विश्व

व्यापार के नाम पर अपने ही मित्र देशों को लगाया चूना, बेचा खराब हथियार

Neha Dani
7 Nov 2020 3:51 AM GMT
व्यापार के नाम पर अपने ही मित्र देशों को लगाया चूना, बेचा खराब हथियार
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चीन की चालबाजी से भला कौन वाकिफ नहीं। व्यापार के नाम पर उसने अपने ही मित्र देशों को ठगा है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| चीन की चालबाजी से भला कौन वाकिफ नहीं। व्यापार के नाम पर उसने अपने ही मित्र देशों को ठगा है।

। एक बार फिर उसकी दगाबाजी की पोल खुल गई है। जी हां, चीन जिन्हें अपना मित्र देश बताता है, उनके ही विश्वास को उसने तोड़ा है। अपने देश के खराब हो चुके और दोषपूर्ण हथियारों का निर्यात कर चीन फिर से विवादों के घेरे में है। चीन विश्व में पांचवां सबसे बड़ा हथियार निर्यात करने वाला देश है। उसने अपने मित्र देशों को जो हथियार सप्लाई किए हैं, उनमें से ज्यादातर खराब पाए गए।

किस-किस देश को सप्लाई किए चीन ने हथियार

बांग्लादेश

चीन ने 2017 में बांग्लादेश को 1970 में मिंग श्रेणी की 035G पनडुब्बिया बेची थीं। इन पनडुब्बियों की कीमत लगभग 100 मिलियन डॉलर के आसपास थी। इन पनडुब्बियों को केवल युद्ध की ट्रेनिंग में इस्तेमाल किया जाता है। ये पनडुब्बियां सर्विसिंग करने लायक भी नहीं रह जाती थी। अप्रैल 2003 में चीन से खरीदी गई मिंग क्लास की पनडुब्बी एक हादसे का शिकार हो गई थी। इसी तरह बांग्लादेश ने चीन से दो युद्धपोत BNS उमर फारूक और BNS अबू उबैदाह खरीदे थे, जिनमें नैविगेशन रडार और गन सिस्टम में खराबी पाई गई है।

नेपाल

बांग्लादेश द्वारा नामंजूर किए गए चीन के (Y12e और MA60) छह विमानों को नेपाल ने अपने नेशनल एयरलाइंस के लिए खरीदा था। लेकिन ये सभी विमान नेपाल पहुंचते ही बेकार हो गए थे। ये विमान नेपाल जैसे देश के लिए अनुकूल न होने के साथ ही इसके स्पेयर पार्ट्स भी उपलब्ध नहीं थे।

पाकिस्तान

चीन का खास दोस्त पाकिस्तान भी दगाबाजी से बच न सका। पाकिस्तान को भी चीन ने दोस्ती की आड़ में खराब सैन्य सामानों की पूर्ति की है। पाकिस्तान के लिए चीन ने युद्ध F22P दिया था। कुछ समय बाद ही कई सारी तकनीकी प्रोब्लम्स के चलते वह खराब हो गया। सितबंर 2018 में चीन को पाकिस्तान ने इस युद्धपोत की पूरी सर्विसिंग का प्रस्ताव दिया था लेकिन चीन को इसमें किसी तरह का लाभ दिखाई ने देने पर अपनी आंखें मूंद ली थी।

केन्या

ठीक इसी तरह केन्या ने जब सैनिकों के लिए बख्तरबंद गाड़ियां खरीदी तो टेस्ट में ही चीन के सेल्स रिप्रजेंटेटिव ने इन गाड़ियों में बैठने से इंकार कर दिया था। केन्या को उस समय गाड़ियों की आवश्यकता थी। बाद में खामियों से भरी इन बख्तरबंद गाड़ियों में केन्या के कई सारे सैनिकों को अपनी जान भी गवांनी पड़ी थी।


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