यूरोपीय संघ में कोरोना राहत पैकेज को लेकर बुलाई गई बैठक
जनता से रिश्ता वेबडेस्क : कोरोना महामारी की दूसरी लहर से त्रस्त यूरोप के तमाम देशों की निगाहें अब गुरुवार को यूरोपीय संघ (ईयू) की होने वाली बैठक पर टिकी है। ईयू के सरकार प्रमुखों की वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए होने वाली ये बैठक महामारी से राहत के लिए तैयार पैकेज को मंजूरी दिलाने के मकसद से बुलाई गई है। इसके पहले सोमवार को हंगरी और पोलैंड के वीटो कर देने के कारण ईयू के राजदूतों की बैठक में इस पैकेज पर मुहर नहीं लग सकी।
मानव अधिकार संगठनों ने कहा है कि यूरोपीय संघ हंगरी और पोलैंड में कानून के शासन के उल्लंघनों की अनदेखी करता रहा है। अब उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। उनका कहना है कि ईयू के लापरवाह रुख के कारण इन दोनों देशों में तानाशाही का रास्ता खुला। अब हंगरी और पोलैंड ने मिल कर कोरोना महामारी से राहत के लिए तैयार 1.82 खरब यूरो के पैकेज को वीटो कर दिया है। कई यूरोपीय राजनयिकों ने मीडिया से बातचीत में इस गतिरोध के लिए खासकर हंगरी के प्रदानमंत्री विक्टर ऑर्बन को दोषी ठहराया।
हंगरी और पोलैंड को पैकेज की इस शर्त पर एतराज है कि जिन देशों में कानून के शासन के उल्लंघन के सबूत मिलेंगे, उन्हें इस पैकेज के तहत मिलने वाली रकम पर ईयू रोक लगा सकेगा। राजदूतों की बैठक में बहुमत इस शर्त के साथ पैकेज को मंजूरी दी गई। उस समय पोलैंड और हंगरी ने इसका विरोध किया। पैकेज को मंजूरी मिल जाने के बाद उन्होंने अपने वीटो के अधिकार का इस्तेमाल किया। दोनों देशों ने ये संकेत भी दिया कि वे ईयू के सात साल के पारित बजट से अपना समर्थन वापस ले रहे हैं। ये बजट 1.074 खरब यूरो का है। इस बजट की अवधि अगले एक जनवरी से शुरू होगी।
ईयू के अधिकारियों ने कहा है कि बजट- एंड- रिकवरी पैकेज के तहत हंगरी और पोलैंड को लाखों यूरो की सहायता मिलनी है। इस तरह इसे रोक कर उन्होंने अपने नागरिकों का भी नुकसान किया है। पोलैंड और हंगरी को ईयू से बड़ी सहायता मिलती रही है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से इन दोनों देशों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है। राजनयिकों के अनुसान विक्टर ऑर्बन को जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल, ईयू परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल और कुछ दूसरे देशों के बड़े अधिकारियों ने व्यक्तिगत संदेश भी भेजा। पर वे अपने रुख पर अड़े रहे।
मानवाधिकार संस्था- ह्यूमन राइट्स वॉच की यूरोपीय शाखा ने इस गतिरोध के लिए खुद ईयू को दोषी ठहराया है। ह्यूमन राइट्स वॉच के मीडिया प्रमुख ने एक ट्विटर थ्रेड के जरिए कहा कि जब हंगरी में तानाशाही की दिशा में कदम में कदम उठाए जा रहे थे, तब ईयू ने उसे बर्दाश्त किया। जबकि गुजरे वर्षों में प्रधानमंत्री ऑर्बन और उनके नेतृत्व वाली सत्ताधारी पार्टी ने स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र प्रेस को नष्ट किया है।
इस संगठन का आरोप है कि अपने इस नजरिए से खुद को लोकतांत्रिक संस्था मानने वाले ईयू ने तानाशाही को उस हैसियत में पहुंचने दिया, जहां से वह ईयू के बजट को वीटो कर सके। ह्यूमन राइट्स वॉच का आरोप है कि पोलैंड की मौजूद सरकार हंगरी को अपना मॉडल मान कर चल रही है। वह भी अपने देश में स्वतंत्र न्यायपालिका, स्वतंत्र प्रेस और मानवाधिकारों पर कहर ढा रही है।
वेबसाइट पॉलिटिको.ईयू के मुताबिक कई राजनयिक भी मानते हैं कि मौजूदा गतिरोध के लिए ईयू जिम्मेदार है। उनके मुताबिक पिछले जुलाई में ईयू की शिखर बैठक हुई थी, तब बजट-एंड- रिकवरी पैकेज में कानून के शासन पर अमल का मुद्दा अधूरा छोड़ दिया गया। तब नेताओं ने सिर्फ यह कहा कि बजट और कानून के शासन के बीच संबंध रखा जाएगा। लेकिन उसकी स्पष्ट व्याख्या नहीं की। हालांकि गुरुवार की बैठक में मुमकिन है कि कोई समाधान निकल जाए, लेकिन राजनयिकों को अंदेशा है कि अगर गतिरोध बना रहा, तो यूरोपीय देश बड़ी मुश्किल में फंस जाएंगे। तब उनके पास जरूरी खर्चों के लिए जरूरी फंड का अभाव हो जाएगा।