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ओली ने गुरुवार को कहा कि प्रधानमंत्री नियुक्त करने का काम न्यायपालिका का नहीं है
नेपाल (Nepal) के प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने प्रतिनिधि सभा को भंग करने के अपनी सरकार के विवादास्पद फैसले का बचाव किया है. ओली ने गुरुवार को कहा कि प्रधानमंत्री नियुक्त करने का काम न्यायपालिका का नहीं है. वह देश के विधायी और कार्यकारी कार्य नहीं कर सकती.
सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई
बताते चलें कि पीएम ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने पांच महीने में दूसरी बार 22 मई को प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया था. इसके साथ ही उन्होंने 12 और 19 नवंबर को चुनाव कराने की घोषणा की. इस मुद्दे पर विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट (Nepalese Supreme Court) में याचिका दायर की है. जिस पर ओली सरकार ने कोर्ट में अपना जवाब दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने लिखित जवाब में ओली ने कहा कि प्रधानमंत्री नियुक्त करने का काम न्यायपालिका का नहीं है. सरकार ने अपने जवाब में कहा, 'अदालत का कार्य संविधान और मौजूदा कानूनों को परिभाषित करना है. वह विधायी या कार्यकारी संस्थाओं की भूमिका नहीं निभा सकती है. प्रधानमंत्री की नियुक्ति पूरी तरह राजनीतिक और कार्यपालिका की प्रक्रिया है.'
राष्ट्रपति की भूमिका का बचाव
पीएम ओली (KP Sharma Oli) ने कहा, 'दलों के आधार पर सरकार बनाना संसदीय प्रणाली की मूलभूत विशेषता है. संविधान में पार्टी विहीन प्रक्रिया के बारे में उल्लेख नहीं है. ' उन्होंने समूचे मामले में राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी (Bidya Devi Bhandari) की भूमिका का भी बचाव किया. कहा कि संविधान का अनुच्छेद 76 केवल राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का अधिकार प्रदान करता है.
उन्होंने कहा, 'अनुच्छेद 76 (5) के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि सदन में विश्वासमत जीतने या हारने की प्रक्रिया की विधायिका या न्यायपालिका द्वारा समीक्षा की जाएगी.'प्रधानमंत्री ओली प्रतिनिधि सभा में विश्वासमत हारने के बाद अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं.
कोर्ट में 30 से ज्यादा याचिकाएं
प्रतिनिधि सभा को भंग किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Nepalese Supreme Court) में 30 से ज्यादा रिट याचिकाएं दायर की गई हैं. इनमें से कुछ याचिकाएं विपक्षी गठबंधन ने भी दायर की है. कोर्ट ने मामले की सुनवाई शुरू की है और 23 जून से मामले पर नियमित सुनवाई होगी.
नेपाल (Nepal) में राजनीतिक संकट की शुरुआत पिछले साल 20 दिसंबर को हुई थी. जब प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने प्रतिनिधि सभा को भंग कर 30 अप्रैल और 10 मई को चुनाव कराने की घोषणा की. फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिनिधि सभा को फिर से बहाल कर दिया था.
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