विश्व

राष्ट्रपति राजपक्षे ने कहा- भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होने देंगे अपनी जमीन का इस्तेमाल

Neha Dani
6 Oct 2021 3:44 AM GMT
राष्ट्रपति राजपक्षे ने कहा- भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं होने देंगे अपनी जमीन का इस्तेमाल
x
जिसे 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद पेश किया गया था।

श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने मंगलवार को कहा कि उनका देश किसी भी ऐसी गतिविधि के लिए अपनी भूमि का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देगा जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा हो। उन्होंने यह आश्वासन विदेशी सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के साथ हुई मुलाकात में दिया। राजपक्षे ने इस दौरान चीन और कोलंबों के संबंधों के बारे में भी विस्तार से बताया और उन्हें इस बारे में किसी तरह का संदेह नहीं करने को कहा। द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा के लिए विदेश सचिव चार दिवसीय यात्रा पर श्रीलंका गए हैं। उन्होंने अपनी यात्रा के आखिरी दिन राष्ट्रपति से मुलाकात की। बैठक राष्ट्रपति के संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाग लेकर अमेरिका से लौटने के एक दिन बाद हुई है।

राजपक्षे ने विदेश सचिव को बताया कि उनकी सरकार ने भारतीय निवेशकों को देश में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया है। साथ ही सरकार त्रिंकोमाली तेल टैंकरों से जुड़े विवाद को इस तरह हल करना चाहती है, जिससे दोनों देशों को लाभ हो। बता दें कि त्रिंकोमाली स्थित बंदरगाह में एक तेल का कुआं जो दशकों से दोनों देशों के बीच आर्थिक साझेदारी की प्रमुख कड़ी है। राष्ट्रपति राजपक्षे ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि हिंद महासागर को शांति क्षेत्र घोषित करने के 1971 के प्रस्ताव का भारत समर्थन करेगा।
दरअसल, चीन श्रीलंका में बंदरगाहों सहित विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में अरबों डालर का निवेश कर रहा है। कोरोना महामारी के चलते दबाव में आई श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को भी वह वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। श्रीलंका ड्रैगन की वन बेल्ट वन रोड के लिए भी महत्वपूर्ण है। चीन की कंपनियों ने वहां एक रणनीतिक बंदरगाह हंबनटोटा बनाया था, लेकिन जब श्रीलंका उसका कर्ज चुकाने में सक्षम नहीं हुआ तो 2017 में बीजिंग को 99 साल के पट्टे पर सौंप दिया। यह भी भारत के लिए चिंता का सबब है। भारत कोलंबो के तट पर चीन की कंपनियों द्वारा एक नए शहर बसाने की योजना से भी चिंतित है।
श्रृंगला ने उठाया 13वें संशोधन का मुद्दा
विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने मंगलवार को श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे के समक्ष 13वें संशोधन का मुद्दा उठाया और शक्तियों के हस्तांतरण तथा जल्द से जल्द प्रांतीय परिषद के चुनाव कराने सहित इसके प्रविधानों के पूर्ण कार्यान्वयन के भारत के रुख को दोहराया। तेरहवें संशोधन में तमिल समुदाय को सत्ता के हस्तांतरण का प्रविधान है। भारत 13वें संशोधन को लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव बना रहा है, जिसे 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद पेश किया गया था।

Next Story