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जबकि सीजीजीसी ने चमेलिया के लिए तीन गुना अधिक यानी एनआर 540 मिलियन प्रति मेगावाट की मांग की है।
एक समाचार रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल में चीनी निवेश को स्थानीय आबादी के प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वहां कई लोग बुनियादी ढांचे में नेपाली हितों को नुकसान पहुंचते देख रहे हैं और कहा जा रहा है कि इससे केवल चीन को फायदा पहुंच रहा है। द सिंगापुर पोस्ट के अनुसार, नेपाल के दारचुला जिले में चीन द्वारा निर्मित चमेलिया जलविद्युत परियोजना के सामने चुनौतियां आ रही हैं। इस कारण इस परियोजना के पूरा होने में देरी हो रही है, जिससे इसकी लागत अधिक बढ़ गई है। चीन द्वारा निर्मित 30 मेगावाट की चमेलिया जलविद्युत परियोजना, अब तक की सबसे महंगी परियोजनाओं में से एक है।
द सिंगापुर पोस्ट की रिपोर्ट में कहा गया है कि 'रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना'(run-of-the-river project) 2010 में शुरू किया गया था और तीन साल के लक्ष्य के मुकाबले इसे पूरा करने में 10 साल लग गए। इसके अलावा, चमेलिया परियोजना की लागत, शुरू में 6 मिलियन नेपाली रुएये का अनुमान लगाया गया था, जो अभी 16 मिलियन नेपाली रुपये तक बढ़ा दिया गया है। देर से, परियोजना के लिए सिविल ठेकेदार के रूप में काम करने वाली चीनी कंपनी, चाइना गेझोउबा ग्रुप (सीजीजीसी) ने एचपीपी पर नेपाल के साथ कई मुद्दे उठाए हैं।
समाचार आउटलेट के अनुसार, चीन छोटे पड़ोसियों से अपने पैसे निकालना जानता है। 2014 में, सीजीजीसी ने लगभग 18 महीनों के लिए काम रोक दिया और नेपाल विद्युत प्राधिकरण (एनईए) से अतिरिक्त एनआर (नेपाली रुपये) 1.1 बिलियन की मांग की, इस आधार पर कि सुरंग के 'निचोड़' के कारण इसकी निर्माण निर्माण लागत में वृद्धि हो गई है।
जब सीजीजीसी ने 2018 में इस परियोजना को पूरा किया, तो उन्होंने लागत को बढ़ाकर 16 अरब रुपये कर दिया। प्रति मेगावाट लागत के मामले में भी, चमेलिया एचपीपी बहुत महंगा है। सिंगापुर पोस्ट ने बताया कि निजी क्षेत्र की कंपनियां एनआर 180 मिलियन प्रति मेगावाट की लागत से एचपीपी विकसित कर रही हैं, जबकि सीजीजीसी ने चमेलिया के लिए तीन गुना अधिक यानी एनआर 540 मिलियन प्रति मेगावाट की मांग की है।
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