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क्षेत्रीय अस्थिरता ने यहां एक नए संकट को दिया जन्‍म, भारत के लिए खतरे की घंटी

Neha Dani
29 Sep 2021 10:49 AM GMT
क्षेत्रीय अस्थिरता ने यहां एक नए संकट को दिया जन्‍म, भारत के लिए खतरे की घंटी
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यही कारण है कि हाल के दिनों में इंडो पैसिफ‍िक क्षेत्र में कई छोटे संगठन अस्तित्‍व में आए।

पाकिस्‍तान और रूस के बीच जारी सैन्‍याभ्‍यास के बाद एक बार यह सवाल फ‍िर उठ गया है कि क्‍या यह भारत के लिए खतरे की घंटी है। क्‍या दक्षिण एशियाई क्षेत्र विश्‍व की महाशक्तियों के लिए एक महासंग्राम का अखाड़ा बन चुका है। कहीं यह एक नए शीत युद्ध की दस्‍तक तो नहीं। एशियाई क्षेत्र में नए-नए क्षेत्रीय संगठनों के उदय और सैन्‍य गठबंधन और सैन्‍य अभ्‍यासों के चलते दक्षिण एशिया का क्षेत्रीय शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है। क्षेत्रीय अस्थिरता ने यहां एक नए संकट को जन्‍म दिया है। ऐसे में भारत के समक्ष क्‍या होगी बड़ी चुनौती। जानतें हैं इस सभी मसलों पर प्रो. हर्ष वी पंत (आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में निदेशक, अध्ययन और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख) की क्‍या है राय।

रूस-पाक युद्धाभ्‍यास को आप किस रूप में देखते हैं ?
देखिए, भारत और रूस की निकटता भारतीय रणनीति के लिहाज से बिल्‍कुल ठीक नहीं है। शीत युद्ध के दौरान से रूस, भारत के लिए बेहद अहम रहा है। दोनों देशों के बीच सामरिक और रणनीतिक बड़ी साझेदारी है। रूस ने कई मौकों पर भारत का खुलकर साथ दिया है। ताजा अंतरराष्‍ट्रीय परिदृश्‍य को देखते हुए भारत के समक्ष अपने संबंधों को सहेज पाना एक बड़ी चुनौती है। इसे समझना होगा।
क्‍या यह भारत के लिए खतरे की घंटी है ?
इस समस्‍या की जड़ कहीं न कहीं चीन और पाक‍िस्‍तान में है। चीन जिस तरह से अपने आप को एक महाशक्ति के रूप में स्‍थाप‍ित करने की कोशिश में जुटा है, उससे पूरे एशियाई क्षेत्र में एक नई चुनौती सामने आई है। दक्षिण एशियाई क्षेत्र भी अछूता नहीं है। चीन की विस्‍तारवादी नीति से भारत समेत इंडो पैसिफ‍िक देशों के समक्ष अपनी संप्रभुता को बचाए रखने की बड़ी चुनौती सामने आई है। चीन के इस वर्चस्‍व को खत्‍म करने के लिए, अब इस क्षेत्र में अमेरिका पूरी तरह से कूद गया है। अमेरिका ने पूरा ध्‍यान चीन पर फोकस किया है।
क्षेत्रीय अस्थिरता के लिए चीन कितना दोषी ?
1- देख‍िए, अगर आप हाल के दिनों में चीन की गति‍विधियों पर ध्‍यान दें तो यह प्रमाणित हो जाएगा कि इसके लिए चीन पूरी तरह से कसूरवार है। चीन-पाकिस्तान इकनामिक कारिडोर परियोजना हो या दक्ष‍िण चीन सागर, इंडो पैसिफ‍िक और प्रशांत क्षेत्र में ड्रैगन की दिलचस्‍पी और वर्चस्‍व की होड़, इसने भारत समेत तमाम मुल्‍कों की संप्रभुता पर ही सकंट उत्‍पन्‍न कर द‍िया है।
2- उधर, मौजूदा रूस की स्थिति अब पूर्व सोवियय संघ की तरह नहीं है। वह अब उस तरह से शक्तिशाली नहीं रहा। रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन अपनी आंतरिक राजनीति में भी व्‍यस्‍त है। ऐसे में सवाल यह है कि चीन पर लगाम कौन लगाए। चीन के वर्चस्‍व को खत्‍म करने के लिए अमेरिका का इस क्षेत्र में कूदना लाजमी है। भारत समेत चीन से पीड़‍ित अन्‍य मुल्‍क चाहे-अनचाहे अमेरिका के साथ शामिल हो गए। यही कारण है कि हाल के दिनों में इंडो पैसिफ‍िक क्षेत्र में कई छोटे संगठन अस्तित्‍व में आए।

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