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NASA ने की खोज- अंटार्कटिका में बर्फ की परत के नीचे मौजूद हैं दो झीलें

Gulabi
17 July 2021 12:06 PM GMT
NASA ने की खोज- अंटार्कटिका में बर्फ की परत के नीचे मौजूद हैं दो झीलें
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दुनिया के महासागरों (World's Oceans) के लिए एक बेहद जरूरी सर्कुलेशन प्रोसेस है.

अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका (Antarctica) में बर्फ की चादर (Ice Sheet) के नीचे मौजूद दो नई झीलों (Lakes) का पता लगाया है. ये झीलें बर्फ के नीचे 1.2 से 2.5 मील के नेटवर्क का हिस्सा हैं. कहा गया है कि ये झीलें लगातार भर रही हैं और खाली हो रही हैं. इस वजह से परतों की आवाजाही पर भी प्रभाव पड़ा है. साथ ही दक्षिणी महासागर (Southern Oceans) में पानी के प्रवेश का तरीका भी इससे प्रभावित हुआ है. ये दुनिया के महासागरों (World's Oceans) के लिए एक बेहद जरूरी सर्कुलेशन प्रोसेस है.

कोलोराडो स्कूल ऑफ माइन्स (Colorado School of Mines) के एक जियोफिजिसिस्ट और अध्ययन के लेखक प्रोफेसर मैथ्यू सेफ्रिड (Matthew Seyfried) के अनुसार, ये यहां पर मौजूद सिर्फ बर्फ की चादर ही नहीं है, बल्कि एक जल प्रणाली है, जो पृथ्वी प्रणाली से जुड़ी हुई है. इस अंडर-आइस सिस्टम को पहली बार 2003 में NASA के ICESat मिशन (ICESat mission) द्वारा खोजा गया था. आंकड़ों के विश्लेषण से सामने आया कि पश्चिमी अंटार्कटिका (West Antarctica) में बढ़ती बर्फ से बर्फ के कवर के नीचे पानी की जलाशयों का पता चलता है
हर साल 53,000 किमी स्क्वायर में फैली बर्फ पिघल रही
पहले ये माना जाता था कि ये झीलें अलग-अलग बहा करती हैं और एक-दूसरे से जुड़ी हुई नहीं हैं. लेकिन 2007 में, रिसर्चर्स ने पाया कि अंटार्कटिक सतह पर बर्फ की ऊंचाई में परिवर्तन नीचे मौजूद झीलों के पानी को दर्शाता है. दक्षिणी महासागर में बहने से पहले वे खाली हो जाती हैं और फिर कई बार भर जाती हैं. ICESat मिशन के बाद, ICESat-2 इस नेटवर्क की बेहतर समझ प्रदान करता है. इससे पहले दूसरे अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि हर साल 53,000 किमी स्क्वायर में फैली बर्फ पृथ्वी से पिघल जाती है.
ग्लोबल वार्मिंग से पिघल रहे दुनिया के ग्लेशियर
बर्फ के पिघलने से आने वाले समय में इंसानों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. वैज्ञानिकों ने कहा कि 1979 से 2016 के बीच इतनी बर्फ पिघली कि यह विशाल सुपीरियर झील को भर सकती है. अंटार्कटिका में बर्फ का पिघलना एक बड़ा मुद्दा रहा है, क्योंकि इससे महासागरों के जलस्तर में वृद्धि होने का खतरा पैदा होता है. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से दुनियाभर के ग्लेशियर पिघल रहे हैं और अंटार्कटिका में मौजूद ग्लेशियर भी इससे अछूते नहीं रहे हैं. यही वजह है कि दुनियाभर के पर्यावरणीय संगठन ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए सरकारों पर दबाव बना रहे हैं.
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