विश्व

म्यांमार के हालात हुए बेहद खतरनाक, पांच मीडिया प्रतिष्ठानों के लाइसेंस रद्द

Neha Dani
10 March 2021 2:11 AM GMT
म्यांमार के हालात हुए बेहद खतरनाक, पांच मीडिया प्रतिष्ठानों के लाइसेंस रद्द
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अगर इंटरनेट का अंधेरा और भी आगे बढ़ा तो म्यांमार के हालात भयावह होने से कोई नहीं रोक पाएगा.

भारत का पड़ोसी देश म्यांमार चीन के चंगुल में बुरी तरह फंसा हुआ है और अब वो चीन के ही रास्ते पर चल निकला है. पिछले चौबीस घंटों में यहां के हालात बेहद खतरनाक हुए हैं. यंगून में मिलिट्री सेना मीडिया के दफ्तरों को निशाना बना रही हैं, जबकि इससे पहले पांच एजेंसियों के लाइसेंस कैंसल किए जा चुके हैं. बाहरी मीडिया से खबरें आ रही हैं कि यहां पर सेना ने 50 से ज्यादा निहत्थे प्रदर्शनकारियों को मौत के घाट उतार दिया है और अब सेना ने इंटरनेट ब्लैक आउट की कोशिश तेज कर दी है.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की शह पर म्यामांर में तख्तापलट करने वाला सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग के सिर पर खून सवार हो चुका है. यहां लोकतंत्र की मांग कर रहे लोगों पर सेना भीषण अत्याचार कर रही है. दिन के उजाले में लोकतंत्र के समर्थकों को सेना अपने बूटों तले कुचलती नजर आती है और रात होते ही शहर की सघन बस्तियों में गोलियों की तड़तड़ाहट गूंज उठती है.
म्यांमार की सेना विश्वविद्यालयों और अस्पतालों पर कब्जा कर रही है. लोकतंत्र का समर्थन करने वालों को ठोकर मार देती है, लेकिन आने वाला वक्त और भी खौफनाक हालात का इशारा कर रहा है. सेना के टारगेट पर इंटरनेट और सोशल मीडिया है. म्यांमार में कभी भी इंटरनेट ब्लैक आउट हो सकता है, जिससे देश के अंदर होने वाला नरसंहार दुनिया देख ही ना सके.
नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की बंपर जीत के बाद 1 फरवरी को सेना ने तख्ता पलट दिया था और सरकार की शक्तियां छीन ली थी. इसके बाद आंग सान सू की समेत एनएलडी के सैकड़ों नेता या तो गिरफ्तार कर लिए गए हैं या उनके पीछे सेना पड़ी है. हर रोज इंटरनेट पर शॉकिंग वीडियोज आ रहे हैं, जिसमें आम लोगों का दमन भी दिख रहा है और और लोकतंत्र के लिए प्रदर्शन भी. लोकतंत्र के इन्हीं समर्थकों को एकजुट होने से रोकने के लिए तख्तापलट के दिन से ही म्यांमार में फेसबुक बंद कर दिया गया और आर्मी ने नई साइबर सेक्युरिटी बिल पेश कर दिया, जिससे कानून लाकर सारी सोशल मीडिया गतिविधियों को ट्रैक किया जा सके.
म्यांमार में तख्तापलट के बाद से इंटरनेट ही वो माध्यम है, जिससे लोकतंत्र के समर्थक दुनिया को अपना दर्द दिखा रहे हैं और इसी वजह से आम जनता और सेना के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चल रहा है. ये खेल एक महीने बाद भी ना सिर्फ जारी है बल्कि तेज होता जा रहा है. लोकतंत्र के समर्थक सोशल मीडिया पर जुड़े रहने के लिए हर तरह की तरकीब अपना रहे हैं तो सैन्य तानाशाह उन्हें रोकने की तरकीब अपना रहे हैं.
तख्तापलट के तत्काल बाद टेक सेवी यंगस्टर्स ने वो तरीके सर्कुलेट करने शुरू कर दिए, जो उन्हें इंटरनेट ब्लैक आउट से बचा सकते हैं. फेसबुक ब्लॉक होते ही लोगों ने ट्विटर ज्वाइन कर लिया. इसके अलावा वीपीएन का इस्तेमाल शुरू कर दिया, ताकि उनके आईपी एड्रेस की पहचान ना हो सके. म्यांमार के लोकतंत्र समर्थकों ने प्राइवेसी बनी रहे इसके लिए व्हाट्सऐप और सिग्नल जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल शुरू कर दिया, जो एंड टू एंड एनक्रिप्शन का दावा करते हैं.
साथ ही किसी प्रदर्शन के लिए लोगों को जोड़ने के लिए पुरानी तकनीक यानी लैंडलाइन फोन पर भरोसा किया है. इसके अलावा म्यांमार की जनता ने ब्लूटुथ टेक्नोलॉजी से छोटे ग्रुप भी बना लिए, जिससे आसपास के लोग नेटवर्क से जुड़ गए और सेलफोन के टॉवर ट्रांसमिशन से पकड़ में आने से भी बच गए.
लेकिन इस चूहे बिल्ली के खेल पर म्यांमार की सेना भारी पड़ रही है, जिसके पास टेक्नोलॉजी की शक्तियां ज्यादा हैं. अगर म्यांमार में सेना का साइबर बिल कानून बन जाता है तो वीपीएन का इस्तेमाल अवैध हो जाएगा. ट्विट, फोटो और वीडियो का देश से बाहर निकल पाना मुश्किल हो जाएगा. जाहिर है इंटरनेट ब्लैक आउट होने के बाद म्यांमार में अगर सेना नरसंहार करने लगे तो भी दुनिया को इसका पता ही नहीं चल पाएगा. म्यांमार इसी कड़वी सच्चाई की ओर बढ़ रहा है. अगर इंटरनेट का अंधेरा और भी आगे बढ़ा तो म्यांमार के हालात भयावह होने से कोई नहीं रोक पाएगा.
भारत का पड़ोसी देश म्यांमार चीन के चंगुल में बुरी तरह फंसा हुआ है और अब वो चीन के ही रास्ते पर चल निकला है. पिछले चौबीस घंटों में यहां के हालात बेहद खतरनाक हुए हैं. यंगून में मिलिट्री सेना मीडिया के दफ्तरों को निशाना बना रही हैं, जबकि इससे पहले पांच एजेंसियों के लाइसेंस कैंसल किए जा चुके हैं. बाहरी मीडिया से खबरें आ रही हैं कि यहां पर सेना ने 50 से ज्यादा निहत्थे प्रदर्शनकारियों को मौत के घाट उतार दिया है और अब सेना ने इंटरनेट ब्लैक आउट की कोशिश तेज कर दी है.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की शह पर म्यामांर में तख्तापलट करने वाला सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग के सिर पर खून सवार हो चुका है. यहां लोकतंत्र की मांग कर रहे लोगों पर सेना भीषण अत्याचार कर रही है. दिन के उजाले में लोकतंत्र के समर्थकों को सेना अपने बूटों तले कुचलती नजर आती है और रात होते ही शहर की सघन बस्तियों में गोलियों की तड़तड़ाहट गूंज उठती है.
म्यांमार की सेना विश्वविद्यालयों और अस्पतालों पर कब्जा कर रही है. लोकतंत्र का समर्थन करने वालों को ठोकर मार देती है, लेकिन आने वाला वक्त और भी खौफनाक हालात का इशारा कर रहा है. सेना के टारगेट पर इंटरनेट और सोशल मीडिया है. म्यांमार में कभी भी इंटरनेट ब्लैक आउट हो सकता है, जिससे देश के अंदर होने वाला नरसंहार दुनिया देख ही ना सके.
नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की बंपर जीत के बाद 1 फरवरी को सेना ने तख्ता पलट दिया था और सरकार की शक्तियां छीन ली थी. इसके बाद आंग सान सू की समेत एनएलडी के सैकड़ों नेता या तो गिरफ्तार कर लिए गए हैं या उनके पीछे सेना पड़ी है. हर रोज इंटरनेट पर शॉकिंग वीडियोज आ रहे हैं, जिसमें आम लोगों का दमन भी दिख रहा है और और लोकतंत्र के लिए प्रदर्शन भी. लोकतंत्र के इन्हीं समर्थकों को एकजुट होने से रोकने के लिए तख्तापलट के दिन से ही म्यांमार में फेसबुक बंद कर दिया गया और आर्मी ने नई साइबर सेक्युरिटी बिल पेश कर दिया, जिससे कानून लाकर सारी सोशल मीडिया गतिविधियों को ट्रैक किया जा सके.
म्यांमार में तख्तापलट के बाद से इंटरनेट ही वो माध्यम है, जिससे लोकतंत्र के समर्थक दुनिया को अपना दर्द दिखा रहे हैं और इसी वजह से आम जनता और सेना के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चल रहा है. ये खेल एक महीने बाद भी ना सिर्फ जारी है बल्कि तेज होता जा रहा है. लोकतंत्र के समर्थक सोशल मीडिया पर जुड़े रहने के लिए हर तरह की तरकीब अपना रहे हैं तो सैन्य तानाशाह उन्हें रोकने की तरकीब अपना रहे हैं.
तख्तापलट के तत्काल बाद टेक सेवी यंगस्टर्स ने वो तरीके सर्कुलेट करने शुरू कर दिए, जो उन्हें इंटरनेट ब्लैक आउट से बचा सकते हैं. फेसबुक ब्लॉक होते ही लोगों ने ट्विटर ज्वाइन कर लिया. इसके अलावा वीपीएन का इस्तेमाल शुरू कर दिया, ताकि उनके आईपी एड्रेस की पहचान ना हो सके. म्यांमार के लोकतंत्र समर्थकों ने प्राइवेसी बनी रहे इसके लिए व्हाट्सऐप और सिग्नल जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल शुरू कर दिया, जो एंड टू एंड एनक्रिप्शन का दावा करते हैं.
साथ ही किसी प्रदर्शन के लिए लोगों को जोड़ने के लिए पुरानी तकनीक यानी लैंडलाइन फोन पर भरोसा किया है. इसके अलावा म्यांमार की जनता ने ब्लूटुथ टेक्नोलॉजी से छोटे ग्रुप भी बना लिए, जिससे आसपास के लोग नेटवर्क से जुड़ गए और सेलफोन के टॉवर ट्रांसमिशन से पकड़ में आने से भी बच गए.
लेकिन इस चूहे बिल्ली के खेल पर म्यांमार की सेना भारी पड़ रही है, जिसके पास टेक्नोलॉजी की शक्तियां ज्यादा हैं. अगर म्यांमार में सेना का साइबर बिल कानून बन जाता है तो वीपीएन का इस्तेमाल अवैध हो जाएगा. ट्विट, फोटो और वीडियो का देश से बाहर निकल पाना मुश्किल हो जाएगा. जाहिर है इंटरनेट ब्लैक आउट होने के बाद म्यांमार में अगर सेना नरसंहार करने लगे तो भी दुनिया को इसका पता ही नहीं चल पाएगा. म्यांमार इसी कड़वी सच्चाई की ओर बढ़ रहा है. अगर इंटरनेट का अंधेरा और भी आगे बढ़ा तो म्यांमार के हालात भयावह होने से कोई नहीं रोक पाएगा.


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