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अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के हबल स्पेस टेलिस्कोप ने पैदा होते सितारों की तस्वीर ली है
वॉशिंगटन।
अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के हबल स्पेस टेलिस्कोप ने पैदा होते सितारों की तस्वीर ली है जो देखने में किसी कल्पना जैसी लगती है। NASA ने बताया है कि यह तस्वीर जिस 'stellar nursery' की है वह जेमिनाई तारामंडल में स्थित है। Stellar Nursery ऐसी जगह है जहां धूल के बादलों से सितारे पैदा होते हैं।
तस्वीर में AFGL 5180 नाम की नर्सरी दिख रही है। इस तस्वीर के बीच में पैदा होता सितारा देखा जा सकता है। इससे निकलने वाली रोशनी के कारण बादलों के बीच से देखा जा सकता है।
टीम ने दोनों सितारों के द्रव्यमान, उनकी चमक और सिस्टम के हिसाब से ग्रहों की पोजिशन के आधार पर तय किया कि इनके ग्रहों पर जीवन कितना मुमकिन है। यहां यह देखा गया कि कहां पानी की कितनी संभावना है। Kepler-38 सिस्टम में एक धरती जैसा सितारा है और एक छोटा सितारा भी। यह धरती से 3970 प्रकाशवर्ष दूर है और बड़े सितारे का चक्कर लगाता हुआ वरुण के आकार का एक ग्रह भी मिला है।
रिसर्चर्स ने Kepler Mission पर मिले 9 सिस्टम्स के सितारों और ग्रहों के रहने लायक क्षेत्रों पर होने वाले असर को स्टडी किया है। इनमें से जिन सिस्टम्स को उन्होंने चुना, उनमें एक वरुण के आकार का ग्रह है। इसके लिए Kepler 34, 35, 38, 64 औ 413 को चुना गया। इनमें से 38 के धरती जैसा होने की संभावना मानी गई है। इसके एक सितारे का द्रव्यमान सूरज का 95% है और छोटे सितारे का द्रव्यमान सूरज का 25% है। यह Lyra तारामंडल में है। अभी तक एक ग्रह को इसका चक्कर काटते देखा गया है लेकिन उम्मीद है कि ऐसे और भी ग्रह होंगे।
इन सभी सिस्टम्स में ऐसा जीवन लायक क्षेत्र है जहां सितारों के गुरुत्वाकर्षण का नकारात्मक असर नहीं होगा। Kepler-64 में दो सितारों की चार हैं लेकिन फिर भी यहां चट्टानी ग्रह पर जीवन की संभावना है। सूरज के इर्द-गिर्द धरती की कक्षा अंडाकार है जिससे हमें रेडिएशन लगभग एक समान मिलता है लेकिन यह ऐसे ग्रहों के लिए नहीं है जहां दो सूरज हों। यहां दोनों से रेडिएशन और गुरुत्वाकर्षण का असर पड़ता है।
इसलिए दिखी तस्वीर
हबल के वाइड फील्ड कैमरा 3 (WFC3) को खासकर इसीलिए डिजाइन किया गया है ताकि इस तरह की तस्वीरें ली जा सकें क्योंकि इसमें विजिबल और इन्फ्रारेड रोशनी, दोनों दिख सकती हैं। इस तस्वीर की मदद से ऐस्ट्रॉनमर्स पैदा होते नए सितारों को देख सकते हैं। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि सितारों के पैदा होने की प्रक्रिया को समझने से हम अपने सौर मंडल के बारे में ज्यादा समझ सकते हैं।
पैदा होने से लेकर खत्म होने तक सितारा करोड़ों साल तक कई प्रक्रियाओं से गुजरता है। इसलिए इंसान जब उसे देखता है तो एक ही प्रक्रिया का हिस्सा नजर आता है। सितारे गैस के गुबार से पैदा होते हैं, इसलिए छिपे भी रहते हैं।
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