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अमेरिका में लंबे समय से चली आ रही नस्लीय और जातीय असामनता, शोधकर्ताओं ने पेश किया 30 सालों का डेटा

Neha Dani
9 Sep 2021 5:33 AM GMT
अमेरिका में लंबे समय से चली आ रही नस्लीय और जातीय असामनता, शोधकर्ताओं ने पेश किया 30 सालों का डेटा
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यदि अश्वेत भी श्वेत के सामन दर पर कालेज जाते और अपनी शिक्षा पूरी करते, और अगर दोनों की कमाई में अंतर ना होता।

अमेरिका में लंबे समय से चली आ रही नस्लीय और जातीय असामनताओं ने ना सिर्फ उन लोगों को दुख पहुंचाया है जिन्होंने इसका सामना किया है, बल्कि 30 सालों में देश के आर्थिक उत्पादन में भी खरबों डालर की कमी आई है। ब्रुकिंग्स पेपर्स पर आर्थिक गतिविधि (बीपीईए) सम्मेलन में चर्चा के दौरान यह बात सामने आई है।

सैन फ्रांसिस्को के फेडरल रिजर्व बैंक के लेखकों शेल्बी आर, बकमैन, लौरा वाई, चोई, मैरी सी, डेली और लिली एम, सेटेलमैन ने 25 से 64 साल की उम्र के श्वेत, अश्वेत और हिस्पैनिक पुरुषों एवं महिलाओं के बीच 1990 से 2019 तक के अंतरों पर विचार किया। डेली ने पेपर के विमोचन से पहले एक ब्रीफिंग में कहा, 'रोजगार, शिक्षा और कमाई में बड़े स्तर पर और लगातार अंतर पूरे देश की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करते हैं।
उन्होंने कहा, अगर इन अंतरों को कम या बंद कर दिया जाए तो यह ना सिर्फ नैतिक होगा बल्कि आर्थिक रूप से भी काफी फायदेमंद होगा। यह पेपर बताता है कि अगर श्रम बाजार में अंतर मौजूद नहीं होता तो जीडीपी क्या होती और देश को इन तीस सालों में आर्थिक उत्पादन में खरबों डालर की कमी का सामना नहीं करना पड़ता। इस दौरान उदाहरण के तौर पर बताया गया कि अश्वेत पुरुषों के लिए रोजगार अन्य पुरुषों की तुलना में लगातार कम रहे हैं। वहीं, अश्वेत और हिस्पैनिक श्रमिकों की कमाई भी श्वेत से कम है।
डेली और उनके सह-लेखकों ने गणना की कि अगर सभी जाति-आधारित अंतरों को मिटा दिया गया तो सकल घरेलू उत्पाद को क्या लाभ होगा। यदि काले और हिस्पैनिक पुरुष और महिलाओं भी श्वेत के समान दरों पर नौकरी करें, यदि अश्वेत भी श्वेत के सामन दर पर कालेज जाते और अपनी शिक्षा पूरी करते, और अगर दोनों की कमाई में अंतर ना होता।

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