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तालिबान के लिए भी मुश्किलें बढ़ा सकती है और भारत जैसे पड़ोसी देश के लिए भी.
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर उन लोगों में से एक है जिन्होंने तालिबान का गठन किया था. वो बरादर जो तालिबान की हर अहम लड़ाई का हिस्सा रहा, उसपर काबुल में राष्ट्रपति भवन में बरसाए गए लात-घूंसे. खबर है कि तालिबान की सरकार में हक्कानी गुट का वर्चस्व इस कदर बढ़ गया है कि उसी के एक कमांडर ने बरादर पर लात घूंसे बरसा दिए.
आपको याद होगा कि पिछले हफ्ते बरादर की मौत तक की खबर आयी थी लेकिन बाद में बरादर ने वीडियो जारी करके उन खबरों का खंडन कर दिया था. लेकिन अब अमेरिकन मीडिया में ये खबर सुर्खियों में है कि काबुल में राष्ट्रपति भवन में बरादर के साथ मारपीट भी हुई और गोलियां भी चलीं.
क्या है पूरा मामला, यहां समझिए
दुनिया जानती है कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर तालिबान का प्रमुख चेहरा रहा है. अमेरिका के साथ बातचीत में भी वो लगातार शामिल रहा. अफगानिस्तान छोड़कर गए अमेरिका और उसके सहयोगियों को उम्मीद थी कि मुल्ला अब्दुल गनी बरादर अफगानिस्तान में तालिबान सरकार की आवाज होगा. ये उम्मीद थी कि वो तालिबानी कैबिनेट में गैर-तालिबान नेता और जातीय अल्पसंख्यकों को भी हिस्सा देगा. अंग्रेजी अखबार ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बरादर को तालिबान में 'सॉफ्ट स्टैंड' वाला नेता माना जाता है और अमेरिका और कई देशों को उम्मीद थी कि देश की कमान बरादर के हाथ में ही सौंपी जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
जब अंतरिम सरकार की लिस्ट आई तो खुद बरादर को डिप्टी पीएम का पद ही मिला. तर्क ये दिया गया कि मुल्ला बरादर अमेरिका के दबाव में आ सकता है और आने वाले समय में यह तालिबान की सरकार के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. ऐसा कहने वाले मुख्य रूप से पाकिस्तान समर्थित हक्कानी गुट के नेता थे जिन्हें अंतरिम सरकार में गृह मंत्रालय समेत चार अहम मंत्रालय मिले हैं. सिराजुद्दीन हक्कानी, जो आतंकवाद के लिए एफबीआई की मोस्ट वांटेड सूची में हैं, को कार्यवाहक गृह मंत्री बनाया गया.
कैसे हुई इस विवाद की शुरुआत
तालिबान के भीतर आंतरिक फूट की खबरों के बीच, सितंबर की शुरुआत में काबुल में राष्ट्रपति भवन में कैबिनेट को लेकर अहम बैठक हो रही थी. खबरों के मुताबिक इस बैठक में बरादर बार-बार ऐसे कैबिनेट पर जोर दे रहा था जिसमें गैर-तालिबान नेता और जातीय अल्पसंख्यक शामिल हों. बरादर का तर्क था कि दुनिया में तालिबान सरकार की मान्यता के लिए समावेशी सरकार बेहद जरूरी है. लेकिन हक्कानी गुट से बरादर की ये बातें बर्दाश्त नहीं हुई.
बहस के बीच अचानक हक्कानी नेता खलील उल रहमान हक्कानी अपनी कुर्सी से उठा और बरादर पर घूंसे बरसाने लगा. मीडिया रिपोर्ट्स ये दावा करती हैं कि दोनों के बॉडीगार्ड्स ने भी एक-दूसरे पर गोलियां भी बरसाईं, जिसमें कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. इसके बाद बैठक को बीच में ही छोड़कर मुल्ला बरादर तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा से बात करने के लिए काबुल छोड़कर कंधार चला गया. इसके बाद ही पिछले हफ्ते ये खबरें आयी थीं कि बरादर बुरी तरह घायल है. जिसे बाद में बरादर ने अपना वीडियो जारी कर खंडन किया.
मुल्ला बरादर को साइडलाइन कर दिया
ये साफ है कि वो मुल्ला बरादर जो कुछ ही वक्त पहले तक तालिबान का सार्वजनिक चेहरा था. सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रपित भवन की इस घटना के बाद उस मुल्ला बरादर को साइडलाइन कर दिया गया है. इसलिए लगता नहीं कि विवाद थमेगा. बरादर के साइडलाइन होने से पश्चिमी देशों को भी दिक्कत है क्योंकि शांति वार्ता का मुख्य चेहरा बरादर ही था.
इसके मायने साफ हैं कि पाकिस्तान समर्थित हक्कानी गुट अफगानिस्तान सरकार में बेहद मजबूत हो चुका है. समावेशी सरकार की बात बिल्कुल पीछे रह गई. आतंकी हक्कानी गुट की मजबूत होती मौजूदगी तालिबान के लिए भी मुश्किलें बढ़ा सकती है और भारत जैसे पड़ोसी देश के लिए भी.
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