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पाकिस्तान कोर्ट के फैसले से आतंकियों को राहत, हाफिज सईद की JUD के छह सदस्य बरी
Renuka Sahu
7 Nov 2021 4:51 AM GMT
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फाइल फोटो
पाकिस्तान के लाहौर हाईकोर्ट ने शनिवार को एक निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के प्रतिबंधित संगठन जमात-उद-दावा के छह आतंकियों को एक टेरर फाइनेंसिंग के मामले में बरी कर दिया है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पाकिस्तान के लाहौर हाईकोर्ट (Lahore High Court) ने शनिवार को एक निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद (Hafiz Saeed) के प्रतिबंधित संगठन जमात-उद-दावा (JuD) के छह आतंकियों को एक टेरर फाइनेंसिंग के मामले में बरी कर दिया है. निचली अदालत ने इन सभी को दोषी साबित किया था. सईद के नेतृत्व वाला जमात-उद-दावा प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का अग्रणी संगठन है, जो 2008 में मुंबई हमले को अंजाम देने के लिए जिम्मेदार माना जाता है, जिसमें छह अमेरिकियों सहित 166 लोग मारे गए थे.
लाहौर की आतंकवाद विरोधी अदालत ने इस साल अप्रैल में जमात-उद-दावा के सदस्यों- प्रो. मलिक जफर इकबाल, याह्या मुजाहिद (जेयूडी का प्रवक्ता), नसरुल्ला, समीउल्लाह और उमर बहादुर को नौ साल की जेल की सजा और हाफिज अब्दुल रहमान मक्की (सईद के साले) को छह महीने की जेल की सजा सुनाई थी (Terror Financing Case). ये फैसला पंजाब पुलिस के काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट (सीटीडी) द्वारा एफआईआर दर्ज किए जाने के बाद लिया गया था. मामले की सुनवाई में ये साबित हो गया था कि सभी लोग टेरर फाइनेंसिंग के लिए जिम्मेदार हैं.
संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया था
ये सभी पैसा इकट्ठा कर रहे थे और प्रतिबंधित संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) को अवैध रूप से वित्तपोषित कर रहे थे. कोर्ट ने टेरर फाइनेंसिंग के जरिए एकत्रित किए धन से बनी संपत्ति को जब्त करने का भी आदेश दिया था (Terror Financing in Pakisatn). कोर्ट के एक अधिकारी ने बताया, 'शनिवार को मुख्य न्यायाधीश मुहम्मद अमीर भट्टी और न्यायमूर्ति तारिक सलीम शेख की लाहौर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने छह जेयूडी नेताओं के खिलाफ सीटीडी की एफआईआर 18 में ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है, क्योंकि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ताओं के खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा है.'
सुरक्षा व्यवस्था के बीच कोर्ट में पेश हुए
अधिकारी ने कहा कि खंडपीठ ने जमात-उद-दावा के सदस्यों की याचिका को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि 'अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाह का बयान विश्वसनीय नहीं है क्योंकि उसके पास कोई सबूत ही नहीं है.' जबकि जमात-उद-दावा (Jamat-ud-Dawah) के सदस्यों के वकील ने कोर्ट को बताया कि अल-अनफाल ट्रस्ट, जिसके याचिकाकर्ता सदस्य थे, का 'प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के साथ कोई संबंध नहीं है'. जेयूडी नेताओं को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच कोर्ट के समक्ष पेश किया गया. उन्हें अन्य टेरर फंडिंग के मामलों में भी दोषी ठहराया गया था और वह लाहौर की कोट लखपत जेल में बंद थे.
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