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पाकिस्तान में अभी तक सिर्फ 0.2 प्रतिशत लोगों ने लगवाए टीके

Deepa Sahu
27 April 2021 2:00 PM GMT
पाकिस्तान में अभी तक सिर्फ 0.2 प्रतिशत लोगों ने लगवाए टीके
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पाकिस्तान में COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में सरकार अलग-थलग पड़ती हुई दिख रही है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क: पाकिस्तान में COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में सरकार अलग-थलग पड़ती हुई दिख रही है। पाकिस्तानी लोग सरकार के सार्वजनिक स्वास्थ्य दिशानिर्देशों के बावजूद वैक्सीन लगवाने से इनकार कर रहे हैं। बलूचिस्तान के COVID-19 टीकाकरण सेल के समन्वयक डॉ. वसीम बेग ने द डिप्लोमैट को बताया, "सरकार टीकाकरण और जागरूकता फैला रही है, लेकिन लोग टीकाकरण के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। हमने एक डोर-टू-डोर सेवा भी शुरू की है, लेकिन लोग वैक्सीन को लेकर अनिच्छुक हैं। केवल शिक्षित लोग ही टीकाकरण करवा रहे हैं।"

बेग ने कहा, "वे टीकों से डरते हैं। उन्हें डर है कि वैक्सीन की वजह से कुछ हो सकता है। हमने समाचार पत्रों, उलेमा (मौलवियों), वरिष्ठ डॉक्टरों के साक्षात्कार और सोशल मीडिया के माध्य से लोगों को टीकाकरण के लिए जागरूक किया है। इसके बावजूद अभी भी बहुत कम लोग वैक्सीन लेने आ रहे हैं।"
COVID-19 वेरिएंट वैश्विक स्तर पर कहर बरपा रहे हैं। विभिन्न देशों में टीकाकरण अभियान ने दुनिया भर में तीसरी लहर के प्रभाव को रोकने में अहम भूमिका निभाया है। पाकिस्तान में अभी तक सिर्फ आठ लाख लोगों ने टीके लगवाए हैं। यह आंकड़ा वहां की आबादी का केवल 0.2 प्रतिशत है। द डिप्लोमैट ने यह जानकारी दी है। कुंवर खुलदून शाहिद ने द डिप्लोमैट में लिखते हुए कहा कि इस दर से पाकिस्तान को अपने 22 करोड़ लोगों को टीका लगवाने में साढ़े चार साल का समय लगेगा। इजरायल में पहले से ही 60 फीसदी आबादी का टीकाकरण हो चुका है। इसके अलावा यूके में 50 फीसदी, चिली में 42 फीसदी और बहरीन में 40 फीसदी लोगों को टीके लग चुके हैं। 'द डिप्लोमैट' ने बताया कि दक्षिण एशिया में, भूटान ने 63 प्रतिशत, मालदीव ने 55 प्रतिशत और यहां तक ​​कि भारत ने भी पाकिस्तान से छह गुना अधिक लोगों को टीके प्रदान किए हैं
पाकिस्तान के कराची, इस्लामाबाद, मुल्तान और पेशावर जैसे शहरी केंद्रों के साथ पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा (केपी) जैसे शहरी केंद्रों में भी लोग टीका लगवाने से पहरहेज कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में, COVID-19 दिशानिर्देश अस्पतालों के सामने या टीवी और रेडियो पर सरकारी प्रायोजित विज्ञापनों और अखबारों में बैनर तक सीमित रहे हैं। महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने मास्क पहनने से परहेज किया।


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