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पीएम लिज ट्रस ने फ्रैकिंग पर लगा प्रतिबंध हटाया, देश के बाहर भी हो रही फैसले की आलोचना

Neha Dani
23 Sep 2022 11:30 AM GMT
पीएम लिज ट्रस ने फ्रैकिंग पर लगा प्रतिबंध हटाया, देश के बाहर भी हो रही फैसले की आलोचना
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पर्यावरणविदों के इन्‍हीं तर्कों की बदौलत ब्रिटेन के फैसले पर कई देशों में नाराजगी बनी हुई है।

रूस द्वारा गैस सप्‍लाई में आई रुकावट की वजह से पूरा यूरोप एनर्जी क्राइसेस से जूझ रहा है। ब्रिटेन भी इससे अछूता नहीं है। ऊर्जा संकट से जूझती ब्रिटेन की सरकार ने इसको देखते हुए एक बड़ा फैसला लिया है। पीएम लिज ट्रस ने फ्रैकिंग पर लगा प्रतिबंध हटा लिया है। इसकी वजह न सिर्फ ब्रिटेन के पर्यावरणविद गुस्‍से में हैं बल्कि दुनिया के कई दूसरे देशों में भी ब्रिटेन के इस फैसले का विरोध हो रहा है। ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर ये फ्रैकिंग है क्‍या।

क्‍या है ये पूरी प्रकिया
फ्रैकिंग दरअसल, जमीन की गहराई से प्राकृतिक पानी, गैस और तेल निकालने की प्रक्रिया है। इस तरह की ड्रिलिंग में पानी को कुछ केमिकल और कुछ दूसरी चीजों के साथ हाई प्रेशर पर जमीन में भेजा जाता है। इससे जमीन के अंदर मौजूद चट्टानों में दरार आ जाती है। इस प्रक्रिया से निकलने वाली गैस को फिर अलग एकत्रित किया जाता है। करीब 5 दिनों तक चलने वाली इस प्रक्रिया के बाद तेल के कुएं को दोहन के लिए तैयार मान लिया जाता है। सामान्‍य शब्‍दों में ये ड्रिलिंग प्रक्रिया है जिसको हाइड्रालिक फ्रैक्‍चरिंग भी कहा जाता है।
2019 में भूकंप आने के बाद लगा था बैन
2019 में जब इस प्रक्रिया पर बैन लगाया गया था तब कुछ जगहों पर भूकंप आने की जानकारी सामने आई थी। इस वजह से ही तीन वर्ष पहले ब्रिटेन ने ये कहते हुए इस पर प्रतिबंध लगाया था कि इससे भूकंप आने का खतरा बना रहता है। लेकिन, अब जबकि सरकार ने इस प्रतिबंध को हटाया है तो पर्यावरणविद सरकार पर सवाल दाग रहे हैं। पर्यावरणविदों की मानें तो इसका सीधा असर लोगों की सेहत पर भी पड़ता है। इसको लेकर 2019 में एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें इस प्रक्रिया के सेहत पर सीधे पड़ने वाले असर को बताया गया था। इस रिपोर्ट में अर्बोशन का खतरा, माईग्रेन की समस्‍या, थकान और स्किन से जुड़ी दूसरी बीमारियां समेत अविकसित बच्‍चों का जन्‍म का खतरा बताया गया था।
क्‍या कहते हैं पर्यावरणविद
पर्यावरणविदों का यहां तक कहना है कि इससे भूजल के साथ हवा भी प्रदूषित होती है। नेशनल ओश्यानिक एंड एटमॉसफरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) की एक रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि अमेरिका में तेल के एक कुए से इतनी मीथेन फ्रैकिंग के दौरान निकलती है जितनी मीथेन 10 से 30 लाख कार सालाना निकालती हैं। पर्यावरणविदों के इन्‍हीं तर्कों की बदौलत ब्रिटेन के फैसले पर कई देशों में नाराजगी बनी हुई है।
फैसले पर ब्रिटेन का तर्क
इस मसले पर ब्रिटेन की सरकार का तर्क है कि ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने के लिए उसने ये फैसला लिया है। जिस वक्‍त फ्रैकिंग पर बैन किया गया था उस वक्‍त देश की कमान बोरिस जानसन के हाथों में थी। ब्रिटेन की सरकार का ये भी कहना है कि रूस से गैस सप्‍लाई बाधित होने की वजह से गैस की कीमतों में जबरदस्‍त उछाल आ गया है। इससे एक असंतुलन की स्थिति पैदा हो गई है।
फैसले के पीछे ब्रिटेन का मकसद
इस बारे में ब्रिटेन के ऊर्जा मंत्री का बयान भी ध्‍यान देने योग्‍य है। उनका कहना है कि वर्ष 2040 तक ब्रिटेन केा ऊर्जा निर्यातक बनाना है। इसलिए सरकार सभी विकल्‍पों पर ध्‍यान दे रही है। आने वाले दिनों में सरकार गैस उत्‍पादन के लिए करीब सौ नए लाइसेंस देने वाली है। सरकार के इस फैसले का देश की संसद में ही कड़ा विरोध हो रहा है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि वर्ष 2019 में कंजरवेटिव पार्टी ने ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में जो वादा किया था उसको एक फैसले से तोउ़ दिया है। लेबर पार्टी ने इस फैसले के लिए सरकार की कड़ी आलोचना की है। (डाइचे वेले और बीबीसी से मिली जानकारी के आधार पर)
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