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ताकि मंगल को लेकर प्रयोग कर रहे वैज्ञानिक इन निष्कर्षों का इस्तेमाल कर सकें.'
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) का क्यूरोसिटी रोवर मंगल ग्रह की सतह पर नमक ढूंढने के बेहद करीब है. जिससे ये पता चल जाएगा कि लाल ग्रह पर प्राचीन समय में जीवन था या नहीं. मैरीलैंड के ग्रीनबेल्ट में स्थित नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वैज्ञानिक रोवर द्वारा ली गई तस्वीरों और एकत्रित डाटा का अध्ययन कर रहे हैं. जिससे इन्हें पता चला है कि ऐसा हो सकता है मंगल पर ऑर्गेनिक, या कार्बन-युक्त नकम मौजूद हो. जिसे एजेंसी ने कार्बनिक यौगिकों का ऑर्गेनिक कंपाउंड बताया है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगल पर ऑर्गेनिक कंपाउंड और नमक भूगोलिक प्रक्रिया या फिर जीवाणुओं के निशान हो सकते हैं. जिससे पता चलता है कि यह जगह रहने योग्य है. हालांकि नासा का Curiosity रोवर पहले भी इस तरह के नमक के निशान ढूंढ चुका है लेकिन उसमें जो उपकरण लगे हैं, उनसे ये पता नहीं चल सकता कि वह ऑर्गेनिक है या नहीं. लेकिन फिर भी टीम का मानना है कि यहां नमक की मौजूदगी हो सकती है. नासा के रिसर्चर जेम्स एमटी लूइस का कहना है, इस मामले में अधिक सबूत जोड़ने से परे सीधे तौर ऑर्गेनिक नमक का मिलना भी मंगल पर जीवन के दावे को बल देता है.
सतह पर ड्रिल संभव
लूइस ने कहा, 'अगर हम ये पता लगा लेते हैं कि मंगल की सतह पर ऑर्गेनिक नकम मौजूद है, तो फिर हम उन क्षेत्रों की और जांच कर सकते हैं और सतह में अधिक ड्रिल भी कर सकते हैं, जहां ऑर्गेनिक मैटर सुरक्षित मिल सकता है.' उन्होंने बताया, धरती पर किए गए प्रयोग और Curiosity में लगे पोर्टेबल लैब (Sample Analysis at Mars) से मिले डाटा से ऐसे संकेत मिलते हैं कि वहां ऑर्गेनिक नमक मौजूद है. लेकिन एसएएम में लगे उपकरणों से उस बारे में सीधे तौर पर पता लगाना मुश्किल है.
क्या है बड़ी परेशानी?
दरअसल ये मंगल की मिट्टी और चट्टान को गर्म करता है, जिससे गैसें उत्सर्जित होती हैं. लेकिन परेशानी ये है कि ऑर्गेनिक नमक को गर्म करने से जो सामान्य गैस उत्सर्जित होती हैं, वह मंगल की मिट्टी पर किसी भी अन्य चीज से निकल सकती हैं. लूइस का कहना है, 'मंगल पर मिले सैंपल को गर्म करने से मिनेरस और ऑर्गेनिक मैटर के बीच और भी कई तरह की गतिविधि हो सकती हैं, जिनके बारे में हमारे प्रयोगों से निष्कर्ष निकालना मुश्किल है. इसलिए हम बीच में मिलने वाली उन गतिविधियों को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि मंगल को लेकर प्रयोग कर रहे वैज्ञानिक इन निष्कर्षों का इस्तेमाल कर सकें.'
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