अपनीबात : कूटनीति में जितना महत्व बात का होता है, उतना ही उस स्थान और प्रसंग का भी, जहां वह कही जाती है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने हालिया चीन यात्रा से लौटते समय यूरोपीय अखबारों को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘यूरोप को स्वयं से यह पूछना होगा कि क्या ताइवान के संकट का गहराना हमारे हित में है? नहीं। सबसे बुरा यह सोचना होगा कि हम यूरोप वाले इस मुद्दे पर पिछलग्गू बन जाएं और अमेरिका के एजेंडे और चीन की अनावश्यक प्रतिक्रिया के इशारों पर चलें।’
हालांकि, शी चिनफिंग का चीन माओ का चीन नहीं है। वह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। उसके पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है। उसे वह संहारक शस्त्रास्त्रों से लैस कर शक्तिशाली बनाने और चारों तरफ पांव पसारने की योजनाओं में लगा है। उसने भारत से अक्साई चिन पठार छीन रखा है और पाकिस्तान से कराकोरम पट्टी ले रखी है, जिस पर कराकोरम हाईवे बना लिया है।
अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत बताकर उस पर अपना हक जताता रहता है। लद्दाख से लेकर सिक्किम तक सीमा के अतिक्रमण और असैन्य बफर क्षेत्र को हड़पने की ताक में रहता है। अंडमान द्वीप समूह के उत्तर में स्थित म्यांमार के कोको द्वीप पर चीन का टोही अड्डा बनने की भी खबरें हैं। संयुक्त राष्ट्र न्यायाधिकरण के फैसले को ताक पर रखते हुए उसने दक्षिण चीन सागर के स्प्रेटली द्वीप समूह को फिलीपींस और वियतनाम से छीनकर वहां अपने अड्डे बना लिए हैं। पिछले 75 वर्षों से उसने ताइवान की अंतरराष्ट्रीय मान्यता को रोक रखा है और उसे अपना प्रांत बताकर हड़पने को बेताब है।