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टीएलपी की हिंसक गतिविधियों के बावजूद प्रशासन ने अपने तुष्टीकरण के नजरिये को जारी रखा है।'
लगभग दो साल पहले परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों के साथ ही दुनिया के सबसे गरीब देशों के लिए एक वक्त का भोजन जुटाना भी मुश्किल हो रहा था, क्योंकि दोनों एक साझा शत्रु का सामना कर रहे थे। और यह शत्रु थी विश्वव्यापी कोविड-19 महामारी, जिसने सारी दुनिया को स्तब्ध कर दिया। यह वायरस इतना छोटा था कि इसे नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता था, फिर भी यह इतना शक्तिशाली था कि इसने इस धरती पर से लाखों लोगों का सफाया कर दिया।
आज भी मानव जाति इस अज्ञात चुनौती का सामना करने के लिए जूझ रही है, भले ही महामारी थोड़ी कम हो गई है, लेकिन यह अब भी मौजूद है और दुनिया भर में लोगों का जीवन, चाहे अमीर हों या गरीब, अब भी खतरे में है। कम से कम पिछले हफ्ते हमने जो कुछ देखा, उससे प्रतीत होता है कि पाकिस्तान में इस महामारी से कोई सबक नहीं सीखा गया है और इस परमाणु सशस्त्र राष्ट्र ने अब कुछ ऐसी चीजों को बढ़ावा दिया है, जो कोविड -19 की तुलना में घातक और शायद अधिक खतरनाक है।
मैं खुद रावलपिंडी शहर के अंदर कैद होकर रह गई, क्योंकि इस्लामाबाद, पेशावर या लाहौर जाने वाली सभी सड़कें बंद थीं, क्योंकि धार्मिक कट्टरपंथियों ने धरना दिया, लोगों की हत्या की, उन्हें उत्पीड़ित किया और गंभीर रूप से घायल पुलिसकर्मियों को वे इस्लामाबाद आने से रोक रहे थे। सड़क मार्ग से लोगों की आवाजाही और व्यापार पूरी तरह ठप हो गया था। पाकिस्तान और उसके नागरिकों के लिए यह खतरा पहले से कम ज्ञात धार्मिक संगठन, तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) है, जो एक प्रतिबंधित संगठन है।
आज इसने देश को अपने उन्माद की चपेट में ले लिया है। टीएलपी की मांग अपने नेताओं और अनुयायियों को रिहा करने के लिए थी, जिन पर आतंकवाद विरोधी अदालतों में मुकदमा चलाया गया था। इसके अलावा वे फ्रांसीसी राजदूत को भी निष्कासित करने की मांग कर रहे थे, क्योंकि फ्रांस ने मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा अपने नागरिकों की हत्या के बाद कई मुस्लिम विरोधी कानून पारित किए थे, और यूरोपीय संघ के साथ रिश्ते खत्म कर दिए थे।
आज तक सुरक्षा प्रतिष्ठान, प्रधानमंत्री और कुछ वरिष्ठ मंत्रियों को छोड़कर किसी को भी हस्ताक्षर किए गए समझौते के बारे में पता नहीं है। जाहिर है, सरकार कथित रूप से पुलिसकर्मियों की हत्या और मुल्क और सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट करने में शामिल टीएलपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों को आगे नहीं बढ़ाने पर सहमत हो गई है। ऐसा भी प्रतीत होता है कि सरकार समूह को प्रतिबंधित करने के अपने निर्णय में कानूनी प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाएगी।
अंग्रेजी दैनिक डॉन लिखता है, 'टीएलपी के मुद्दे पर अब और पर्दा नहीं डाला जा सकता। आंदोलन करने वाले घर जा सकते हैं, लेकिन वे सरकार से भारी कीमत वसूल कर ऐसा करेंगे। वे राज्य की ताकत और विश्वसनीयता की कीमत पर भी ऐसा करते हैं। जब तक राज्य को समस्या की गंभीरता का एहसास नहीं होता और इससे निपटने के लिए कदम उठाना शुरू नहीं होता, तब तक टीएलपी मुल्क को चुनौती देने, डराने और विजयी होने की अपनी क्षमता के आधार पर बढ़ती रहेगी।'
वर्ष 2017 में सुरक्षा प्रतिष्ठान ने राजनेताओं के खिलाफ एक औजार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए इस संगठन को खड़ा किया। जब कानून मंत्री के इस्तीफे के साथ ही टीएलपी का विरोध और धरना समाप्त हो गया, तो सुरक्षा प्रतिष्ठान ने इन धार्मिक कट्टरपंथियों से सौदे में अपनी भूमिका नहीं छिपाई। सोशल मीडिया पर अब भी एक वीडियो उपलब्ध है, जिसमें सेना के एक वरिष्ठ जनरल दिखाई दे रहे हैं, जो पैसे का लिफाफा सौंपते हुए भीड़ से कह रहे हैं कि इससे घर लौटने के किराए का इंतजाम कर लें।
वह उन्हें शांत होने के लिए भी कहते हैं और बताते हैं कि वह खुद और ये लोग एक ही हैं। उस समय टीएलपी के बहुत अनुयायी नहीं थे, लेकिन इन धार्मिक कट्टरपंथियों का इस्तेमाल पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की निर्वाचित और मौजूदा पीएमएल (एन) सरकार के खिलाफ सुरक्षा प्रतिष्ठान द्वारा किया गया था। वर्ष 2017 में राजधानी की पहली घेराबंदी के बाद अल्पज्ञात बरेलवी कट्टरपंथी संगठन का उदय हुआ।
यह लोकप्रिय जन समर्थन नहीं, बल्कि नागरिक-सैन्य विभाजन था, जिसने इसे एक ताकत के रूप में बदल दिया। अब नवंबर 2021 में एक बार फिर जैसे ही पूरे पाकिस्तान में जनजीवन ठप हो गया, सुरक्षा प्रतिष्ठान ने दखल देकर मामले को सुलझाया, लेकिन टीएलपी और प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार के बीच हुए समझौते को गुप्त रखा गया है, और नहीं कोई जानता है कि सरकार के इस समर्पण की शर्तें क्या हैं।
टीएलपी की हिंसक भीड़ को वापस घर भेजने के लिए सुरक्षा प्रतिष्ठान ने क्या कीमत चुकाई है? मुख्य सवाल जो पाकिस्तान में पूछा जा रहा है, वह यह कि क्या यह संगठन प्रतिबंधित है और चुनाव आयोग ने इसे पिछले आम चुनाव में हिस्सा लेने की अनुमति क्यों दी थी। यह पिछले चुनावों में पंजाब में चौथी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जिसने नवाज शरीफ के वोट बैंक में सेंध लगाई और इस तरह उन्हें संसद में बहुमत से वंचित कर दिया।
टीएलपी से विपक्षी राजनीतिक पार्टियां इतना भयभीत हैं कि उन्होंने चुनाव आयोग में उसका जोरदार विरोध नहीं किया। इसके अलावा, इन पिछले दो हफ्तों में विपक्षी राजनीतिक दल चुप रहे और पहले तो, सरकार के खिलाफ उन्होंने धरना नहीं किया, क्योंकि इस हिंसक भीड़ के साथ खतरनाक स्थिति थी और दूसरी बात यह कि मुसलमानों के रूप में वे टीएलपी के नारे के खिलाफ नहीं जाना चाहते थे। एक मुसलमान इसके खिलाफ अपनी आस्था और विश्वास से कैसे लड़ सकता है? खतरा यहीं पर है।
यदि एक बार फिर टीएलपी को आम चुनावों में भाग लेने की अनुमति दी जाती है, तो वे विशेष रूप से पंजाब में मजबूत उम्मीदवारों के वोट बैंक में सेंध लगाएंगे, और त्रिशंकु संसद हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषक जाहिद हुसैन कहते हैं, 'बगैर दंड के समूह की गतिविधियां जारी हैं। ऐसा लगता है कि प्रशासन ने जानबूझकर अपने प्रतिबंध के फैसले को अस्पष्ट रखा है। टीएलपी की हिंसक गतिविधियों के बावजूद प्रशासन ने अपने तुष्टीकरण के नजरिये को जारी रखा है।'
Neha Dani
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