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ओपेक प्लस देशों ने तेल के उत्पादन में 20 फीसदी कटौती का ऐलान किया

Neha Dani
6 Oct 2022 4:05 AM GMT
ओपेक प्लस देशों ने तेल के उत्पादन में 20 फीसदी कटौती का ऐलान किया
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विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी का सैन्य अभियान कमजोर भी पड़ गया था।

वॉशिंगटन: रूस ने तेल उत्पादक देश ओपेक के साथ मिलकर बड़ा खेल कर दिया है। ओपेक+ नाम से प्रसिद्ध इस संगठन ने तेल उत्पादन में कटौती का ऐलान किया है। ऐसे में पहले से ही कम उत्पादन के कारण चरम पर पहुंचे तेल की कीमतों में और आग लगने का अनुमान है। अमेरिका समेत पश्चिमी देश पहले से ही ओपेक देशों से तेल के उत्पादन को बढ़ाने का अनुरोध करते रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने तो इसके लिए सऊदी अरब की यात्रा भी की थी। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को लेकर बाइडेन शुरू से ही तल्ख तेवर दिखाते रहे हैं, लेकिन जब मजबूरी आई तो उन्होंने रियाद में उन्हीं के साथ द्विपक्षीय बैठक भी की। हालांकि, बाइडेन का यह दौरा बिलकुल भी काम नहीं आया और सऊदी ने तेल उत्पादन बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया।


सऊदी बोला- फैसले में रूस की मिलीभगत नहीं
अब तेल उत्पादन में कटौती करने के बाद ओपेक के वास्तविक नेता सऊदी अरब ने सफाई दी है। सऊदी ने कहा कि उत्पादन में 20 लाख बैरल प्रति दिन की कटौती पश्चिम में बढ़ती ब्याज दरों और कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था का जवाब देने के लिए आवश्यक थी। यह कटौती वैश्विक आपूर्ति के 2 फीसदी के बराबर है। सऊदी ने तेल की कीमतों को बढ़ाने के लिए ओपेक+ समूह में शामिल रूस के साथ मिलीभगत की आलोचना को खारिज कर दिया है। सऊदी ने कहा कि पश्चिम देश ओपेक+ समूह की आलोचना धन के अहंकार में करते हैं।

अमेरिका ने ओपेक+ देशों की आलोचना की
इस बीच व्हाइट हाउस ने भी ओपेक+ के इस फैसले पर बयान जारी किया है। व्हाइट हाउस ने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन यह फैसला लेंगे कि क्या कीमतों को कम करने के लिए और अधिक मात्रा में स्ट्रैटजिक ऑयल स्टॉक को बाजार में जारी किया जाएगा या नहीं। व्हाइट हाउस ने कहा कि राष्ट्रपति ओपेक + के उत्पादन कोटा में कटौती के अदूरदर्शी फैसले से निराश हैं, जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था (रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर) पुतिन के यूक्रेन पर आक्रमण के निरंतर नकारात्मक प्रभाव से निपट रही है।

अमेरिका के खिलाफ एक हुए सऊदी और रूस
जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं। अमेरिका ने हूती विद्रोहियों के हमले का सामना कर रहे सऊदी को बीच मंझधार में छोड़ दिया। ऐसे में सऊदी अरब ने रूस के साथ नजदीकियां बढ़ाई है। सऊदी अरब ने यूक्रेन में रूस की कार्रवाई की निंदा नहीं की है, इसके उलट दोनों देश तेल को लेकर और ज्यादा करीब आए हैं। सऊदी अरब भी अपने तेल से ज्यादा से ज्यादा राजस्व अर्जित करना चाहता है। वहीं, रूस भी चाहता है कि सऊदी को साथ लेकर वह अपने ऊपर लगे अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को कमजोर कर सके।

ओपेक देशों ने अमेरिका के अनुरोध को किया खारिज
अमेरिका चाहता है कि सऊदी अरब समेत ओपेक देश तेल का उत्पादन बढ़ाएं। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें कम होंगी और भारत-चीन जैसे विकासशील देश रूस की जगह खाड़ी देशों से सेल खरीदेंगे। इस कारण रूस को होने वाली कमाई बिलकुल ही बंद हो जाएगी। लेकिन, बाइडेन प्रशासन की सलाह के बावजूद ओपेक देशों ने उत्पादन बढ़ाने से इनकार कर दिया। इसका सीधा लाभ रूस को हुआ और उसके सस्ते तेल को खरीदने वालों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। रूस के तेल खरीदारों में श्रीलंका, पाकिस्तान जैसे तंगी की हालात से गुजर रहे देश भी शामिल हो रहे हैं। इससे रूसी तेल की डिमांड बढ़ रही है और उसे ज्यादा राजस्व मिल रहा है।

प्रिंस सलमान के कट्टर आलोचक हैं जो बाइडेन
बाइडेन ने 2019 के राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या पर मोहम्मद बिन सलमान को दंडित करने की बात की थी। इतना ही नहीं, उन्होंने दावा किया था कि सऊदी अरब को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। बाइडेन ने मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर भी सऊदी अरब को अलग-थलग करने का दावा किया था। जनवरी 2021 में राष्ट्रपति पद संभालने के बाद जो बाइडेन ने एक अमेरिकी खुफिया आकलन को जारी किया था। इसमें निष्कर्ष निकाला गया था कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस और वास्तविक शासक मोहम्मद बिन सलमान ने सऊदी के आलोचक और वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का आदेश दिया था।

बाइडेन ने राष्ट्रपति बनते ही सऊदी को दिया बड़ा झटका
इतना ही नहीं, बाइडेन प्रशासन ने यह भी घोषणा की कि वह यमन पर सऊदी अरब के युद्ध के लिए अमेरिका के समर्थन को समाप्त कर रहा है। अटकलें लगाई जा रही थीं कि अमेरिका-सऊदी रणनीतिक गठबंधन जो 1945 में राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट और सऊदी किंग अब्दुल अजीज इब्न सऊद के बीच हुई बैठक से जुड़ा था, वह संकट में था। अमेरिका ने सऊदी अरब की रक्षा में तैनात अपनी मिसाइल डिफेंस सिस्टम को भी हटाकर दूसरे देशों में तैनात कर दिया। अमेरिका के समर्थन के हटते ही यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी का सैन्य अभियान कमजोर भी पड़ गया था।



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