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सोच से स्वास्थ्य का भी संबंध है। यह बात तो सुनी जाती रही है
ओरेगन (अमेरिका), एएनआइ। सोच से स्वास्थ्य का भी संबंध है। यह बात तो सुनी जाती रही है। लेकिन अब एक नए शोध में भी यह बताया गया है कि बुढ़ापे के नकारात्मक पहलुओं का अहसास का आपके शारीरिक स्वास्थ्य पर असर होता है और उससे तनाव से लड़ने की क्षमता भी प्रभावित होती है। यह शोध निष्कर्ष जर्नल्स आफ जेरंटालाजी में प्रकाशित हुआ है।
ओएसयू के शोधकर्ताओं ने 100 दिनों से ज्यादा समयावधि में बुजुर्गों के दैनिक सर्वे डाटा के आधार पर पाया है कि बुढ़ापे को लेकर जिन लोगों की धारणा सकारात्मक थी, उनमें तनाव से मुकाबले की क्षमता नकारात्मक धारणा वालों की तुलना में ज्यादा मजबूत रही।
ओएसयू के कालेज आफ पब्लिक हेल्थ एंड ह्यूमन साइंस की शोधार्थी तथा अध्ययन की मुख्य लेखिका डकोटा विट्जेल ने बताया कि बुढ़ापे के बारे में अच्छे अहसास आपके स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। इसमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना तनाव झेलते हैं। तनाव को लेकर किए गए शोध में पाया गया है कि दैनिक और दीर्घावधिक तनाव का असर स्वास्थ्य पर कई लक्षणों के रूप में प्रकट होते हैं। इनमें हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज तथा संज्ञानात्मक क्षमता का हृास शामिल हैं। लेकिन धारणा के आधार पर पैदा हुआ तनाव का अहसास उतना ही जोखिम वाला होता है।
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के लिए 52 से 88 वर्ष उम्र वर्ग के 105 बुजुर्गों का आनलाइन सर्वे कर उनकी जिंदगी और सामाजिक अनुभव (पीयूएलएसई) जानने की कोशिश की। इसके आधार पर धारणा आधारित तनाव और स्वास्थ्य पर पड़े उसके प्रभाव का 100 दिनों तक आकलन किया। इसके साथ ही उनसे बुढ़ापे को लेकर भी एक प्रश्नावली भरवाया गया। सवालों में यह पूछा गया कि आज जो आपने दिक्कतें महसूस की, उसके बारे में क्या आप मानते हैं कि यह इतनी कठिन है कि उससे आप पार नहीं पा सकते हैं। यह भी कि क्या आप सोचते हैं कि इतने बूढ़े हो गए हैं कि कोई काम के नहीं रह गए हैं।
पाया गया कि जिन लोगों में बुढ़ापे को लेकर बुरे अहसास थे, उनमें धारणा आधारित तनाव का स्तर भी ज्यादा था। जबकि सकारात्मक अहसास वाले लोगों में बीमारियों के बहुत कम लक्षण थे। उल्लेखनीय यह कि जिस दिन बुढ़ापे को लेकर ज्यादा नकारात्मक भाव थे, उस दिन सामान्य दिनों की तुलना में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के लक्षण तीन गुना अधिक थे। दूसरे शब्दों में कहें तो बुढ़ापे का सकारात्मक अहसास तनाव का स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के खिलाफ सुरक्षात्मक असर पैदा करता है।
विट्जेल ने कहा कि इसका मतलब यह है कि सोच के पैटर्न या बातचीत के ऐसे तौर-तरीके, जो बुढ़ापे को लेकर पुरातन नकारात्मकता को मजबूत करते हैं, उसका व्यक्ति के भौतिक जीवन पर असर होता है। ये बातें न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं बल्कि दैनिक जीवन में परेशानियां पैदा करते हैं।
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