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उल्कापिंड ने खोला ये राज- पृथ्वी की गहराइयों में हैं सौर पवन के कण

Gulabi
17 May 2021 5:01 PM GMT
उल्कापिंड ने खोला ये राज- पृथ्वी की गहराइयों में हैं सौर पवन के कण
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हमारी पृथ्वी (Earth) में सौरमंडल के कई रहस्य छिपे हैं

हमारी पृथ्वी (Earth) में सौरमंडल के कई रहस्य छिपे हैं. पृथ्वी की गहराइयों से हमें इस तरह के प्रमाण मिलते हैं जो उस समय की घटनाओं की जानकारी देते हैं जब इस पृथ्वी का निर्माण हो रहा था. ऐसी ही एक चौंकाने वाली जानकारी हमारे वैज्ञानिकों को मिली है. उन्हें ऐसे प्रमाण मिले हैं जिनसे पता चला है कि पृथ्वी के क्रोड़ (Core of The Earth) में हमारे सूर्य की सौर पवनों (Solar Winds) के कण मौजूद हैं. वैज्ञानिकों ने इसकी कारण बताने का भी प्रयास किया है.


नोबल गैसों का विश्लेषण

हाल ही में अक्रिय या नोबल गैसों के अति सटीक विश्लेषण ने बताया है कि हमारे पुरातन सूर्य की सौर पवनों के कण 4.5 अरब साल पहले हमारे पृथ्वी के क्रोड़ में चले गए थे. हेडेलबर्ग यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ अर्थ साइंसेस के शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि इन कणों ने अपना रास्ता पथरीले मैंटल के जरिए करोड़ों साल पहले निकला था.

पृथ्वी के अंदर प्राकृतिक मॉडल
वैज्ञानिकों ने सूर्य की अक्रिय गैस एक लोहे के उल्कापिंड में पाए जिनका वे अध्ययन कर रहे थे. इन उल्का पिंडों के रासायनिक संरचना के कारण उन्होंने पृथ्वी की धातु क्रोड़ के प्राकृतिक मॉडल्स की तरह उपयोग में लाया जाता है. ये खास तरह के लौह उल्कापिंड होते हैं जो बहुत ही कम पाए जाते हैं. और पृथ्वी पर पाए गए उल्कापिंडों के केवल पांच प्रतिशत होते हैं.

कहां मिला था ये उल्कापिंड


बहुत से ऐसे लौह उल्कापिंड विशाल क्षुद्रग्रह के अंदर के टुकड़े होते हैं. जो धातु के क्रोड़ तब बने थे जब हमारे सौरमंडल को बने 10 से 20 लाख साल का समय हो चुका था. ऐसा ही एक लौह उल्कापिंड वाशिंगटन काउंटी में सौ साल पहले मिला था जिसका इंस्टीट्यूट ऑफ अर्थ साइंसेस क्लॉस शीरा लैबोरेटरी फॉर कॉस्मोकैमेस्ट्री में अध्ययन किया जा रहा है.
गहरे विश्लेषण ने बताई यह विशेषता

यह उल्कापिंड एक धातु की तश्तरी की तरह है जो छह सेमीं मोटा और वजन में 5.7 किलोग्राम है. शोधकर्ता अंततः यह निश्चित तौर पर प्रमाणित कर सके कि इस लौहे के उल्कापिंड में सौर तत्व मौजूद हैं. उन्होंने इसके लिए नोबल गैस मास स्पैक्ट्रोमीटर का उपयोग किया और पाया कि इसमें ऐसे नोबल गैस हैं जिनमें हीलियम और नियोन का आइसोटोप अनुपात वही है जो सौर पवनों में होता है.

क्षुद्रग्रह के क्रोड़ का निर्माण

शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि इसके लिए मापन बहुत ही ज्यादा सटीक होने की आवश्यकता थी जिससे सौर संकेतों में नोबल गैस और वायुमंडल के संक्रमण या मिलावट में स्पष्ट अंतर किया जा सके. इन कणों के आसपास पकड़ी गई गैस तरल धातु में घुल गई होगी जिससे क्षुद्रग्रह के क्रोड़ का निर्माण हुआ होगा.

पृथ्वी पर भी ऐसा ही हुआ होगा

इन नतीजों के आधार पर टीम यह निष्कर्ष निकाला है कि इसी तरह से पृथ्वी के क्रोड़ में सौर पवनों के कण आए होंगे और पृथ्वी की क्रोड़ का निर्माण हुआ होगा. और उसमें भी नोबल गैस के अवयव होने चाहिए. इसी तरह एक अन्य वैज्ञानिक अवलोकन भी इसका समर्थन करता है जिसमें कई आग्नेय शैलों में ऐसा संयोजन मिला है.
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