विश्व
जल्द मंडराएगा दुनिया पर नया संकट, छिड़ सकता है अमेरिका-रूस में न्यूक्लियर वॉर
Renuka Sahu
9 Jun 2022 1:24 AM GMT
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फाइल फोटो
इस वक्त दुनिया पर सबसे बड़ा संकट मंडरा रहा है और दुनिया के दो सुपरपावर देशों- अमेरिका और रूस में इस संकट की आहट साफ सुनाई देने लगी है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इस वक्त दुनिया पर सबसे बड़ा संकट (Global Crisis) मंडरा रहा है और दुनिया के दो सुपरपावर देशों- अमेरिका और रूस में इस संकट की आहट साफ सुनाई देने लगी है. एक सर्वे में पता चला है कि दो महामुल्कों के अधिकतर लोगों को लगता है कि दुनिया में न्यूक्लियर वॉर (Nuclear War) छिड़ना तय है. आज हम इस न्यूक्लियर फीयर के हर चैप्टर को खोलेंगे. और आपको बताएंगे कि ये खतरा कितना गंभीर है. रूस और यूक्रेन में जारी जंग (Russia-Ukraine War) के बीच NATO चीफ स्टोल्टेनबर्ग ने बाल्टिक देशों से बात की. स्टोल्टेनबर्ग ने एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया के पीएम से बातचीत की. बाल्टिक क्षेत्र में अटैक और डिफेंस के तरीकों पर चर्चा हुई.
आज सबसे पहले उन Fear zone की बात करेंगे. जिनकी वजह से दुनिया में दहशत है. वर्ल्ड वॉर और न्यूक्लियर हमले की आशंका बढ़ चुकी है. ये फियर जोन. रूस से लेकर अमेरिका और चीन से लेकर जापान तक बन चुके हैं. एक एक फियर जोन को ध्यान से समझिए.
1. पहला डर – न्यूक्लियर मिसाइल
रूस ने कहा है कि वो दस जून से पहले अपनी SATAN 2 मिसाइल का टेस्ट कर सकता है. ये मिसाइल यूरोप अमेरिका को तबाह करने के लिए काफी है. SATAN मिसाइल का डर अमेरिका को है. इसलिए अमेरिका की स्ट्रैटजिक कमांड के चीफ ने कहा भले ही बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन इसके खिलाफ हो, लेकिन रूस और चीन के न्यूक्लियर प्रोग्राम को देखते हुए न्यूक्लियर मिसाइलें वक्त की मांग हैं.
2. दूसरा डर – रूस Vs अमेरिका
रूस और अमेरिकी की जनता के बीच न्यूक्लियर हमले का डर सामने आया है. एक स्टडी के मुताबिक 70 परसेंट अमेरिकी नागरिकों को लगता है कि यूक्रेन जंग के आगे न्यूक्लियर वॉर होगी. मास्को से भी इसी तरह की एक स्टडी सामने आयी है. जिसमें कहा गया है कि करीब 50 परसेंट लोगों को न्यूक्लियर वॉर का डर सता रहा है.
3. तीसरा डर – फिनलैंड-स्वीडन
नाटो में शामिल होने वाले फिनलैंड और स्वीडन को अपनी सुरक्षा का डर है. इसलिए फिनलैंड ने अब BALTOPS बाल्टिक ऑपरेशन वॉर ड्रिल के जरिए नाटो से करीबी दिखाई. दूसरी तरफ स्वीडन को गोटलैंड आइलैंड पर हमले का डर है. इसलिए गोटलैंड मिलिट्री बेस पर सैनिकों और आर्म्स एंड एम्युनिशन की सप्लाई बढ़ा दी गई है.
4. चौथा डर – नॉर्थ कोरिया का ATOM
साउथ कोरिया में अमेरिका के स्पेशल एनवॉय और IAEA ने एक बार फिर चेताया है कि नॉर्थ कोरिया किसी भी वक्त न्यूक्लियर टेस्ट को अंजाम दे सकता है. इसे लेकर बुधवार को जापान, साउथ कोरिया और अमेरिका के डिप्लोमैट्स की सियोल में इमरजेंसी मीटिंग हुई.
5. पांचवां डर – चीन Vs जापान
ग्लोबल टाइम्स ने अपने एडिटोरियल में जापान को धमकी दी है. ताइवान फ्रंट को लेकर जापान के दखल पर जिनपिंग के माउथपीस का कहना है कि अगर जापान ऐसे ही आगे बढ़ा तो उसके सिर पर चोट करने की जरूरत है.
6. छठा डर – चीन Vs ताइवान
चीन ने एक बार फिर ताइवान पर कब्जे की नीयत के इरादे से वॉर ड्रिल को अंजाम दिया. ईस्ट चाइनी सी में जेझियांग प्रोविंस के पास.लाइव फायर एक्सरसाइज की गई.
7. सातवां डर – ईरान Vs इजरायल
ईरान की एटमी प्रोग्राम को लेकर इजरायल एग्रेसिव हो चुका है.लगातार वॉर एक्सरसाइज कर रहा है. इजरायल UN के सामने क्लियर कर चुका है.कि सेल्फ डिफेंस के नाम पर वो ईरान की न्यूक्लियर साइट्स को टारगेट कर सकता है.
अब जिस तरह के हालात है. उससे लगता है कि ये फियर जोन किसी भी वक्त रियल conflict zone में तब्दील हो सकते हैं और अगर इनमें से एक भी वॉर जोन विस्फोटक हो गया तो फिर रूस और अमेरिका जैसे न्यूक्लियर सुपरपावर्स के युद्ध में शामिल होने की संभावना और ज्यादा बढ़ जाएगी. युद्ध का दायरा बढ़ाने में रूस के नेता और पॉलिटिकल कमेंटेटर्स कोई कसर नहीं छोड़ रहे.
दुनिया को सबसे बड़ा बिजनेस डर का
दुनिया में सबसे बड़ा बिजनेस डर का है. यूक्रेन रूस से डरा नहीं तो रूस ने हमला बोल दिया. जंग जारी है, लेकिन विनाश का दायरा बढ़ने के आसार दिखने लगे हैं. रूस लगातार न्यूक्लियर जंग की धमकी दे रहा है. अपनी मिसाइलों से दुनिया को डरा रहा है.
रूस अब अपनी सरमत 2 इंटर कॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल का दूसरा टेस्ट करने जा रहा है. अखबार ने लिखा है कि मिसाइल टेस्ट के जरिए. पुतिन वेस्टर्न वर्ल्ड को न्यूक्लियर हमले की वॉर्निंग दे रहे हैं.
रिपोर्ट कहती है कि सरमत 2 मिसाइल का टेस्ट कामचटका इलाके के पास कुरा मिसाइल टेस्ट रेंज से किया जाएगा. ये इलाका इसलिए चुना गया क्योंकि इसका एरिया इंग्लैंड से भी बड़ा है. यानी इंग्लैंड को मैसेज देने वाला मिसाइल टेस्ट है. कामचटका के लोगों को इमरजेंसी प्रिकॉशन लेने के लिए एडवाइजरी जारी कर दी गई है. टूरिस्ट और आम नागरिकों से कहा गया है कि 10 जून तक मिसाइल टेस्ट किया जा सकता है.
रूस की न्यूक्लियर धमकी का दूसरा सिग्नल खुद पुतिन के करीबी ने दिया. रूस के पूर्व राष्ट्रपति और रशियन नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के डिप्टी चीफ दिमित्री मेदवदेव ने कह दिया कि जो लोग रूस को खत्म करना चाहते हैं. उन्हें दुनिया से मिटाने की पूरी कोशिश करेंगे. इससे पहले मेदवदेव ये भी कह चुके हैं कि कयामत का दिन नजदीक है.
अगर बात न्यूक्लियर फियर और धमकियों की हो और उसमें रूस के टीवी प्रेजेंटर्स का नाम सामने ना आए. उनके बयान हेडलाइन न बनें. ऐसा कैसे हो सकता है. बीते 15 अप्रैल से (किसी ना किसी लेवल पर) रूस के स्टेट मीडिया में वर्ल्ड वॉर एटमी हमले की बाते होती है. कल भी ऐसा ही हुआ. रशिया 1 चैनल पर डिबेट हो रही थी. पुतिन की वॉइस कहे जाने वाले. Vladimir Solovyov ने बड़ा बयान दे दिया.
सोलोयोव ने कह दिया न्यूक्लियर वॉर आने वाली है. एटमी हमले में सब कुछ खत्म हो जाएगा. कुछ म्यूटेंट्स बच जाएंगे. जिस वक्त दुनिया को बर्बाद करनेवाली बातें हो रही थी. उसी दौरान टीवी पर ठहाके लगाए जा रहे थे. हंस-हंसकर डूम्डसे का प्लान बताया जा रहा था.
पुतिन के करीबी एंकर व्लादिमिर सोलोयोव ने कहा कि अगर NATO ने फैसला कर लिया कि वो हमारे बॉर्डर पर कोई भी हथियार रख सकता है क्योंकि वो बहुत ज्यादा अमेरिकी हथियार यूक्रेन में भेज रहा है. यूक्रेन इन हथियारों का इस्तेमाल करेगा और हमारे एटमी पावर प्लांट पर अटैक करेगा. बस फिर रिएक्शन होगा.
एटमी अटैक की बातें तेज क्यों होने लगीं
लेकिन सवाल है कि आखिर अब एटमी अटैक की बातें तेज क्यों होने लगी है. इसे समझने के लिए अमेरिका रूस और ब्रिटेन के बीच अदावत के नई टाइमलाइन को गौर से देखना होगा.
पहले अमेरिका ने यूक्रेन को लंबी दूरी वाली मिसाइल सिस्टम भेजने का ऐलान किया. अमेरिका के बयान के बाद पुतिन का रिएक्शन आया.पुतिन ने कह दिया कि अगर लंबी दूरी के रॉकेट सिस्टम भेजे.तो फिर फ्रेश टारगेट्स पर अटैक करेंगे. लेकिन पुतिन की धमकी के बावजूद ब्रिटेन ने भी यूक्रेन को एडवांस रॉकेट सिस्टम भेजने का ऐलान कर दिया.
इसके बाद रूस की तरफ से बड़ा रिएक्शन आया. विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कह दिया कि अगर लंबी दूरी की मिसाइल सिस्टम से टारगेट किया. तो फिर रूस का टारगेट भी और आगे शिफ्ट हो जाएगा. इसका मतलब रूस ने टारगेट तय कर लिए हैं. मिसाइल का डर दिखाकर बार-बार अमेरिका और ब्रिटेन पर हमले की बातें हो रही है. अब सवाल कि है न्यूक्लियर बम वाली सीमा रेखा पहले पार कौन करेगा.
कोल्ड वॉर के खात्मे के बाद से कभी भी ऐसी सिचुएशन नहीं आई. जब न्यूक्लियर वेपंस के इस्तेमाल की इतनी बड़े पैमाने पर चर्चा हुई, लेकिन रूस के स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन के बाद. सब कुछ बदल गया. यूएन चीफ तक को कहना पड़ गया कि nuclear conflict की संभावना दिखाई देने लगी है. यही सब देखते हुए अमेरिकी फोर्सेस ने भी अपनी तैयारियों पर जोर दिया है. कुछ दिन पहले अमेरिका ने हाइपरसॉनिक मिसाइल का टेस्ट किया था. अब एक बार फिर अमेरिका ने सबमरीन क्रूज मिसाइलों वाले प्रोग्राम को शुरू करने पर जोर दिया जा रहे हैं.
जो बाइडेन इसके खिलाफ हैं. वो तो ग्रैविटी बॉम्ब को भी रिटायर करना चाहते हैं, लेकिन मिलिट्री सर्किल में इसे लेकर अलग राय हैं. ऑफिसर्स चाहते हैं कि अभी न्यूक्लियर डेटरेंस से छेड़छाड़ ना हो.बल्कि इसे और बढ़ाया जाए.
क्या रूस की मिसाइल से अमेरिका डर गया ?
जिस वक्त रूस में सरमत 2 मिसाइल के टेस्ट की बात सामने आई. उसी दौरान मास्को से करीब 8000 किलमीटर दूर वॉशिंगटन में अलर्टनेस दिखी. अमेरिकी संसद में रूस और चीन के न्यूक्लियर अटैक की काट खोजने पर चर्चा हो रही थी. इसमें US स्ट्रैटजिक कमांड के चीफ एडमिरल चार्ल्स रिचर्ड का लेटर पढ़ा गया. उनका साफ साफ कहना था कि अमेरिका को sea-launched cruise missile प्रोजेक्ट दोबारा शुरू करना चाहिए. अमेरिका के पास न्यूक्लियर डेटरेंट के तौर पर न्यूक्लियर केपेबल मिसाइलें होनी चाहिए. चीन और रूस के एटमी प्रोग्राम को देखते हुए शॉर्ट रेंज टैक्टिकल मिसाइलों की जरूरत है.
ऐसा नहीं है कि अमेरिका के पास एटमी मिसाइलें नहीं हैं. अमेरिका के पास सबमरीन से बैलेस्टिक मिसाइल दागने वाली फायर पावर है. कम से कम 400 मिसाइलें किसी भी वक्त एटम बम से अटैक कर सकती हैं. लेकिन बाइडेन इस प्रोग्राम की वकालत नहीं करते. वो इस प्रोजेक्ट को कैंसिल करने के मूड में है. इसीलिए जब अमेरिकी ससंद डिफेंस बजट पास करने की तैयारी में है तब बाइडेन की मर्जी के बगैर न्यूक्लियर कमांड के चीफ अपनी बात रख रहे हैं.
कांग्रेस के सामने लेटर में न्यूक्लियर प्रोग्राम के चीफ का कहना था कि जिस तरह रूस और चीन अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम का विस्तार कर रहे हैं. ऐसे में अमेरिका को और तैयार रहने की जरूरत है क्योंकि ये सिचुएशन अमेरिका के सामने इतिहास में पहले कभी नहीं आई. वैसे अमेरिका का कुछ इसी तरह का रुख ग्रैविटी बम को लेकर भी है. बाइडेन प्रशासन B83 megaton gravity बम को रिटायर करना चाहता है.
ये बम अमेरिका के हिरोशिमा पर गिराए बम से 100 गुना ज्यादा शक्तिशाली है और न्यूक्लियर डेटरेंस के तौर पर मौजूद है. असल में रूस यूक्रेन जंग के बाद सीन बदला है. तमाम देश अपनी सिक्योरिटी को लेकर फिक्रमंद हैं. खासकर जिनके पास एटम बम नहीं है. वो और ज्यादा डरे हुए है, लेकिन इस सबके बीच रूस और अमेरिका के लोग भी दहशत में है.
हाल ही में American Psychological Association की तरफ से सर्वे हुआ. इसमें 70 परसेंट लोगों ने माना कि यूक्रेन की जंग किसी भी वक्त न्यूक्लियर वॉर में तब्दील हो सकती है. लोगों का कहना था कि हम तीसरे विश्व युद्ध के शुरुआती दौर में पहुंच चुके हैं. इसी तरह रूस में भी 2021 के आखिर में न्यूक्लियर वॉर पर लोगों की राय सामने आई. सर्वे में शामिल करीब 50 परसेंट लोगों ने न्यूक्लियर वॉर की आशंका जाहिर की.
इन सारी बातों का मतलब यही है कि न्यूक्लियर डेटरेंस के नाम पर डर और दशहत की जो फसल बोई गई वो अब पकने लगी है. उसका असर दिखने लगा है. अब ये बात लोगों के मन में घर कर चुकी है कि किसी भी वक्त न्यूक्लियर हमले का बटन ऑन हो सकता है. एटमी हमले वाले डर का विस्तार कोरिया द्वीप तक पहुंच चुका है. लगातार विनाश और तबाही की शुरुआत के अलार्म बज रहे हैं. वॉशिंगटन से लेकर सियोल तक वॉर्निंग सिग्नल दिए जा रहे हैं.
अमेरिका और साउथ कोरिया मिलकर नॉर्थ कोरिया को काउंटर करने की तैयारी कर रहे हैं क्योंकि दोनों मुल्कों को लगता है कि नॉर्थ कोरिया किसी भी वक्त एटम बम के टेस्ट को अंजाम दे सकता है. नॉर्थ कोरिया सातवां न्यूक्लियर टेस्ट आनेवाले दिनों में कर सकता है. इसे लेकर पिछले कुछ वक्त से अमेरिका में चिंता बनी हुई है. नॉर्थ कोरिया के एटमी टेस्ट के खिलाफ कंटिंजेंसी प्लान तैयार किया है. अपने सहयोगी और मित्र देशों के साथ प्लान पर चर्चा कर चुके हैं.
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