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इमरान खान की तरफ से दायर की गई याचिका, अविश्वास प्रस्ताव पर स्पीकर के फैसले पर समीक्षा की जाए
jantaserishta.com
13 May 2022 6:02 PM GMT
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पाकिस्तान में महीनेभर पहले अविश्वास प्रस्ताव हारने के बाद सत्ता से बाहर हुए इमरान खान ने अभी भी हिम्मत नहीं हारी है. उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर तत्कालीन नेशनल असेंबली के अध्यक्ष के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के 7 अप्रैल के निर्णय को चुनौती दी और एक रिव्यू पिटीशन (समीक्षा याचिका) दायर की है. पूर्व प्रधानमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले की समीक्षा करने की मांग की है.
दरअसल, इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी से जुड़े सूरी ने 3 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा था कि ये सरकार को गिराने के लिए एक 'विदेशी साजिश' है. इसलिए इस अविश्वास प्रस्ताव के मायने नहीं हैं. कुछ मिनट बाद राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने इमरान खान की सलाह पर नेशनल असेंबली को भंग कर दिया था.
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार ने शुक्रवार को बताया कि गुरुवार को अपनी रिव्यू पिटीशन में इमरान खान ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 248 के तहत किसी भी अन्य संस्था को संसद के मामलों में हस्तक्षेप करने से रोका गया है और नेशनल असेंबली के कार्यवाहक अध्यक्ष कासिम सूरी का अविश्वास प्रस्ताव खारिज करने का फैसला अनुच्छेद 5 के अनुसार बिल्कुल ठीक था.
सुप्रीम कोर्ट में ये रिव्यू पिटीशन इमरान की तरफ से इम्तियाज सिद्दीकी और चौधरी फैसल हुसैन ने दायर की है. इसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 248 किसी भी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करने के लिए आवेदक को किसी कोर्ट के समक्ष जवाबदेह नहीं बनाता है. रिव्यू पिटीशन में तर्क दिया कि बेंच ने अनुच्छेद 66, 67 और 69 के प्रावधानों का मूल्यांकन करने में गलती की है.
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के उस अधिकार का मूल्यांकन करने में गलती की है जो यह सुनिश्चित करता है कि संसद, उसके सदस्य/अधिकारी, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपने कार्यों के साथ-साथ विवेकाधीन शक्तियों के प्रयोग करने के लिए किसी कोर्ट के समक्ष उत्तरदायी नहीं हैं. साथ ही संविधान के तहत किसी भी कोर्ट के समक्ष उनके संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच द्वारा प्रयोग किया गया संपूर्ण अधिकार क्षेत्र संविधान के अनुच्छेद 175 का उल्लंघन है.
इमरान खान ने याचिका में तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश संविधान के अनुच्छेद 189 के साथ अनुच्छेद 184(3) के संबंध में विधि सम्मत नहीं था. खान ने कहा कि तत्कालीन डिप्टी स्पीकर का फैसला संविधान के अनुच्छेद 5 को लागू करने के लिए था और इसका याचिकाकर्ता से कोई संबंध नहीं था.
चूंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेंडिंग में था, इसलिए स्पीकर ने नेशनल असेंबली को भंग करने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उनकी कार्रवाई गलत तरीके से की गई थी या कानून और संविधान के खिलाफ थी. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह समझने में भूल की है कि सदन की कार्यवाही के भीतर यानी संसद संप्रभु, स्वतंत्र है और सुप्रीम कोर्ट या संविधान के तहत किसी अन्य कोर्ट के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी नहीं है.
जबकि अविश्वास प्रस्ताव के चुनाव की प्रक्रिया संविधान में विस्तृत रूप से दी गई है. सुप्रीम कोर्ट संसद के मामलों को सूक्ष्म रूप से प्रबंधित करने का हकदार नहीं है. कोर्ट से 7 अप्रैल के आदेश को वापस लेने और रद्द करने की मांग की गई है.
इमरान खान की तरफ से ये भी कहा गया है कि रिव्यू पिटीशन एक पीड़ित पक्ष का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिव्यू स्टेज में अपना फैसला तब तक बदलने की संभावना नहीं होती है, जब तक कुछ स्पष्ट त्रुटियों को इंगित नहीं किया गया हो.
यह है पूरा मामला
बता दें कि बता दें कि अप्रैल के पहले हफ्ते में पाकिस्तान की असेंबली में विपक्ष ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था, जिसे तत्कालीन नेशनल असेंबली के अध्यक्ष कासिम सूरी ने खारिज कर दिया था. इस पर विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और सूरी के फैसले को चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद इमरान खान को बड़ा झटका दिया था और सूरी के फैसले को खारिज कर दिया था. बाद में पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव की वोटिंग में इमरान हार गए थे. 342 सदस्यीय संसद में विपक्ष को 174 वोट मिले थे. सरकार बनाने के लिए 172 वोटों की जरूरत होती है. विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री बने थे.
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