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तेजी से पिघल रहा धरती का 'सनस्क्रीन'
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) के एक नए वीडियो से वैज्ञानिकों के बीच घबराहट बढ़ गई है. क्योंकि इस वीडियो में दिखाया गया है कि अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन लेयर का बड़ा छेद हो गया है. साल 1979 के बाद 13वीं बार यह सबसे बड़ा छेद है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लोबल वॉर्मंग की वजह से ये हालत है. ओजोन लेयर पर नासा और नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के तीन सैटेलाइट नजर रखते हैं. पहला है - औरा, दूसरा है सॉमी-NPP और तीसरा है NOAA-20.
NASA के इस वीडियो में साफ तौर पर दिखाया गया है कि कैसे 29 अक्टूबर 2021 को अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन लेयर में बहुत बड़ा छेद हो गया है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह छेद बंद होने में नवंबर महीना लग जाएगा. ओजोन एक ऐसा ऑक्सीजन कंपाउंड है जो प्राकृतिक तौर पर तो बनता ही है, इसे इंसान भी बना सकता है. यह धरती के वायुमंडल के ऊपरी हिस्से के ऊपर बनता है.
प्राकृतिक रूप से कैसे बनती है ओजोन की परत?
Today's #Ozone analysis from @CopernicusECMWF #AtmosphereMonitoring Service @ECMWF shows that the #OzoneHole still covers an area of about 20 million m^2 and that minimum ozone columns are still below 150 DU. More information on https://t.co/JGcrURyxJM pic.twitter.com/paHyCsPyvP
— Antje Inness (@AntjeInness) November 8, 2021
स्ट्रैटोस्फेयर पर ओजोन तब बनता है जब सूरज की अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन धरती के वायुमंडल के मॉलिक्यूलर ऑक्सीजन से टकराती हैं. इसलिए ओजोन एक सनस्क्रीन की तरह काम करता है. धरती को अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचाता है. दुख की बात ये है कि इंसानी गतिविधियों से निकलने वाली क्लोरीन और ब्रोमीन की वजह से ओजोन लेयर में खराब होने लगती है. उसमें छेद होने लगता है. इस छेद से सूरज की अल्ट्रावॉयलेट किरणें जमीन तक पहुंचने लगती हैं.
1987 में हुए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत ओजोन परत को घटाने वाले पदार्थों के उत्पादन पर रोक लगाने के लिए 50 देशों ने समझौता किया था. लेकिन दुनिया के कई देशों ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए थे. क्योंकि उनमें से कई देश इस प्रोटोकॉल को आसानी से नहीं मानते. हालांकि, NASA का कहना है कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल से काफी फायदा हुआ है. नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में अर्थ साइंसेज के चीफ साइंटिस्ट पॉल न्यूमैन ने कहा कि साल 2021 ओजोन लेयर की हालत इसलिए खराब हुई क्योंकि स्ट्रैटोस्फेयर औसत से ज्यादा ठंडा था. अगर प्रोटोकॉल नहीं होता तो ये और बड़ा हो सकता था.
अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचा ओजोन लेयर का छेद
इस साल ओजोन लेयर में छेद अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था. यह उत्तरी अमेरिका के आकार का हो गया था. यानी 2.48 करोड़ वर्ग किलोमीटर. नासा ने बताया कि इस साल अक्टूबर के मध्य से ओजोन लेयर में तेजी से घटाव हुआ है. अगर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल लागू नहीं होता तो अब तक ओजोन लेयर का आकार 40 लाख वर्ग किलोमीटर और ज्यादा होता.
यूरोपियन यूनियन के कॉपरनिकस एटमॉस्फियरिक मॉनिटरिंग सर्विस के डायरेक्टर विन्सेंट हेनरी प्यू ने कहा कि जब मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर देशों ने हस्ताक्षर किए थे तब वैज्ञानिकों ने कहा था कि ओजोन लेयर साल 2060 तक पूरी तरह रिकवर कर जाएगा. लेकिन अभी की गणना के अनुसार रिकवरी बेहद धीमी है. अब इसे पूरा होने में कम से कम 2070 तक का समय लगेगा.
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