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समुद्री प्रजातियां खतरे में
ब्रिस्बेन, एएनआइ। वर्तमान में हम एक साथ कई संकटों का सामना कर रहे हैं। उदाहरण स्वरूप, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण आदि। अब इसका एक और घातक प्रभाव निकलकर सामने आया है। विज्ञानियों ने अध्ययन के आधार पर बताया है कि जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कारण समुद्री जीवों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। यूनिवर्सिटी आफ क्वींसलैंड के शोधकर्ताओं और वैश्विक समुद्री विशेषज्ञों ने समुद्री जीवों पर उपलब्ध जानकारियों का विश्लेषण कर बताया है कि जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और मछली पकड़ने के कारण वर्तमान में 45 हजार से ज्यादा समुद्री प्रजातियां संकट में हैं।
इकोस्फीयर में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि खतरे में पड़ी समुद्री प्रजातियों की पहचान के लिए एक तंत्र तैयार किया गया है। इसकी मदद से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ और इन प्रजातियों के संरक्षण के लिए नीतिगत प्रयासों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
इन पर सबसे ज्यादा खतरा
यूनिवर्सिटी आफ क्वींसलैंड के स्कूल आफ अर्थ एंड एनवायरमेंटल साइंसेज की डा. नथाली बट के मुताबिक, अध्ययन में उन लुप्तप्राय प्रजातियों की पहचान की गई है, जो सबसे ज्यादा खतरे में हैं। बकौल डा. बट मोलस्का, कोरल और एकिनोडर्म के अलावा कठोर या कांटेदार जीव जैसे सी आर्चिन (जलसाही) महासागरों के प्रभावों को महसूस करते हुए कई तरह के खतरों का सामना कर रहे हैं। इनके सामने सबसे बड़ा खतरा, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, मछली पकड़ना और दूसरे जीव का भोजन बनना है।
फलवारपाट कोरल पर संकट
प्रशांत महासागर, हिंद महासागर और फारस की खाड़ी में पाया जाने वाला फलवारपाट कोरल उन प्रजातियों का एक समूह है जो जलवायु परिवर्तन के कारण हुए बदलावों जैसे समुद्र का अम्लीकरण का सामना कर रहा है। डा. बट के मुताबिक, हमारे अध्ययन में यह भी सामने आया कि विश्वभर के महासगारों में पाई जाने वालीं स्टार फिश, समुद्री घोंघे और फ्लाइंग फिश भी जलवायु परिवर्तन के कारण संकट का सामना कर रहे हैं।
प्रयास की जरूरत
डा. बट के मुताबिक, मानवीय गतिविधियों के कारण पर्यावरण इतनी तेजी से बदल रहा है कि हमें उपलब्ध सभी जानकारियों का उपयोग करने की आवश्यकता है, ताकि यह पता लगा सकें कि कौन सी प्रजातियां खतरे में हैं और उनके खतरे में होने की क्या वजहें हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमें इनके संरक्षण के लिए एक तंत्र की आवश्यकता महसूस हुई, जिसे हमने तैयार किया। यह ढांचा अनूठा है, क्योंकि यह हमें बताता है कि कौन सी प्रजातियां प्रदूषण, मछली पकड़ने और जलवायु परिवर्तन जैसे सबसे बड़े संभावित प्रभावों के साथ अन्य खतरों की वजह से संकट में हैं।
देश बना सकते हैं नीति
डा. बट की सहयोगी और एसोसिएट प्रोफेसर कैरिसा क्लेन के मुताबिक, विश्वभर की संकट ग्रस्त प्रजातियों के बारे में यह जानकारी हमें इनके संरक्षण के लिए उचित कदम उठाने में मददगार साबित हो सकती है। संरक्षणवादी उपलब्ध संसाधनों के आधार पर इस तंत्र का प्रयोग कर इन प्रजातियों का संरक्षण कर सकते हैं। साथ ही विश्वभर के देश अपने स्थानों के आधार पर नीति भी बना सकते हैं, ताकि इन संकटग्रस्त प्रजातियों का संरक्षण किया जा सके।
इंसानों के लिए भी खतरा
हम जानते हैं कि हमारी धरती पर जैविक तंत्र को बनाए रखने के लिए हर प्रजाति की उपयोगिता है। इनमें से यदि कुछ लुप्त होती हैं तो उसका असर पूरे तंत्र पर पड़ता है, जिसका खामियाजा इंसानों को भी उठाना पड़ सकता है। यही वजह है कि विज्ञानी हमेशा से इनके संरक्षण के लिए उचित कदम उठाने के लिए अपील करते रहते हैं। अब इस नए अध्ययन के जरिये उपयुक्त डाटा के आधार पर संकटग्रस्त प्रजातियों की पहचान की जा सकती है और उन्हें बचाने के लिए उपयुक्त कदम उठाए जा सकते हैं।
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