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गणितज्ञ माइकल सिमकिन का कमाल, सुलझाई 150 साल पुरानी शतरंज की 'पहेली'

Gulabi
4 Feb 2022 4:47 PM GMT
गणितज्ञ माइकल सिमकिन का कमाल, सुलझाई 150 साल पुरानी शतरंज की पहेली
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सुलझाई 150 साल पुरानी शतरंज की 'पहेली'
साल 1848 में जर्मनी के चेस न्यूजपेपर Schachzeitung में चेस कंपोजर मैक्स बेजेल ने एक पहेली छापी. जिसमें n-queens एक समस्या थीं. सवाल ये था कि कैसे आठ दुश्मन रानियां, जो कि चेसबोर्ड की सबसे ताकतवर गोटियां होती हैं, वो किसी भी नंबर को हॉरीजोंटली, वर्टिकली और डायगोनली घुमा सकती हैं. लेकिन शर्त ये है कि 64 स्क्वायर बोर्ड पर यह काम बिना किसी रानी पर हमला किए बगैर दूसरी रानी को करना है.
इसका जवाब दो साल बाद सामने आ गया. ऐसी 92 चालें थीं, जो ये काम पूरा कर रही थी, वह भी बिना किसी रानी को नुकसान पहुंचाए. लेकिन इनमें से 12 चालें ऐसी थीं, जो एकदम एक जैसी थीं. लेकिन 1869 में गणितज्ञ Franz Nauck ने इस समस्या को और कठिन कर दिया. उन्होंने कहा कि आठ रानियों वाले स्टैंडर्ड 8 गुणे 8 बोर्ड के बजाय 1000 रानियों को 1000 गुणे 1000 बोर्ड पर खिलाया जाए तो क्या होगा. या फिर लाखों या करोड़ों रानियों को खिलाया जाए तो.
कभी एक साधारण से बनी पहेली एक बड़ी समस्या बन गई. दुनियाभर के गणितज्ञों के लिए एक चुनौती बन गई. लेकिन अब हार्वर्ड यूनिवर्सिटी सेंटर ऑफ मैथेमेटिकल साइंसेस एंड एप्लीकेशन विभाग के गणितज्ञ माइकल सिमकिन ने इस पहेली को सुलझा लिया है. उनका दावा की वो इस पहेली को पूरी तरह से सुलझा चुके हैं. उन्होंने n गुणे n बोर्ड पर (0.143n)^n तरीकों से n रानियों को रखा, ताकि वो एक दूसरे पर हमला न कर सकें. यानी मिलियन बाय मिलियन बोर्ड पर 1 मिलियन क्वीन्स को सही बचाव वाली मुद्रा में खड़ा किया जा सकता है. वह भी एक पोजिशन में लेकिन हर रानी के पीछे 5 मिलियन जीरो लगाने होंगे.



माइकल सिमकिन ने इस पहेली को सुलझाने में करीब पांच साल लगा दिए. आमतौर पर गणितज्ञ किसी समस्या या इक्वेशन को सुलझाने के लिए उसे संतुलित कर सकने वाले हिस्सों में तोड़ देते हैं. लेकिन रानी जिसे बोर्ड के केंद्र में रखा गया है, वह आसपास के कई स्क्वायर्स पर चाल चल सकती हैं. जबकि, किनारों पर मौजूद रानियां उतनी चालें नहीं चल सकती. इसलिए N-क्वीन्स की समस्या बेहद असंतुलित थी. इसलिए इसे आसानी से तोड़ना मुश्किल था.
वैज्ञानिकों ने गणित की इस पहेली को काफी मुश्किलों से पूरा किया है. उनके इक्वेशन को साधारण भाषा में आम लोगों को समझा पाना बेहद जटिल काम है. यह स्टडी हाल ही में प्री-प्रिंट डेटाबेस arXiv में प्रकाशित हुई है.
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