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नए शोध का दावा- साफ हवा बढ़ा सकती है ग्लोबल वार्मिंग

Gulabi Jagat
24 July 2022 3:46 PM GMT
नए शोध का दावा- साफ हवा बढ़ा सकती है ग्लोबल वार्मिंग
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ग्लोबल वार्मिंग
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं हैं. जीवाश्म ईंधन और मानवीय गतिविधियों की वजह से कार्बनडाइऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों (Green House Gases) का उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है. वनों की कटाई जैसे कई और भी कार्य भी समस्या को गंभीर कर रहे हैं. ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा वायुमडंल और जमीन और महासागरों का तापमान बढ़ा रहा है जिसे हम ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) कहते हैं. लेकिन नए अध्ययन ने इस बात को रेखांकित किया है कि ग्रीन हाउस गैसें हमारे ग्रह के ठंडा बनाए रखने के लिए मददगार होती हैं और अगर हम अपनी हवा को साफ करेंगे तो उससे ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा ही होगा.
पृथ्वी गर्म होती है जा रही है
ग्रीन हाउस गैसें एरोसॉल जैसे प्रदूषित कणों को ऊपर उठाने का काम करती हैं जो सूर्य से आने वाले प्रकाश को प्रतिबिम्बित कर उन्हें वापस भेज कर ऊष्माकम करते हैं जिससे पृथ्वी का तापमान नहीं बढ़ता है. लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता के कारण वायु प्रदूषण कम हो रहा है और उसका नतीजा यह है कि पृथ्वी गर्म होती जा रही है.
हवा साफ होने का असर भी
यह कैसे हो रहा है नए अध्ययन ने इसी पर प्रकाश डाला है. साइंसडॉटओराजी की रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया है कि वैश्विक वायुप्रदूषण के जलावयु पर प्रभाव साल 2000 के स्तरों से 30 प्रतिशत कम हो गया है. यह नतीजा बहुत से सैटेलाइट अध्ययनों के आधार पर लिया गया है.
बढ़ी है ग्लोबल वार्मिंग
इस अध्ययन के मूल लेखक और लेइपजिंग यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक जोहानेस क्वास का कहना है कि साफ हवा ने वास्तव में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की वजह से हुई वार्मिंग को उसी दौरान 15 से 50 प्रतिशत तक बढ़ाया है. क्वास का कहना है कि जैसे जैसे वायुप्रदूषण कम होता जाएगा और इसमें और ज्यादा इजाफा होता जाएगा यानि वार्मिंग बढ़ती जाएगी.
प्रदूषण बढ़ना भी समाधान नहीं
कार्ल्सरूहे इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के रिमोट सेंसिंग विशेषज्ञ जैन सेरमैक ने बताया की प्रदूषण बढ़ाते रहना भी समाधान नहीं है. इसमें कोई शक नहीं कि वायुप्रदूषण लोगों को मार रहा है और हमें साफ हवा की जरूरत है. बल्कि वे तो मानते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों में तेजी लाना बहुत जरूरी है.
कठिन है उत्सर्जन कम करना
लेकिन शोधकर्ताओं का यह मानना है कि इस बात की गुंजाइश कम है कि उत्सर्जन इतनी तेजी से कमकिए जाएंगे कि वैज्ञानिकों द्वारा दी गई 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा. वहीं पृथ्वी अब तक 1.2डिग्री सेल्सियस का आंकड़ा पहले ही छू चुकी है. इस सवाल का जवाब यही है कि हमें एरोसॉल्स की ओर फिर से जाएं.
सोलर जियोइंजीनियरिंग का समाधान
शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके लिए सोलर जियोइंजीनियरिंग एक उपाय हो सकता है. विनाशकारी प्रभावों को रोकने के लिए यह जरूर है कि हम कुछ अंतरिम सुधार करने वाले उपाय अपनाएं जिसमें नियोजित तरीके से एरोसॉल्स का अस्थायी उपयोग शामिल हो. जियो इंजीनियिरिंग एक विवादास्पद तरीका है जिससे वायुमडंल के समतापमंडल में सल्फेट कणओ को डाला जाता है जिससे वैश्विक स्तर पर एक प्रतिबिम्बित धुंध फैल जाएगी.
इस तकनीक से करीब चार पाउंड की कैल्शियम कार्बोनेट की धूल को बड़ी ऊंचाई वाले वैज्ञानिक गुब्बारों के जरिए 12 मील ऊपर वायुमंडल में फैलाया जाएगा. इस मानवनिर्मित बादल बनाने के 24 घंटे बाद फिर से गुब्बारे के जरिए इसके प्रभावों को सेंसर्स के जरिए सूर्य की रोशनी कितनी प्रतिबिम्बित हो रही है और आसपास की वायु पर क्या असर हो रहा है, इस तरह की जनाकारी जुटाई जाएगी.
Gulabi Jagat

Gulabi Jagat

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