विश्व
चीन और ब्रिटेन के बीच अब छिड़ रहे 'मीडिया वॉर', BBC की रिपोर्ट को बताया 'फेक न्यूज'
Deepa Sahu
5 Feb 2021 4:13 PM GMT
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चीन और ब्रिटेन के बीच अब खुल कर मीडिया युद्ध छिड़ने की आशंका पैदा हो गई है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क: चीन और ब्रिटेन के बीच अब खुल कर मीडिया युद्ध छिड़ने की आशंका पैदा हो गई है। यहां ये संभावना जताई जा रही है कि ब्रिटेन में चीन के टीवी चैनल सीजीटीएन का लाइसेंस रद्द होने के बाद अब चीन से ब्रिटिश मीडिया के प्रतिनिधियों को निकाला जा सकता है। सीजीटीएन के बारे में खबर आने के तुरंत बाद चीन ने ब्रिटिश मीडिया खासकर बीबीसी पर सख्त आरोप लगाए और उससे माफी मांगने को कहा। चीन ने कहा कि बीबीसी ने कोरोना वायरस महामारी के कवरेज और शिनजियांग प्रांत संबंधी 'वैचारिक पूर्वाग्रह से प्रेरित' रिपोर्टिंग में फेक न्यूज प्रसारित की है।
चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा- 'चीन बीबीसी और उसके बीजिंग ब्यूरो से आग्रह करता है कि वे अपनी रिपोर्टिंग के नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाएं। चीन से संबंधित फेक न्यूज देने के लिए वे माफी मांगें। इस मामले में आगे कदम उठाने का अपना अधिकार चीन सुरक्षित रखता है।' पर्यवेक्षकों के मुताबिक इस बात की संभावना कम ही है कि बीबीसी अपनी चीन संबंधी रिपोर्टिंग के लिए माफी मांगेगा। वेबसाइट पोलिटिको.ईयू ने बीबीसी के एक अंदरूनी सूत्र के हवाले से कहा है कि चीनी बयान असल में बीबीसी के पत्रकारों पर दबाव बढ़ाने की कोशिश है। कुछ दूसरे पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसका बहाना बनाकर बाद में चीन बीबीसी के पत्रकारों को अपने देश से निकाल सकता है।
बीबीसी ने हाल में अपनी कई रिपोर्टों में दावा किया है कि शिनजियांग प्रांत में चीन लेबर कैंप चला रहा है, जहां लोगों से जबरिया मजदूरी कराई जाती है। हाल की एक रिपोर्ट में बीबीसी ने दावा किया कि शिनजियांग में मुस्लिम महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया गया है। इन रिपोर्टों से चीन खफा हुआ है। लेकिन अब तक उसने बीबीसी या किसी ब्रिटिश पत्रकार के खिलाफ कार्रवाई नहीं की है। पिछले साल उसने ऑस्ट्रेलिया के दो पत्रकारों को जरूर अपने यहां से निकाल दिया था। अब सीजीटीएन को लेकर छिड़े विवाद में यह माना जा रहा है कि चीन जवाबी कदम उठा सकता है।
गुरुवार को ब्रिटेन ने सीजीटीएन चैनल का लाइसेंस अपने यहां रद्द करने का एलान किया। ब्रिटेन के मीडिया वॉचडॉग ऑफकॉम ने कहा कि उसने ये कदम इसलिए उठाया है, क्योंकि इस चैनल का स्वामित्व चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हाथ में है। जबकि ब्रिटिश प्रसारण कानून के मुताबिक जिसके नाम से लाइसेंस जारी किया जाता है, उसका ही पूरी सेवा पर नियंत्रण होना चाहिए। संपादकीय निगरानी भी पूरी तरह उसके हाथ में होनी चाहिए।
हांगकांग में चीन विरोधी प्रदर्शनों के दौरान सीजीटीएन पर ब्रिटेन में आरोप लगाया गया था कि ये चैनल इन प्रदर्शनों के बारे में बिल्कुल एकतरफा ढंग से खबर दे रहा है। उस पर यह आरोप भी लगा था कि उस आंदोलन के पीछे विदेशी हाथ संबंधी बयानों को उसने प्रमुखता से दिखाया, जबकि ब्रिटिश मीडिया में ये दावा किया गया था कि वे बयान जबरन लिए गए थे।
सीजीटीएन के खिलाफ शिकायत स्वीडन के सामाजिक कार्यकर्ता पीटीर दाहलिन ने दर्ज कराई थी। ऑफकॉम का फैसला आने के बाद उन्होंने कहा कि यह आम समझ और सर्वज्ञात तथ्य है कि सीजीटीएन का संचालन अंततः चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हाथ में है। ब्रिटिश संसद की डिजिटल, संस्कृति, मीडिया और खेल मामलों की समिति के अध्यक्ष जुलियन नाइट ने कहा है कि इस फैसले से साबित हो गया है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस चैनल की वास्तविक नियंत्रक है और ऐसे चैनलों की चलाने की इजाजत ब्रिटिश कानून के तहत नहीं है।
अब माना जा रहा है कि सीजीटीएन संबंधी विवाद का ब्रिटेन और चीन के संबंधों पर भी खराब असर पड़ेगा। दोनों देशों के संबंध हांगकांग के मामले को लेकर पहले से तनावपूर्ण हैं। अब सीजीटीएन और बीबीसी से जुड़े पेंच दोनों के संबंधों और तनावपूर्ण बना सकते हैं।
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