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नासा का अंतरिक्ष की ओर कदम, अमेरिका के उद्योग सहयोगियों से डिजाइन प्रस्ताव मांगा गया, रिएक्टर का जीवन 10 साल होगा

Renuka Sahu
23 Jun 2022 1:34 AM GMT
NASAs move to space, design proposal sought from US industry partners, reactor life will be 10 years
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फाइल फोटो 

नासा चांद पर 40 किलोवाट का न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने जा रहा है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नासा चांद पर 40 किलोवाट का न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने जा रहा है। नासा के मुताबिक, यह एक हल्का विखंडन प्रक्रिया पर आधारित ऐसा तंत्र है, जो चंद्रमा के रोवर की सतह पर 10 किलोवाट की बिजली ऊर्जा प्रदान करने के साथ वहां के औसत घरेलू ऊर्जा की आवश्यकता की आपूर्ति कर सकेगा।

नासा के मुताबिक, 40 किलोवाट की विखंडन प्रक्रिया पर आधारित सिस्टम के शुरुआती डिजाइन पर 50 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे, जो पृथ्वी पर 10 साल के लिए 30 घरों को मिलने वाली ऊर्जा प्रदान करेंगे। यदि चंद्रमा की सतह पर यह सफलतापूर्वक प्रदर्शन करता है तो भविष्य में इसका उपयोग मंगल पर किया जा सकता है।
प्रोजेक्ट में नासा, अमेरिका के ऊर्जा विभाग के साथ मिलकर शोध कर रहा है। दोनों ने ही अमेरिका के उद्योग सहयोगियों से परमाणु विखंडन ऊर्जा तंत्र के लिए डिजाइन देने को कहा है, जो चंद्रमा पर चल सके व उसे प्रक्षेपित कर सके। नासा के प्रवक्ता स्केली के मुताबिक, एजेंसी ऐसा फ्लाइट हार्डवेयर सिस्टम चाहती है जो चांद की सतह से 2026 तक इंटीग्रेट हो जाए।
पेलोड की तरह जाएगा खुद ही करेगा ऑपरेट
फिजन सरफेस पावर (विखंडन प्रक्रिया) सिस्टम पूरी तरह धरती पर बनेगा और फिर इसे जोड़ा जाएगा। इसके बाद इसे एक पेलोड की तरह लैंडर पर इंटीग्रेट किया जाएगा। सिस्टम को कुछ इस तरह से डिजाइन किया गया है कि एक बार लैंडर चांद की सतह पर पहुंचा तो ये खुद ही अपनी तैनाती और ऑपरेट कर लेगा। इसके चार प्रमुख सब- हैं जिनमें एक परमाणु रिएक्टर, एक इलेक्ट्रिक पावर कन्वर्जन यूनिट, हीट रिजेक्शन ऐरे, पावर मैनेजमेंट एंड डिस्ट्रीब्यूशन सब-सिस्टम शामिल हैं।
चंद्रमा पर परीक्षण बड़ी चुनौती
नासा और डिओए को अभी तक पिछले प्रयोगों में कुछ सफलता जरूर मिली है, लेकिन इसका चंद्रमा पर ही परीक्षण करना एक बड़ी चुनौती होगी।
ऐसी होनी चाहिए क्षमताएं
अंतरिक्ष एजेंसी के मुताबिक, इस तंत्र में ऐसी क्षमताएं होनी चाहिए जो एक छोटे, हल्के विखंडन तंत्र की तरह चंद्रमा की सतह पर काम कर सके। वहां कि औसत घरेलू ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूरा किया जा सके। यह तंत्र चंद्रमा पर वैज्ञानिक प्रयोगों की जरूरतों की पूर्ति करने के लिए काम आएगा।
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