विश्व
पाकिस्तान ने छिपाया बांग्लादेशियों के कत्लेआम का राज, लेख ने दुनिया के सामने खोली पोल
Apurva Srivastav
30 March 2021 1:49 PM GMT
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ब्रिटेन के संडे टाइम्स ने 13 जून 1971 को एक आर्टिकल में बांग्लादेशी विद्रोह को कुचलने के लिए पाकिस्तान द्वारा की जा रही क्रूरता को उजागर किया
ब्रिटेन के संडे टाइम्स ने 13 जून 1971 को एक आर्टिकल में बांग्लादेशी विद्रोह को कुचलने के लिए पाकिस्तान द्वारा की जा रही क्रूरता को उजागर किया. जिस रिपोर्टर ने इस खबर की जानकारी दी. उसके परिवार की जान पर बन आई और उन्हें छिपने पर मजबूर होना पड़ा. लेकिन इस एक आर्टिकल ने पूरा इतिहास ही बदलकर रख दिया. इस आर्टिकल को पिछली आधी सदी की दक्षिण एशियाई पत्रकारिता में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है.
पाकिस्तानी रिपोर्टर एंथनी मस्कारेन्हास (Anthony Mascarenhas) ने इस आर्टिकल को लिखा और ब्रिटेन के संडे टाइम्स में इसे प्रकाशित किया गया. इसमें पहली बार इस बात का जिक्र किया गया कि कैसे पाकिस्तान साल 1971 में अपने टूर रहे पूर्वी प्रांत को बचाने के लिए अत्याचारी रवैया अपना रहा है. किसी को इस बारे में नहीं मालूम है कि बांग्लादेश युद्ध में कितने लोगों मारे गए, लेकिन इसमें बड़ी संख्या में लोगों ने जान गंवाई है. स्वतंत्र शोधकर्ताओं का कहना है कि करीब तीन से पांच लाख लोगों की इस युद्ध में मौत हुई.
रिपोर्ट ने पाकिस्तान के खिलाफ बदली दुनिया की राय
वहीं, बांग्लादेशी सरकार का कहना है कि इस युद्ध में 30 लाख लोगों की मौत हुई है. हालांकि, पाकिस्तान की बांग्लादेशी आवाम की आवाज को दबाने का कोई लाभ नहीं हुआ और बांग्लादेश आजाद हो गया. इस बात में बहुत कम संदेह है कि युद्ध को समाप्त करने में मस्कारेन्हास के रिपोर्ट ने अपनी भूमिका निभाई थी. लेकिन इसने पाकिस्तान के खिलाफ दुनिया की राय को बदलने में मदद की और भारत को एक निर्णायक भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया.
संडे टाइम्स के तत्कालीन संपादक हेरोल्ड इवांस ने अपने संस्मरण में लिखा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बताया कि इस आर्टिकल ने उन्हें इतने गहरे तरीके से झकझोर कर रख दिया कि उन्होंने यूरोपियन राजधानियों और मॉस्को में व्यक्तिगत कूटनीति अभियान शुरू किया. इसके पीछे की मंशा पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में सशस्त्र हस्तक्षेप के लिए जमीन तैयार करना था. बांग्लादेश युद्ध को लेकर मस्कारेन्हास का कोई इरादा नहीं था. वह सिर्फ एक अच्छे रिपोर्टर थे, जो ईमानदारी से अपना काम कर रहे थे.
चुनावों से शुरू हुआ विवाद
मार्च 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में युद्ध छिड़ा, इस दौरान तक मेस्कारेन्हास कराची से सम्मानित पत्रकारों में से एक थे. पूर्वी पाकिस्तान में संघर्ष की शुरुआत चुनावों की वजह से हुई. यहां स्थानीय पार्टी आवामी लीग को चुनावों में जीत मिली और इसने क्षेत्र में अधिक स्वायत्ता की मांग की. पश्चिमी पाकिस्तान के राजनीतिक दलों और सेना ने नई सरकार के गठन का तर्क दिया. लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले बंगाली लोगों को लगा कि पश्चिमी पाकिस्तान जानबूझकर उनकी महत्वाकांक्षाओं को रोक रहा है.
सेना ने शुरू किया आवामी लीग के सदस्यों को निशाना बनाना
धीरे-धीरे हालात हिंसक होते चले गए. अवामी लीग ने सविनय अवज्ञा अभियान शुरू किया और इसके समर्थकों ने कई गैर-बंगाली नागरिकों पर हमला किया. दूसरी ओर, सेना ने हालात बेकाबू होते जमीन छोड़कर जाना बेहतर समझा. फिर 25 मार्च को सेना ने अवामी लीग और अन्य कथित विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की. इसमें बुद्धिजीवी वर्ग और हिंदू समुदाय के सदस्य भी शामिल थे.
छात्रों और प्रोफेसर्स को उतारा गया मौत के घाट
कई कुख्यात युद्ध अपराधों की तरह पाकिस्तानी सैनिकों ने ढाका विश्वविद्यालय पर हमला किया. यहां से छात्रों और प्रोफेसरों को गिरफ्तार किया गया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया. इसके बाद सेना का ये खूनी अभियान देश के अन्य हिस्सों में जाने लगा. यहां उन्होंने स्थानीय सैनिकों जंग लड़ाई लड़ी, जिन्होंने विरोध की शुरुआत की थी.
सेना ने पत्रकारों पर बनाया झूठी खबर लिखने का दबाव
पूर्वी पाकिस्तान से विदेशी पत्रकारों को पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. आवामी लीग के समर्थकों ने हजारों नागरिकों का नरसंहार किया था, जिनकी वफादारी पर उन्हें संदेह था. ये एक ऐसा युद्ध अपराध जो आज भी बांग्लादेश में कई लोगों द्वारा अस्वीकार किया जाता है. ऐसे में पाकिस्तान को ये भी दिखाना था कि दूसरा पक्ष किस तरह यहां उत्पात मचा रहा है. इस तरह एंथनी मस्कारेन्हास समेत आठ पत्रकारों को प्रांत में 10 दिनों का दौरा कराया गया. जब वे घर वापस लौटे तो उनमें से सात ने वो लिखा, जो सेना ने उन्हें लिखने को कहा था. लेकिन उनमें से एक एंथनी मस्कारेन्हास ने ऐसा करने से इनकार कर दिया.
बहाना बनाकर लंदन पहुंचे और संडे टाइम्स के संपादक से की मुलाकात
मस्कारेन्हास ने अपनी पत्नी को बताया कि अगर वह सच्चाई लिखने की कोशिश करेंगे तो उन्हें गोली मार दी जाएगी. ऐसे में उन्होंने अपनी बीमार बहन से मिलने का झूठा बहाना बनाकर लंदन की यात्रा की. लंदन पहुंचने पर वह सीधे संडे टाइम्स के संपादक के ऑफिस में पहुंचे. अपने संस्मरण में इंवास ने लिखा है कि मस्कारेन्हास मार्च में हुए बंगाली आक्रोश से चौंक गए थे. लेकिन उन्होंने कहा कि सेना जो वहां कर रही थी, वह पूरी तरह से बदतर और गंभीर पैमाने पर था.
पाकिस्तान से परिवार को बाहर निकाला
मस्कारेन्हास ने इंवास को बताया कि उन्होंने व्यवस्थित हत्या होते देखा है और सैनिकों के मुंह से सुना है कि यहां लोगों को मौत के घाट उतारकर ही शांति लाई जा सकती है. इंवास इस स्टोरी को प्रकाशित करने के लिए तैयार हो गए. लेकिन उससे पहले मस्कारेन्हास ने युवान और बच्चों को कराची से बाहर निकाला. उन्होंने एक टेलीग्राम भेजकर अपनी पत्नी को देश छोड़ने को कहा. युवान ने बताया कि उस दिन वह सिर्फ एक सूटकेस लेकर देश छोड़कर भागी.
'Genocide' की हेडलाइन से खबर को किया प्रकाशित
दूसरी ओर, किसी को शक न हो इसलिए मस्कारेन्हास ने परिवार के देश छोड़ने से पहले पाकिस्तान की यात्रा की. परिवार के पाकिस्तान छोड़ने तक मस्कारेन्हास देश में ही रहे. एक बार परिवार लंदन के लिए निकल गया तो वह अफगानिस्तान के रास्ते देश छोड़कर भाग गए. जिस दिन पूरा परिवार लंदन में मिला, उसके अगले दिन संडे टाइम्स ने इस खबर को 'Genocide' (नरसंहार) की हेडलाइन देते हुए प्रकाशित कर दिया.
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