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मुझे लगा कि क्या न्याय की भी पत्नियां होती हैं। नहीं वह एक सम्माननीय न्यायाधीश हैं और अकेले ही काफी हैं।
पाकिस्तान में महिलाओं से भेदभाव को लेकर एक रिपोर्ट में हैरानीजनक खुलासा हुआ है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में पाकिस्तान एकमात्र ऐसा देश है जिसने उच्च न्यायालयों में एक भी महिला जज को नियुक्त नहीं किया है। रिपोर्ट के मुताबिक न्यायाधीशों की नियुक्ति पर संसदीय समिति ने न्यायपालिका में लिंग असंतुलन पर ध्यान दिया है और पाकिस्तान के न्यायिक आयोग (जेसीपी) से उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए महिलाओं को नामित करके स्थिति को सुधारने में मदद करने के लिए कहा है।
समिति ने जेसीपी को भेजे पत्र में कहा कि उच्च न्यायालयों में महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों, जो समाज के कमजोर वर्ग हैं, का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी नोट किया गया है कि पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय में महत्वपूर्ण पदों को भरने के लिए योग्य होने के बावजूद महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व है।
रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि देश के उच्च न्यायालयों में केवल 5.3 प्रतिशत न्यायाधीश महिलाएं हैं, जो दक्षिण एशिया क्षेत्र में सबसे कम संख्या है। इस तरह की लैंगिक असमानता के प्रमुख कारकों में से एक महिलाओं की काम करने की स्थिति और देश में समान अवसरों की कमी है। बता दें कि पाकिस्तान के प्रधान न्यायाधीश (सीजेपी) असिफ सईद खोसा ने 2 साल पहले कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही महिला न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाएगी।
इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि न्याय का कोई लिंग नहीं होता। तब द न्यूज इंटरनेशनल की रिपोर्ट में सीजेपी खोसा के बयान का हवाला देते हुए कहा गया था कि मैंने एक न्यायाधीश आयशा मलिक का नाम सुना, जिन्हें श्रीमती आयशा मलिक के रूप में पहचाना जाता है। मुझे लगा कि क्या न्याय की भी पत्नियां होती हैं। नहीं वह एक सम्माननीय न्यायाधीश हैं और अकेले ही काफी हैं।
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