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अल-कायदा के 'जिहादी' बयान के पीछे पाकिस्तान की साजिश, कश्मीर का लिया था नाम

Renuka Sahu
3 Sep 2021 3:55 AM GMT
अल-कायदा के जिहादी बयान के पीछे पाकिस्तान की साजिश, कश्मीर का लिया था नाम
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फाइल फोटो 

काबुल से आखिरी अमेरिकी सैनिक की वापसी के बाद आतंकवादी संगठन अल-कायदा ने एक बयान जारी कर ‘इस्लामी जमीनों’ को आजाद करान के लिए ‘ग्लोबल जिहाद’ की आह्वान किया था.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। काबुल (Kabul) से आखिरी अमेरिकी सैनिक की वापसी के बाद आतंकवादी संगठन अल-कायदा (Al Qaeda) ने एक बयान जारी कर 'इस्लामी जमीनों' को आजाद करान के लिए 'ग्लोबल जिहाद' की आह्वान किया था. खास बात यह है कि इस बयान में कश्मीर (Kashmir) का भी जिक्र था. जबकि, चेचेन्या और शिनजियांग का नाम गायब था. अब हाल ही में आई एक रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि आतंकी समूह के इस बयान के पीछे पाकिस्तान का हाथ है.

अधिकारियों ने बताया, 'जिहाद के बारे में बात करता कायदा का बयान चिंता का कारण है. यह दिलचस्प है कि कश्मीर को बयान में शामिल किया गया, क्योंकि इससे पहले तालिबान के एजेंडा में कश्मीर पहले कभी नहीं था. कायदा के इस बयान के पीछे पाकिस्तान की ISI है.' सूत्रों के हवाले से बताया गया कि यह बयान लश्कर-ए-तैयबा जैसे पाकिस्तान आधारित आतंकी समूहों को भारत में हमलों के लिए प्रोत्साहित करेगा.
एक सरकारी अधिकारी का कहना है कि कायदा के बयान की अभी भी जांच जारी है, लेकिन यह भारत के लिए गंभीर चिंता की बात है. उन्होंने कहा, 'अल-कायदा दुनिया में मुसलमानों को कट्टरपंथी बनाने की कोशिश कर रहा है, यह मानवता के लिए खतरनाक है. पाकिस्तान अपना एजेंडा आगे बढ़ा रहा है.' रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान का शीर्ष कमांडर हैबतुल्लाह अखुंदजादा कथित रूप से पाकिस्तान के ISI के संरक्षण में है.
रिपोर्ट के मुताबिक, अल-कायदा ने अपने बयान में कश्मीर का जिक्र किया है. जबकि, रूस के चेचेन्या और चीन के शिनजियांग को हटाया है. कायदा ने बयान जारी किया, 'लेवेंट, सोमालिया, यमन, कश्मीर और बची हुई इस्लामिक जमीनों को इस्लाम के दुश्मनों के चंगुल से मुक्त करें. ओ, अल्लाह! दुनियाभर में मुस्लिम कैदियों को रिहाई दें.' इसके अलावा सरकार ईरान में रह रहे ज्यादातर अल-कायदा का समर्थक और आतंकियों की मौजूदगी की भी जानकारी जुटा रही है.
रिपोर्ट्स के अनुसार, संकेत मिले हैं कि इनमें से कई अब अफगानिस्तान लौट आएंगे. एक अधिकारी ने समझाया, 'हालांकि, यह एक शिया बहुल देश है, इतिहास ने दिखाया है कि जब तक सामरिक फायदे कि बात है, दोनों शिया और सुन्नी साथ काम कर सकते हैं. अगर एक-दूसरे के साथ नहीं तो, कम से कम एक दूसरे के खिलाफ भी नहीं.' इधर, तालिबान दावा कर रहा है कि उनका इस बार का शासन अलग होगा. वहीं, भारत देख रहा है कि यह आश्वासन कैसे पूरा होगा.
दिल्ली और कश्मीर में हुई बैठकों में अफगानिस्तान के घटनाक्रमों और घाटी को लेकर चर्चा की गई. इस दौरान नियंत्रण रेखा के पास लॉन्च पैड्स के दोबारा सक्रिय होने और घुसपैठ के मामलों पर खास ध्यान दिया गया. रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों बताते हैं कि एजेंसी के हाथ लगी बातचीत इस बात के संकेत देती है कि एलओसी पर छूटे लॉन्चपैड्स को दोबारा सक्रिय किया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, भले ही तालिबान ने कश्मीर में अपनी दिलचस्पी नहीं दिखाई हो, लेकिन उसने हरकत-उल-अंसार समेत कई आतंकी समूहों को कश्मीर में पहुंचाने के लिए अफगान की जमीन का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी है. अमेरिका में 9/11 हमले के बाद से अफगानिस्तान में सत्ता से बेदखल हुआ तालिबान अब लगभग पूरी तरह मुल्क पर कब्जा जमा चुका है. 31 अगस्त को अमेरिकी सैनिकों की भी वापसी हो गई है. सूत्रों ने कहा कि यह चिंता कि बात है कि दूसरे कार्यकाल में तालिबान के पास बेहतर हथियार हैं. इनमें से ज्यादातर अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद कब्जे में लिए गए हैं.


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