्‍मत दिखाई है। यह बदली हुई परिस्थिति का नतीजा है। उन्‍होंने चीन के साथ भी दिखा दिया कि सैन्‍य हमलों का जवाब वार्ता नहीं हो सकती। वह सैन्‍य कार्रवाई ही होगी। लद्दाख प्रकरण में जो हुआ वह उस रणनीति का हिस्‍सा था। उसे इसी रूप में देखना चाहिए। भारत अपने पड़ोसी दोस्‍तों के साथ दोस्‍ताना संबंध कायम रखने में विश्‍वास करता है। भारत विवादित मुद्दों का वार्ता के जरिए समाधान चाहता है, लेकिन उसकी इस नीति को कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए। इसे मोदी ने करके दिखाया है।
पीएम मादी ने चीन की चिंता किए बगैर दलाई लामा के जन्‍मदिन पर बधाई दी। यह चीन को एक अप्रत्‍यक्ष संदेश था। इस रणनीति से यह साफ था कि अगर चीन भारत के संवेदनशील विषयों को उठता है तो भारत के पास भी ऐसे मौके हैं। भारत इस संदेश को देने में सफल भी रहा है। इसके पूर्व भारत सरकार ऐसा करने से कतराती रहीं हैं। मोदी ने यह हिम्‍मत दिखाई। मोदी को दलाई लामा को बधाई देना एक स्‍पष्‍ट संदेश है। ऐसा करके मोदी ने साफ कर दिया कि चीन को भारत की संवेदनशीलता की परवाह करनी चाहिए। दूसरे, मोदी ने अपने इस कदम से भारत में एक प्रवासी तिब्‍बत समुदाय को भी संदेश दिया था।
क्‍या भारत को अपनी सीमा पर आधारभूत संरचना का विस्‍तार करना चाहिए ?
बिल्‍कुल, जिस तरह से चीन भारत से लगी सीमा के पास बड़े पैमाने पर आधारभूत संरचना बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है। भारत को भी अपनी उतनी ही तेजी से काम करना चाहिए। मोदी सरकार-2 इस दिशा में सही काम कर रही है। चीन की यह तैयारी अभी की नहीं है। चीन बीते दो दशकों से एलएसी के समीप आधारभूत ढांचे को तैयार कर रहा है। उसने पूरी सीमा को हवाई पट्टियों से जोड़ने का काम भी किया है। इन हवाई पट्ट‍ियों से उसके लड़ाकू विमान और हेलीकाप्‍टर उड़ान भर सकते हैं। इतना ही नहीं चीन ने भारत से लगी सीमा पर सैनिकों की संख्‍या में भारी इजाफा किया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक लाइन आफ एक्‍चुअल कंट्रोल यानी एलएसी पर 50 हजार अतिरिक्‍त सैनिक तैनात किए हैं। इस मामले में चीन को संयम से काम लेना चाहिए, वरना हालात बिगड़ सकते हैं।
दोनों देशों के संबंधों को सामान्‍य करने में कमांडर स्‍तर की वार्ता कितनी कामयाब है ?
दरअसल, चीन ने भारत के प्रति जो धारणा 1950 के दशक में बनाई थी। संयोग या दुर्योग से वह आज भी उस पर कायम है। चीन का यह समझना होगा कि सेना के कमांडरों के स्‍तर पर होने वाली वार्ता बेशक वह जारी रखे, लेकिन उसे व्‍यहारिक कदम भी उठाने होंगे। अब भारत और चीन के रिश्‍ते इस कदर खराब हो गए हैं कि कमांडर स्‍तर की वार्ता से बहुत कुछ हासिल या सुलझने वाल नहीं है। अलबत्‍ता भारत ने एलएसी पर चीन के प्रति जो रणनीति अपनाई है, उसका प्रभाव दिखेगा।


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