विश्व

देश के बंटवारे को लेकर खुलेंगे कई राज! सार्वजनिक हो सकती है भारत के अंतिम वायसराय माउंटबेटन और एडविना की पर्सनल डायरी

Renuka Sahu
17 Nov 2021 3:25 AM GMT
देश के बंटवारे को लेकर खुलेंगे कई राज! सार्वजनिक हो सकती है भारत के अंतिम वायसराय माउंटबेटन और एडविना की पर्सनल डायरी
x

फाइल फोटो 

भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर ब्रिटिश सरकार के कई राज जल्द ही उजागर हो सकते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर ब्रिटिश सरकार के कई राज जल्द ही उजागर हो सकते हैं. दरअसल ब्रिटेन की एक अदालत में सुनवाई होनी है. इसमें भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की डायरी और कुछ पत्रों को सार्वजनिक किए जाने के संबंध में इस हफ्ते फैसला लिया जाएगा. न्यायाधीश सोफी बकले 1930 के दशक की डायरी और पत्राचार को सावर्जजनिक करने के संबंध में न्यायाधिकरण (सूचना अधिकार) की अध्यक्षता कर रहे हैं. इस पर शुक्रवार तक सुनवाई होनी है. ब्रिटिश-भारतीय इतिहास की यह एक महत्वपूर्ण अवधि है, जिसमें भारत के विभाजन की देखरेख माउंटबेटन द्वारा की जा रही थी.

इसमें लॉर्ड लुइस तथा लेडी एडविना माउंटबेटन दोनों की व्यक्तिगत डायरी और पत्र भी शामिल हैं. ब्रिटेन के कैबिनेट कार्यालय ने कहा है कि उन कागजात की ज्यादातर जानकारी पहले से ही सार्वजनिक है तथा भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में किसी भी गोपनीय पहलू का खुलासा अन्य देशों के साथ ब्रिटेन के संबंधों को प्रभावित करेगा. इतिहासकार और 'द माउंटबेटंस: द लाइव्स एंड लव्स ऑफ डिकी एंड एडविना माउंटबेटन' के लेखक एंड्रयू लोनी चार साल से सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का मुकदमा लड़ रहे हैं.
साउथहेम्पटन यूनिवर्सिटी ने खरीदी सामग्री
साल 2011 में यूनिवर्सिटी ऑफ साउथहेम्पटन ने ब्रॉडलैंड्स नाम के दस्तावेज माउंटबेटन परिवार से खरीदे थे. इसके लिए 28 लाख ब्रिटिश पाउंड के पब्लिक फंड का इस्तेमाल किया गया था. इसके पीछे की मंशा इन दस्तावेजों को सार्वजनिक करना था. हालांकि उस समय यूनिवर्सिटी ने कुछ पत्रों को कैबिनेट ऑफिस भेज दिया था.
नेहरू और एडविना के पत्र भी सार्वजनिक करने के आदेश
इस आदेश में उन पत्रों को भी सार्वजनिक करने को कहा गया था, जो लेडी माउंटबेटन ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लिख थे. 1948 से 1960 के बीच लिखे गए पत्रों की कुल 33 फाइलें थीं. इनमें वो पत्र भी शामिल हैं, जो नेहरू ने एडविना माउंटबेटन को लिखे थे. यूनिवर्सिटी ऑफ साउथहेम्पटन ने जवाब में कहा था कि नेहरू और लेडी माउंटबेटन के बीच पत्राचार अभी भी निजी अधिकार के तहत आते हैं और ये गोपनीय हैं, लेकिन यूनिवर्सिटी की इसमें आगे रुचि है. इस पर फैसला अभी तक लंबित था, जिस पर इस हफ्ते सुनवाई होनी है. इस पर फैसला अभी तक लंबित था, जिस पर इस हफ्ते सुनवाई होनी है. इन दस्तावेजों को सार्वजनिक करने वाले एंड्रयू लोनी का कहना है कि इस केस पर उन्होंने अपनी सारी बचत लगा दी है और क्राउड फंडिंग के माध्यम से 54 हजार ब्रिटिश पाउंड भी खर्च किए हैं. यह बहुत ही अहम दस्तावेज हैं और इन्हें सार्वजनिक न करना सत्ता का दुरुपयोग और सूचना के अधिकार का उल्लंघन है.
Next Story