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ऐसे में राजनीतिक अस्थिरता के बीच आने वाले दिन क्या होंगे, ये कोई नहीं जानता है।
इस्लामाबाद: पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में हुए उपचुनावों के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने जोरदार वापसी की है। यहां की 20 में 16 सीटें जीतकर इमरान ने साबित कर दिया है कि उन्हें सत्ता से बाहर करने की गलती दोबारा नहीं की जाएगी। साल 2018 में हुए आम चुनावों में जितनी सीटें उन्हें हासिल हुई थीं, उससे ज्यादा सीटें इस बार जीती हैं। ये चुनाव नतीजे सेना और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के लिए बड़ा झटका हैं। इमरान जहां इस जीत से खुशी मना रहे हैं तो वहीं खुद मुल्क के लिए उनका चुनाव जीतना बुरी खबर हो सकती है। पहले से ही महंगाई और आर्थिक तंगी का सामना करते पाकिस्तान की बदहाली को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) और बढ़ा सकता है।
समय से पहले होंगे चुनाव!
अप्रैल में इमरान सत्ता से बेदखल हो गए थे और अब उनकी इस जीत से ये तय हो चुका है कि देश में समय से पहले चुनाव हो सकते हैं। अक्टूबर 2023 से पहले देश में अगर इलेक्शंस हुए तो फिर वो अर्थव्यवस्था के लिए बोझ से कम नहीं होगा। साल 2018 में जब चुनाव हुए थे तो 21 अरब रुपए खर्च किए गए थे। साल 2013 की तुलना में ये आंकड़ा पूरे पांच गुना ज्यादा था। खुद पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने इस बात की जानकारी दी थी कि इलेक्शंस इतिहास के सबसे महंगे चुनाव हैं। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर इस समय चुनाव होते हैं तो जनता पर गैरजरूरी बोझ पड़ेगा और पहले से ही जूझ रही अर्थव्यवस्था की सांस फूल जाएगी।
26 मई 2022 को पीएम शहबाज शरीफ की सरकार की तरफ से देश की नेशनल एसेंबली में आम चुनावों पर होने वाले खर्च को लेकर जानकारी दी गई थी। सरकार ने बताया था कि साल 2023 में जो चुनाव होंगे उस पर 47.41 अरब का खर्च आएगा। यानी दोगुने से भी ज्यादा और साल 2018 के बाद ये इतिहास के सबसे महंगे चुनाव होंगे। मगर इमरान खान इस को समझेंगे, ये मुश्किल लगता है। अब जबकि इमरान की पार्टी को उपचुनावों में विशाल जीत हासिल हो चुकी है तो वो शहबाज शरीफ की सरकार पर समय से पहले चुनावों को दबाव डालेंगे।
IMF भी बनाएगा मुंह!
इमरान का सत्ता में लौटना इसलिए भी खतरनाक हो सकता है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) को उनकी वापसी से दिक्कत हो सकती है। शहबाज शरीफ ने जब सत्ता संभाली तो उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए जिनकी वजह से उन्हें जमकर आलोचना का सामना करना पड़ा। शरीफ ने एनर्जी की कीमतों को बढ़ा दिया और साथ ही करों में भी इजाफा किया। ये सब कुछ शरीफ आईएमएफ से 1.2 बिलियन डॉलर का लोन लेने के लिए कर रहे थे।
पिछले दिनों पाक सरकार और आईएमएफ के बीच हुए एक समझौते ने पाक की कर्ज मिलने की उम्मीदों को बढ़ा दिया था। शहबाज हर वो फैसला ले रहे थे जो आईएमएफ की शर्तों को पूरा करने के लिए जरूरी थी। देश की लड़खड़ाती इकोनॉमी के लिए आईएमएफ सबसे बड़ा सहारा है। शरीफ की सरकार ने वो इच्छा जताई थी जो अर्थव्यवस्था को बहाल करने के लिए जरूरी है। देश में मरियम नवाज जैसे विपक्षी नेता मान चुके हैं कि इमरान खान के फैसलों को आईएमएफ जरा भी पसंद नहीं करता। ऐसे में पााकिस्तान के लिए कर्ज लेना कितना मुश्किल होगा, इसका बस अंदाजा लगाया जा सकता है।
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कर्ज में डूबा पाकिस्तान
जिस समय इमरान ने फिर से चुनावों को कराने की मांग की उस समय देश को 900 मिलियन डॉलर का कर्ज मिलने वाला था। मगर जो कुछ हुआ उसके बाद इस पर मुश्किलें बढ़ गईं। ये उपचुनाव ऐसे समय में हुए हैं जब पाक 13 साल में सबसे ज्यादा महंगाई का सामना कर रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार दो महीने में ही गिर गया। मूडीज की तरफ से पाकिस्तान को जून माह में निगेटिव रैंकिग दी गई थी। मई 2022 तक पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडर 10 बिलियन डॉलर का था। ये भंडार 10 हफ्तों के लिए ही जरूरी बताया गया था। इसकी मदद से ईधन, कच्चा माल और खाने का सामान आयात किया जा सकता था।
पाकिस्तान पर जून के अंत तक 8.6 बिलियन डॉलर का कर्ज था। देश में श्रीलंका की तरह आर्थिक स्थितियां बन रही हैं। हालांकि पाकिस्तान के अर्थव्यवस्था विशेषज्ञों की मानें तो पाकिस्तान बहुत बड़ा देश है और श्रीलंका जैसा हाल होना मुश्किल है। लेकिन वो खुद भी इस स्थिति से वाकिफ हैं कि देश मुश्किलों में हैं। ऐसे में राजनीतिक अस्थिरता के बीच आने वाले दिन क्या होंगे, ये कोई नहीं जानता है।
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