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ईरान से तकरार के चलते सऊदी अरब को बहुत अधिक पैसा अपने अन्य संसाधनों से हटाकर रक्षा पर लगाना पड़ता है.
मध्य-पूर्व में इजरायल और फलस्तीन (Israel-Palestine) के बीच हो रहे संघर्ष पर दुनियाभर की नजरें टिकी हुई हैं. लेकिन हाल ही में यहां एक और बड़ी घटना हुई, जिस पर दुनिया का ज्यादा ध्यान नहीं गया. दरअसल, मध्य-पूर्व में दो कट्टर मुल्क सऊदी अरब (Saudi Arabia) और ईरान (Iran) के बीच एक बार फिर रिश्तों में सुधार होता हुआ नजर आ रहा है. ईरान ने 10 मई को आधिकारिक रूप से कहा कि सऊदी अरब संग उसकी वार्ता चल रही है. पिछले चार दशकों से दोनों मुल्कों के बीच प्रतिद्वंदिता चल रही है, जिसे नए शीत-युद्ध के तौर पर भी देखा जाता है.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, यमन, लेबनान और सीरिया में जारी गृह युद्ध में सऊदी अरब और ईरान अपने-अपने गुटों को समर्थन देते नजर आए हैं. जनवरी से हो रही इस बातचीत को यूरेशिया ग्रुप में मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका रिसर्च टीम के प्रमुख ऐहाम कामिल ने अभूतपूर्व बताया है. इससे पहले, फाइनेंशियल टाइम्स अखबार ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि दोनों मुल्कों ने रिश्तों को सुधारने के लिए बगदाद में मुलाकात की. लेकिन सऊदी अरब ने इस खबर को खारिज कर दिया. फिर कुछ हफ्तों बाद सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा कि वह ईरान संग रिश्ते बहाल करना चाहते हैं.
जब क्राउन प्रिंस ने खामनेई को लेकर दिया विवादित बयान
मोहम्मद बिन सलमान (Mohammed bin Salman) के बयान से दुनिया चौंक उठीं, क्योंकि अब तक दोनों देशों के बीच सिर्फ तल्खियां ही देखने को मिली थी. वहीं, क्राउन प्रिंस का ये बयान इसलिए भी हैरानी भरा था, क्योंकि तीन साल पर खुद उन्होंने कहा था कि ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयातोल्लाह अली खामनेई के सामने हिटलर भी अच्छा इंसान लगता है. ऐसे में ये सवाल उठने लगा है कि आखिर सऊदी अरब और ईरान के बीच इस बदलाव की वजह क्या है? आइए जाना जाए वो कौन से कारण हैं, जिनकी वजह से दो धुर-विरोधी देश एक साथ बैठकर वार्ता करने पर मजबूर हो रहे हैं.
अमेरिकी नीति में होता बदलाव
अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद जो बाइडेन ने स्पष्ट कर दिया कि वह मध्य-पूर्व को लेकर अपनी नीति में बदलाव करने वाले हैं. बाइडेन का जोर मध्य-पूर्व में अमेरिकी मौजूदगी को कम करना है. राष्ट्रपति बाइडेन ऐसा करते हुए नजर आए हैं. उन्होंने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी पर मुहर लगा दी है. इसके अलावा, यमन युद्ध से पीछे हट गए हैं और परमाणु समझौते पर बातचीत शुरू हो गई है. माना जा रहा है कि बाइडेन ने ईरान को लेकर अपनी नई नीति बनाई है, जिस वजह से सऊदी अरब के रुख में बदलाव आया है. ईरान को लेकर बाइडेन कम आक्रामक हैं और यही वजह है कि अब सऊदी अरब क्षेत्रीय स्थिति के लिए वैकल्पिक रणनीति पर विचार कर रहा है.
इजरायली गठबंधन से पैदा होने वाला खतरा
परमाणु समझौता होने के बाद ईरान के ऊपर से आर्थिक प्रतिबंध हट जाएंगे. ऐसा होने के लिए उसे सऊदी अरब के साथ की भी जरूरत है. लेकिन सबसे बड़ी वजह ये है कि ईरान को इस बात का डर सता रहा है कि जिस तरह UAE, कतर जैसे सुन्नी अरब मुल्क इजरायल से रिश्ते सामान्य कर रहे हैं. कहीं इसकी वजह से उसके खिलाफ एक बड़ा गठबंधन न खड़ा हो जाए. ईरान की मंशा ऐसा होने से रोकने की है. ऐसे में माना जा रहा है कि सऊदी अरब संग चर्चा कर ईरान उसे इस तरह का गठबंधन बनाने से रोकना चाहता है. वर्तमान में गाजा में जारी हिंसा ने भी ईरान की इसमें मदद की है, क्योंकि अब इजरायल के खिलाफ माहौल बन गया है.
महंगा 'संघर्ष' भी एक वजह
ईरान और सऊदी अरब खाड़ी के कई मुल्कों में पर्दे के पीछे से युद्ध लड़ रहे हैं. इसमें सीरिया, लेबनान और यमन में जारी संघर्ष शामिल है. दोनों के बीच इस अप्रत्यक्ष लड़ाई की वजह से काफी पैसा खर्च होता है. 2018 में वाशिंगटन स्थित एक थिंक टैंक 'फाउनडेशन फॉर द डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज' के प्रमुख विश्लेषक डेविड आडेस्निक ने बताया कि दोनों देश अपने-अपने गुटों पर करीब 1500 से दो हजार करोड़ डॉलर खर्च करते हैं. ईरान आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है, ऐसे में उसके लिए ये राशि काफी अधिक है. दूसरी ओर, ईरान से तकरार के चलते सऊदी अरब को बहुत अधिक पैसा अपने अन्य संसाधनों से हटाकर रक्षा पर लगाना पड़ता है.
Neha Dani
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