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तालिबान के आने से बढ़ेगी स्मगलिंग
दक्षिण एशिया के अहम रणनीतिक देश अफगानिस्तान में अगले कुछ दिनों में बड़े उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं. साल 2020 में हुए दोहा समझौते के तहत अमेरिकी रक्षा विभाग यहां से अब अपनी सेनाओं को वापस बुला सकता है. दो माह से कम समय में भी इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सकता है. पिछले दो दशकों से युद्ध की मार झेलते अफगानिस्तान में अब शांति की एक उम्मीद बंधी है जिससे पाकिस्तान टेंशन में आ गया है.
तालिबान के आने से बढ़ेगी स्मगलिंग
पाकिस्तान की परेशान वही तालिबान बना है जिसे सिर उठाने में पाक आर्मी और आईएसआई ने पूरी मदद की. दरअसल अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने अफगानिस्तान शांति समझौते का ड्राफ्ट तैयार किया है.
जो ड्राफ्ट तैयार हुआ है उसके बाद तालिबान को एक बार फिर अफगानिस्तान में बड़ा हिस्सा मिल सकता है. यही बात पाकिस्तान और इसके प्रधानमंत्री इमरान खान को सता रही है. पाकिस्तान का सबसे बड़ा डर है कि अगर अफगान शांति प्रकिया असफल रही और तालिबान सत्ता पर काबिज हो गया तो फिर सीमा पार से ड्रग्स की स्मगलिंग में तेजी से इजाफा हो जाएगा.
पाक एजेंसियां मान रही है कि तालिबान के सत्ता में आने से उनके देश में नशाखोरी बढ़ सकती है. पाकिस्तान में पहले ही युवा ड्रग्स के आदी हैं. उसके लिए स्मगलिंग पर लगाम लगा पाना भी आसान नहीं होगा.
क्रिस्टल मेथ के आदी युवा
पाकिस्तान के युवा एक खास प्रकार की ड्रग्स क्रिस्टल मेथ के आदी हैं. ये ड्रग्स, हाल के कुछ वर्षों में पाक युवाओं के बीच खासी पॉपुलर हो गई है. अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद सस्ते क्रिस्टल मेथ का उत्पादन तेजी से हो सकता है.
अफगानिस्तान में स्थानीय तौर पर एफेड्रा का प्रयोग करके कम दरों पर क्रिस्टल मेथ को तैयार किया जाता है. पाकिस्तान में युवा इसे कभी-कभी आइस के तौर पर भी कहते हैं. पाइप के अलावा वो इसे नाक के जरिए लेते और कभी-कभी इसका इंजेक्शन भी प्रयोग करते हैं.
साल 2019 में पाकिस्तान के गृह राज्य मंत्री शहरयार खान अफरीदी ने कहा था कि राजधानी इस्लामाबाद में 75 प्रतिशत छात्राएं और 45 प्रतिशत छात्र क्रिस्टल मेथ के आदी हो चुके हैं.
1000 रुपए में खरीदते हैं एक ग्राम ड्रग्स
हद से ज्यादा नशीली क्रिस्टल मेथ के बढ़ते क्रेज की वजह से पाक सरकार पहले से ही चिंतित है. नवंबर 2020 में पाकिस्तान कोस्ट गार्ड ने बलूचिस्तान के शहर ग्वादर के करीब पास्नी में चलाए गए एक ऑपरेशन के दौरान 17 अरब रुपए की कीमत वाली क्रिस्टल मेथ जब्त की थी. कोस्ट गार्ड को 100 किलोग्राम से भी ज्यादा क्रिस्टल मेथ मिली थी. पाकिस्तान में एक ग्राम किस्टल मेथ के लिए युवा 800 से 900 रुपए तक खर्च कर डालते हैं.
पिछले साल यूरोपियन मॉनिटरिंग सेंटर फॉर ड्रग्स एंड ड्रग एडिक्शन (EMCDDA) की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अफगानिस्तान जो कभी हेरोईन के उत्पादन में नंबर वन था अब क्रिस्टल मेथ के उत्पादन में आगे बढ़ रहा है. क्रिस्टल मेथ की इंडस्ट्री इस देश में दिन पर दिन विशाल होती जा रही है. ऐसे में पाकिस्तान की चिंता लाजिमी है क्योंकि तालिबान को ड्रग्स स्मगलिंग का सरगना भी माना जाता है.
भारत की भागीदारी से डरे इमरान
जो तालिबान 1990 के दशक में ताकतवर हुआ था, वह 9/11 के बाद पहले तो कमजोर होकर टूट गया और फिर अफगानिस्तान की सत्ता से बेदखल कर दिया गया. अब वह हो सकता है फिर से ताकतवर बन जाए. भारत के लिए इस क्षेत्र में बड़े रोल की गुंजाइश है.
हालांकि भारतीय विशेषज्ञ इस बात से इनकार कर रहे हैं कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत सरकार वहां पर कोई सक्रिय भूमिका में नजर आएगा. पाकिस्तान पहले से ही अफगानिस्तान में भारत की बढ़ती हिस्सेदारी से परेशान था और अब तालिबान के आने से उसकी परेशानियां बढ़ सकती है. तालिबान और पाकिस्तान एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते हैं.
ये बात और है कि जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था तो पाक के नेतृत्व ने उसकी काफी मदद की थी. पाक और तालिबान ने हमेशा एक साझा हित की बात की हे लेकिन दोनों के बीच अब कोई दोस्ती नहीं है.
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